Edited By Anu Malhotra,Updated: 19 Nov, 2025 11:14 AM

बिहार के चुनाव खत्म हो चुके हैं, नतीजे आ गए हैं और सत्ता का नया समीकरण साफ हो गया है। नीतीश कुमार की कुर्सी मजबूत मानी जा रही है, और तेजस्वी यादव अपनी रणनीति में जुटे हैं। लेकिन इस राजनीतिक खेल के बीच एक वर्ग है जो हमेशा नजरअंदाज रह जाता है —...
नेशनल डेस्क: बिहार के चुनाव खत्म हो चुके हैं, नतीजे आ गए हैं और सत्ता का नया समीकरण साफ हो गया है। नीतीश कुमार की कुर्सी मजबूत मानी जा रही है, और तेजस्वी यादव अपनी रणनीति में जुटे हैं। लेकिन इस राजनीतिक खेल के बीच एक वर्ग है जो हमेशा नजरअंदाज रह जाता है - प्रवासी मजदूर। इनके लिए चुनाव कोई खुशखबरी नहीं लाता; उनका जीवन हर मौसम में संघर्ष और परदेस की दौड़ में बीतता है।
समस्तीपुर का सच:
समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर हाल वही है जो हर चुनाव के बाद देखने को मिलता है। वोट देकर लौटे मजदूर अब फिर काम की तलाश में अपने राज्यों की ओर लौट रहे हैं। स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस के प्लेटफॉर्म पर भीड़ इतनी है कि लग रहा था पूरी ट्रेन पहले से ही भर चुकी है। जनरल और स्लीपर बोगी में जगह कम, खिड़की और बाथरूम तक में लोग खड़े होकर सफर कर रहे हैं। कुछ को तो गेट पर बैठकर दिल्ली तक का सफर करना पड़ रहा है।
प्रवासी मजदूरों की आवाज़:
कई मजदूरों ने एक टीवी चैनल से बातचीत करते हुए अपने दुख और उम्मीद की कहानी साझा की। कुछ ने कहा, मोदी को वोट दिया था, सोचा इस बार रोजगार मिलेगा… तेजस्वी यादव पर भरोसा था कि कुछ बदलाव आएंगे… लेकिन नतीजे के बाद कोई ठोस योजना नहीं दिखाई दी। ट्रेन की सीटी फिर हमें परदेस बुला रही है। एक अन्य मजदूर ने तो स्पष्ट रूप से कहा, 8–10 फैक्ट्री से कुछ नहीं होगा, बिहार में कम से कम 200 फैक्ट्री लगें तब ही पलायन रुकेगा।
चुनाव और आम जनता:
आम प्रवासी मजदूर का कहना है कि चुनाव का माहौल खत्म होते ही वही सबसे पहले भागता है जिसने सबसे ज्यादा उम्मीदें लगाई होती हैं। राजनेता अपनी सत्ता बचाने में व्यस्त रहते हैं, लेकिन आम आदमी अपनी रोज़ी-रोटी के लिए दौड़ता है। सरकार चाहे कोई भी बने, धक्का वही खाता है।
रेलवे प्लेटफॉर्म का मंजर:
समस्तीपुर से लेकर बड़ी ट्रेनों तक की तस्वीर यही बयां करती है कि चुनाव खत्म हो गया, लेकिन आम आदमी की जिंदगी परिदृश्य में किसी भी बदलाव के बिना जारी है। भीड़, धक्का-मुक्की और मजबूरी — ये बिहार के चुनाव बाद की असली तस्वीर हैं।