Edited By Parveen Kumar,Updated: 06 Nov, 2025 01:29 AM

भारत अब केवल एक “मजदूर भेजने वाला देश” नहीं रहा- वह दुनिया की कुशल वर्कफोर्स का केंद्र बन चुका है। OECD की इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब उन देशों में सबसे आगे है, जहां से विकसित अर्थव्यवस्थाएं कुशल और अर्द्ध-कुशल...
नेशनल डेस्क: भारत अब केवल एक “मजदूर भेजने वाला देश” नहीं रहा- वह दुनिया की कुशल वर्कफोर्स का केंद्र बन चुका है। OECD की इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब उन देशों में सबसे आगे है, जहां से विकसित अर्थव्यवस्थाएं कुशल और अर्द्ध-कुशल कर्मचारियों की तलाश में प्रतिभा ला रही हैं।
2023 में ही करीब 6 लाख भारतीय OECD देशों में काम करने गए- यह पिछले साल की तुलना में 8% अधिक है। यानी अब वैश्विक प्रवासन केवल कम मजदूरी वाले कामगारों तक सीमित नहीं, बल्कि डॉक्टरों, नर्सों, इंजीनियरों और टेक प्रोफेशनल्स जैसे स्किल्ड टैलेंट के रूप में भारत से दुनिया तक फैल रहा है।
हेल्थकेयर सेक्टर में भारतीयों का दबदबा बढ़ा
OECD के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, सदस्य देशों में विदेशी डॉक्टरों में भारत शीर्ष तीन में और नर्सों में शीर्ष दो में शामिल है। 2021 से 2023 के बीच OECD देशों में हर 10 प्रवासी डॉक्टरों में से 4 एशिया से थे- जिनमें भारत की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा रही। इसी तरह, हर 3 नर्सों में से 1 भारतीय मूल की थी। अब भारत का हेल्थकेयर माइग्रेशन और भी संरचित और औपचारिक हो चुका है- जैसे
- ब्रिटेन का Health and Care Worker Visa।
- आयरलैंड का International Medical Graduate Training Program।
- इनसे भारतीय हेल्थ प्रोफेशनल्स को विदेशों में काम और ट्रेनिंग के अवसर लगातार बढ़ रहे हैं।
नई नौकरी की राहें और देशों के बीच साझेदारी
भारतीय कर्मचारियों की मौजूदगी अब सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं। वे अब बुजुर्गों की देखभाल, कंस्ट्रक्शन और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया का Aged Care Industry Labour Agreement और भारत-ग्रीस माइग्रेशन पार्टनरशिप (2024) इसका बड़ा उदाहरण हैं। इन समझौतों से स्पष्ट है कि कई देश अब भारत के साथ सीधे कुशल कर्मचारियों की भर्ती के संगठित चैनल स्थापित कर रहे हैं- जिससे भारतीय प्रतिभा के लिए दुनिया के दरवाज़े और खुल गए हैं।
सख्त वीज़ा नियम, फिर भी भारतीयों की मांग बरकरार
कई देशों ने प्रवासन के नियम कड़े किए हैं- जैसे पोलैंड में कॉन्ट्रैक्ट की अनिवार्यता, लातविया में न्यूनतम वेतन की शर्त, और फिनलैंड में वेरिफिकेशन सिस्टम लागू हुआ है। इन सबका उद्देश्य कर्मचारियों का शोषण रोकना है।
लेकिन इसके बावजूद, भारतीय वर्कर्स की मांग कम नहीं हुई- बल्कि अब भर्ती प्रक्रियाएँ ज्यादा पारदर्शी और स्किल-बेस्ड हो गई हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारतीय महिलाओं की भागीदारी भी तेजी से बढ़ी है, खासकर शिक्षा और केयर सेक्टर में। साथ ही विदेशों में पढ़ने वाले कई भारतीय स्टूडेंट्स वहीं स्थायी रोजगार भी पा रहे हैं- जिससे हेल्थ, आईटी और रिसर्च सेक्टर में भारतीयों की मौजूदगी और मज़बूत हुई है।
‘मजदूर नहीं, स्किल्स का एक्सपोर्टर’ बना भारत
OECD रिपोर्ट साफ़ कहती है- अब भारत सिर्फ़ कामगार नहीं भेज रहा, वह कौशल का निर्यात कर रहा है। डॉक्टरों से लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियरों तक, भारतीय प्रोफेशनल्स दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में काम की कमी पूरी कर रहे हैं।
हालांकि रिपोर्ट यह भी चेतावनी देती है- अगर यही रफ्तार जारी रही, तो भारत को अपने ही देश में वर्कफोर्स प्लानिंग मज़बूत करनी होगी, ताकि घरेलू सेक्टर- ख़ासकर हेल्थकेयर- में कर्मचारियों की कमी न हो जाए।