भारत पर नाटो की संभावित नाराज़गी: रूसी तेल खरीद को लेकर बढ़ सकता है पश्चिमी दबाव

Edited By Updated: 20 Jul, 2025 09:21 PM

western pressure may increase over purchase of russian oil

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत द्वारा रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदने की नीति अब वैश्विक चर्चा का विषय बन गई है। नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) और पश्चिमी देशों के बीच यह चिंता बढ़ रही है कि भारत, जो एक बड़ा लोकतंत्र और कई पश्चिमी देशों का रणनीतिक...

नेशनल डेस्क: रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत द्वारा रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदने की नीति अब वैश्विक चर्चा का विषय बन गई है। नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) और पश्चिमी देशों के बीच यह चिंता बढ़ रही है कि भारत, जो एक बड़ा लोकतंत्र और कई पश्चिमी देशों का रणनीतिक साझेदार है, रूस के खिलाफ उनके सख्त रुख के साथ पूरी तरह क्यों नहीं खड़ा हो रहा।

हालांकि अभी तक नाटो की ओर से कोई आधिकारिक बयान या प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय हलकों में भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों या दंडात्मक कदमों की अटकलें लगाई जा रही हैं। यह मसला सिर्फ तेल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति, उसकी बढ़ती वैश्विक भूमिका और परंपरागत पश्चिमी दबावों को न मानने के संकेत भी देता है।

रूसी तेल खरीद से बढ़ी बेचैनी

रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों ने फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद कई कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इनका मकसद रूस को वैश्विक मंच से अलग-थलग करना था, जिसमें तेल और गैस जैसे ऊर्जा संसाधन भी शामिल थे, क्योंकि यही रूस की आमदनी का बड़ा जरिया हैं।

इसी दौरान भारत ने रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदना शुरू किया, जिससे उसे अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने में मदद मिली। भारत का यह कदम आर्थिक दृष्टि से व्यवहारिक था, लेकिन पश्चिम इसे अपने प्रतिबंधों की प्रभावशीलता में बाधा मान रहा है।

भारत का रुख साफ

भारत ने कई बार स्पष्ट किया है कि रूस के साथ उसके संबंध पुराने और रणनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार है, जिससे भारत को करीब 60% सैन्य साजो-सामान मिलता है। भारत का यह भी कहना है कि उसकी तेल खरीद का उद्देश्य सिर्फ अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना है, न कि यूक्रेन युद्ध में किसी पक्ष का समर्थन करना।

भारत लगातार कूटनीतिक समाधान, बातचीत और अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान की वकालत करता रहा है। नई दिल्ली का रुख हमेशा से यह रहा है कि वह गुटनिरपेक्ष और स्वायत्त विदेश नीति अपनाता है।

भारत पर दबाव बनाना उलटा पड़ सकता है

नाटो और पश्चिमी देशों की ओर से भारत पर दबाव बनाना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है। आज का भारत शीत युद्ध काल के मुकाबले काफी बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई है, चाहे वह क्वाड, G20 की अध्यक्षता या वैश्विक दक्षिण की आवाज़ उठाना हो।

भारत ने पहले भी पश्चिमी दबावों का सामना किया है- जैसे अमेरिका के CAATSA कानून के बावजूद रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदना, या जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने जैसे घरेलू मामलों पर अपने रुख पर कायम रहना। इन उदाहरणों से यह साफ है कि भारत अब निर्णय लेने में स्वतंत्र और आत्मविश्वासी है।

भारत की विदेश नीति: संतुलन और संप्रभुता की मिसाल

भारत किसी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं है और उसकी विदेश नीति का मूल सिद्धांत रणनीतिक स्वायत्तता है। यह नीति उसके औपनिवेशिक अतीत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की विरासत से जुड़ी हुई है। आज भारत, एक ओर अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहा है, तो दूसरी ओर रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को भी बनाए रख रहा है। यही पूर्व और पश्चिम के बीच संतुलन भारत की विदेश नीति की पहचान बन चुका है।

Related Story

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!