Edited By Rohini Oberoi,Updated: 16 Oct, 2025 11:41 AM

भारत में दिवाली का त्योहार खुशियों और समृद्धि का प्रतीक है जब घर रोशनी से जगमगाते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हालांकि इसी पावन अवसर के आसपास एक गहरा और काला सच भी छिपा हुआ है उल्लुओं की अवैध तस्करी और बलि। अंधविश्वास, तांत्रिक अनुष्ठान और...
नेशनल डेस्क। भारत में दिवाली का त्योहार खुशियों और समृद्धि का प्रतीक है जब घर रोशनी से जगमगाते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हालांकि इसी पावन अवसर के आसपास एक गहरा और काला सच भी छिपा हुआ है उल्लुओं की अवैध तस्करी और बलि। अंधविश्वास, तांत्रिक अनुष्ठान और धन की लालसा के चलते हर साल दिवाली नजदीक आते ही इन बेजुबान पक्षियों पर बड़ा संकट मंडराने लगता है।
किन राज्यों में है सबसे ज्यादा खतरा?
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बंगाल जैसे इलाकों में उल्लुओं की तस्करी की गतिविधियां तेज़ हो जाती हैं। तस्कर इन पक्षियों को जंगलों से पकड़कर काले बाज़ार में ऊंचे दामों पर बेचते हैं। वन विभाग की सख्ती और कड़े कानूनों के बावजूद यह क्रूर अपराध हर साल बढ़ता जा रहा है।

दिवाली से पहले क्यों पकड़े जाते हैं उल्लू?
उल्लू को पकड़ने और उनकी बलि देने के पीछे मुख्य रूप से दो कारण हैं:
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मां लक्ष्मी की सवारी: हिंदू मान्यताओं के अनुसार उल्लू मां लक्ष्मी की सवारी हैं। अंधविश्वास में डूबे कुछ लोग मानते हैं कि दिवाली की रात जोकि अमावस्या की रात होती है अगर उल्लू की पूजा की जाए या उसे देखा जाए तो घर में सुख-समृद्धि आती है।
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तांत्रिक अनुष्ठान और बलि: तांत्रिक क्रियाओं में विश्वास रखने वाले लोगों का मानना है कि दिवाली की रात उल्लू की बलि देने से मां लक्ष्मी उनके घर में हमेशा के लिए वास कर लेती हैं। कुछ हिस्सों में यह भी माना जाता है कि उल्लू तांत्रिक शक्तियों का प्रतीक है जिसकी आंखें सम्मोहन करती हैं चोंच दुश्मन को हराने में मदद करती है और पैर को तिजोरी में रखने से धन आता है।
इन्हीं लालच के कारण दिवाली से कुछ हफ्ते पहले ही तस्कर सक्रिय हो जाते हैं। काले बाज़ार में इनकी कीमत हज़ारों से लेकर लाखों रुपये तक लगाई जाती है।

दिवाली पर उल्लुओं के साथ क्या होता है?
दिवाली से लगभग एक महीना पहले पकड़े गए इन पक्षियों को बहुत क्रूरता से रखा जाता है।
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उन्हें अंधेरे और संकरे कमरों में बंद किया जाता है।
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माना जाता है कि तांत्रिक विधियों से तैयार करने के लिए उन्हें मांस और शराब दी जाती है।
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अंततः दिवाली की रात को धन और समृद्धि की झूठी उम्मीद में उनकी बलि दे दी जाती है।
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कुछ तांत्रिक मानते हैं कि देवी लक्ष्मी और उनकी बहन अलक्ष्मी (दरिद्रता की देवी) के बीच संतुलन बनाने के लिए उल्लू की बलि ज़रूरी है।

कानून और सज़ा
भारत में उल्लू एक संरक्षित पक्षी है। भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 के तहत उल्लू को पकड़ना, बेचना या मारना पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस अपराध में दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की जेल और भारी जुर्माना हो सकता है। वन विभाग लगातार तस्करी की कोशिशों को नाकाम कर रहा है लेकिन बाज़ार में डिमांड ज़्यादा होने के कारण तस्कर नए और छिपकर काम करने के तरीके अपनाते रहते हैं।