Pregnancy 22 Weeks: लिव-इन पार्टनर ने 6 महीने में 200 बार जबरदस्ती बनाए संबंध, गर्भवती युवती को HC ने 22 सप्ताह बाद गर्भपात की मंजूरी दी

Edited By Updated: 19 Sep, 2025 11:11 AM

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हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक संवेदनशील और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 30 साल की एक अविवाहित युवती को 22 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मंजूरी दी है। यह फैसला न केवल पीड़ित युवती के लिए न्याय का प्रतीक है, बल्कि...

नई दिल्ली: हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक संवेदनशील और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 30 साल की एक अविवाहित युवती को 22 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मंजूरी दी है। यह फैसला न केवल पीड़ित युवती के लिए न्याय का प्रतीक है, बल्कि महिलाओं के शारीरिक और मानसिक अधिकारों के प्रति अदालत की संवेदनशीलता को भी दर्शाता है।

मामला: दो गर्भधारण और यौन शोषण की दर्दनाक कहानी
यह मामला उस युवती से जुड़ा है जो लगभग दो साल से अपने लिव-इन पार्टनर के साथ रह रही थी। युवती ने आरोप लगाया कि उसके पार्टनर ने शादी का झूठा वादा कर उसे शारीरिक संबंधों के लिए मजबूर किया। पहली बार पिछले साल नवंबर-दिसंबर में वह गर्भवती हुई, जिसके बाद उसे गर्भपात के लिए दबाव डाला गया। हालांकि, इसके बाद भी उसके लिव-इन पार्टनर ने लगभग छह महीने में लगभग 200 बार यौन शोषण किया। इसी दौरान युवती फिर से गर्भवती हो गई।

युवती ने बताया कि उसने दूसरी बार गर्भपात से इनकार कर दिया, जिसके कारण पार्टनर ने उसे पीटा और छोड़ दिया। इसके बाद पीड़िता ने पुलिस में बलात्कार और शारीरिक चोट पहुंचाने के आरोप में शिकायत दर्ज कराई। युवती ने कोर्ट में याचिका दायर की कि यह गर्भावस्था यौन शोषण का नतीजा है और इसे जारी रखना उसके स्वास्थ्य और सामाजिक सम्मान दोनों के लिए खतरा है।

अदालत ने दी संवैधानिक अधिकारों को सर्वोच्चता
दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि किसी भी महिला को उसकी इच्छा के खिलाफ गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करना उसके निजता, गरिमा, जीवन और निर्णय लेने के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि अनचाही गर्भावस्था से महिला को गहरा मानसिक और शारीरिक आघात पहुंचता है, और अगर उसे मजबूर किया गया तो उसकी पीड़ा और बढ़ेगी, साथ ही वह सामाजिक कलंक का भी सामना कर सकती है।

AIIMS की रिपोर्ट ने और मजबूत किया फैसला
अदालत ने फैसले से पहले एम्स के डॉक्टरों की रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा, जिसमें पुष्टि की गई कि युवती गर्भपात के लिए पूरी तरह से स्वस्थ है और इस प्रक्रिया में उसका जीवन खतरे में नहीं है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने एम्स में चिकित्सकीय देखरेख में गर्भपात की अनुमति दी।

कानून और प्रावधान
यह फैसला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट, 1971 के नियमों के अनुरूप है, जिसमें सामान्यत: 20 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति है। हालांकि, 2021 के संशोधन के तहत, यौन उत्पीड़न जैसी विशिष्ट परिस्थितियों में 24 सप्ताह तक गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है। इसके अलावा अदालतों को विशेष परिस्थितियों में 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को खत्म करने का अधिकार भी मिला है, यदि महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो या भ्रूण में असामान्यताएं हों।

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