Edited By Hitesh,Updated: 14 Jun, 2021 05:30 PM
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), मंडी के शोधार्थियों के एक दल ने अत्यधिक शर्करा के उपभोग से यकृत (लीवर) में वसा जमा होने की बीमारी से जुड़े कारणों का पता लगाया है। इस बीमारी को फैटी लीवर के नाम से भी जाना जाता है। शोधार्थियों के मुताबिक इस...
नेशनल डेस्क: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), मंडी के शोधार्थियों के एक दल ने अत्यधिक शकर के उपभोग से लीवर में फैट जमा होने की बीमारी से जुड़े कारणों का पता लगाया है। इस बीमारी को फैटी लीवर के नाम से भी जाना जाता है। शोधार्थियों के मुताबिक इस नयी जानकारी से लोगों को नॉन अल्कोहलिक लीवर डिसीज़ (एनएएफएलडी) के शुरूआती चरणों में शकर की मात्रा घटाने के लिए जागरूक करने में मदद मिलेगी। यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है।
यह अध्ययन ऐसे समय में हुआ है, जब सरकार ने एनएएफएलडी को कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया है। एनएएफएलडी, एक ऐसी मेडिकल स्थिति है जिसमें लिवर में अतिरिक्त फैट जमा होता है। इस रोग के लक्षण करीब दो दशक तक भी नजर नहीं आते हैं। यदि इस रोग का समय पर इलाज नहीं किया जाता है तो अतिरिक्त फैट लीवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। यह रोग बढ़ने पर लीवर कैंसर का रूप भी धारण कर सकता है।
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर प्रसेनजीत मंडल ने बताया, ‘‘एनएएफएलडी का एक कारण शकर का अधिक मात्रा में उपभोग है। शकर और कार्बोहाइड्रेड के अधिक मात्रा में उपभोग के चलते लीवर उन्हें एक प्रक्रिया के जरिए फैट में तब्दील कर देता है, इससे फैट लीवर में जमा होने लग जाता है। ‘‘मंडल ने बताया कि भारत में एनएएफएलडी आबादी के करीब नौ से 32 प्रतिशत हिस्से में पाया जाता है। अध्ययन दल ने दावा किया है कि लीवर में फैट के जमा होने के बीच मॉलिक्यूलर बॉन्डिंग का खुलासा होने से इस रोग का उपचार ईजाद करने में मदद मिलेगी। अध्ययन दल में जामिया हमदर्द इंस्टीट्यूट और एसजीपीजीआई, लखनऊ के शोधार्थी भी शामिल थे।