Edited By Radhika,Updated: 11 Oct, 2025 12:26 PM

भारतीय खान-पान की आदतों को लेकर ICMR और मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन की एक नई और चिंताजनक स्टडी सामने आई है। इस रिसर्च के अनुसार भारतीय अपनी डेली एनर्जी का एक लगभग 62% केवल कार्बोहाइड्रेट से ले रहे हैं, जिसका अधिकांश हिस्सा सफेद चावल और...
नेशनल डेस्क: भारतीय खान-पान की आदतों को लेकर ICMR और मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन की एक नई और चिंताजनक स्टडी सामने आई है। इस रिसर्च के अनुसार भारतीय अपनी डेली एनर्जी का एक लगभग 62% केवल कार्बोहाइड्रेट से ले रहे हैं, जिसका अधिकांश हिस्सा सफेद चावल और प्रोसेस्ड अनाज से आ रहा है। यह असंतुलित आहार भारतीयों में कई गंभीर मेटाबॉलिक बीमारियों का खतरा बढ़ा रहा है। ICMR की इस रिपोर्ट ने दाल-चावल जैसी पारंपरिक भारतीय थाली की संरचना पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

रिपोर्ट में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
ICMR और मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किए गए इस राष्ट्रव्यापी अध्ययन में 30 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और दिल्ली-एनसीआर के 20 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के घर-घर जाकर डेटा एकत्र किया गया। रिसर्च में पाया गया कि भारतीयों के भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत अधिक है, जबकि प्रोटीन की मात्रा कम है और सैचुरेटेड फैट ज्यादा है।
स्टडी के अनुसार उच्च कार्बोहाइड्रेट सेवन से निम्नलिखित स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं:
- टाइप 2 डायबिटीज: 30 % अधिक खतरा
- मोटापा (Obesity): 22 % अधिक खतरा
- पेट की चर्बी (Abdominal Fat): 15 % अधिक खतरा
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि सिर्फ साबुत अनाज का सेवन भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। अगर कोई व्यक्ति गेहूं, बाजरा या चावल की जगह साबुत अनाज का भी अत्यधिक सेवन करता है, तो टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कम नहीं होता।
ये भी पढ़ें- महाभारत का 'AI अवतार': AI के तड़के के साथ फिर से टीवी पर गूंजेगा महाभारत का शंख
एक्सपर्ट्स की राय-
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारतीय थाली में चावल और रोटी (गेहूं) का योगदान बहुत बड़ा होता है, और यह अक्सर प्रोटीन की कमी को दर्शाता है। उनके अनुसार प्रोसेस्ड और सरल कार्बोहाइड्रेट (जैसे रिफाइंड आटा) दोनों ही डायबिटीज के खतरे को बढ़ाते हैं।

विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि रिफाइंड आटे वाली रोटियों की जगह उच्च-फाइबर वाले साबुत अनाज बेहतर ऑप्शन हैं। साथ ही लंबे पॉलिश वाले चावल (white rice) का उपयोग सोच-समझकर और उसकी मात्रा को कम करके करना चाहिए।
बचाव के उपाय
रिसर्च में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मेटाबॉलिक रोगों के बढ़ते खतरे को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। इसके लिए मुख्य रूप से दो बदलाव जरूरी हैं:
- कार्बोहाइड्रेट और सैचुरेटेड फैट की मात्रा घटाना।
- प्रोटीन से युक्त और पौधों पर आधारित (Plant-Based) खाने को बढ़ावा देना।
इसके अलावा नियमित रूप से फिजिकल एक्टिविटी को लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाना भी इन स्वास्थ्य खतरों को कम करने के लिए अनिवार्य है।