Dollar- Rupee की तुलना में क्यों मजबूत हो रहा है ? जानें इसकी वजह और कैसे काम करता है currency का गिरना और बढ़ना

Edited By Updated: 12 Nov, 2024 04:51 PM

why is the dollar getting stronger than the rupee

डॉलर की तुलना में रुपये की कमजोरी बढ़ने की मुख्य वजह भारत का व्यापार घाटा और डॉलर की मांग है। अमेरिका की मजबूत आर्थिक स्थिति और उच्च ब्याज दरें डॉलर को मजबूती देती हैं, जबकि भारत का आयात अधिक होता है, जिससे रुपये की कीमत घटती है। रिजर्व बैंक विदेशी...

नेशनल डेस्क: भारत में इन दिनों डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत लगातार गिर रही है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो आम नागरिक से लेकर अर्थशास्त्रियों तक को चिंतित करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि डॉलर और रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव कैसे काम करता है? इस लेख में हम आपको बताएंगे कि डॉलर क्यों मजबूत हो रहा है और रुपये की कीमत घट क्यों रही है।

डॉलर और रुपये के बीच के अंतर को समझें
सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि दुनिया में व्यापार का बड़ा हिस्सा अमेरिकी डॉलर में होता है। करीब 85% अंतर्राष्ट्रीय व्यापार डॉलर में ही होता है। इसका मतलब है कि जब भी किसी देश को दूसरे देशों से सामान खरीदने की जरूरत होती है, तो उसे डॉलर की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि अमेरिकी डॉलर की मांग हमेशा अधिक रहती है, जिससे डॉलर की कीमत बढ़ती है और रुपये जैसी अन्य मुद्राएं कमजोर होती हैं।

रुपये के कमजोर होने की वजह
भारतीय रुपया कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) है। व्यापार घाटा तब होता है जब किसी देश का आयात (Import) उसके निर्यात (Export) से अधिक होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि भारत को अन्य देशों से अधिक सामान खरीदने के लिए डॉलर की जरूरत होती है। जब डॉलर की मांग बढ़ती है और भारतीय रुपया अपेक्षाकृत कम होता है, तो इससे रुपये की कीमत गिरने लगती है। भारत में तेल, गैस, सोना जैसी चीजों का आयात डॉलर में किया जाता है। इसी वजह से, जैसे-जैसे इन वस्तुओं की कीमत बढ़ती है, वैसे-वैसे डॉलर की मांग भी बढ़ जाती है और रुपये की कीमत कमजोर होती जाती है। 

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की भूमिका
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का मुख्य काम देश की मुद्रा की स्थिरता बनाए रखना है। जब रुपया गिरता है तो रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) का उपयोग करके रुपये की मांग को बढ़ाने के लिए डॉलर की आपूर्ति बढ़ाता है। हालांकि, यह प्रक्रिया हमेशा पूरी तरह से सफल नहीं होती। यदि विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ता है, तो रुपये की कमजोरी बढ़ जाती है। RBI की कोशिश होती है कि रुपये को गिरने से बचाने के लिए बाजार में डॉलर की आपूर्ति की जाए, ताकि मुद्रा का संतुलन बनाए रखा जा सके।

डॉलर की मजबूती के कारण
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मजबूती के पीछे कई कारण हो सकते हैं। इनमें से एक प्रमुख कारण है अमेरिका की आर्थिक स्थिति। जब अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो निवेशक अमेरिकी डॉलर में अपना पैसा लगाना शुरू कर देते हैं, जिससे डॉलर की कीमत बढ़ जाती है। इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर पूरी दुनिया में प्रमुख रिजर्व मुद्रा के रूप में माना जाता है, जो इसे वैश्विक स्तर पर सबसे मजबूत मुद्रा बनाता है। अमेरिका के निवेश में बढ़ोतरी और डॉलर में जमा पूंजी की मांग डॉलर की कीमत को और मजबूती देती है।

भारत में डॉलर की स्थिति
भारत में डॉलर की कीमत बढ़ने के कारण कई चीजों का असर होता है। अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, जिससे महंगाई (Inflation) बढ़ती है। इसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है, क्योंकि विदेशी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होती है।इसके अलावा, अगर रुपये की कीमत लगातार गिरती रहती है, तो इसका असर भारतीय कंपनियों और कारोबारों पर भी पड़ता है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करते हैं। इस स्थिति में वे महंगे विदेशी कच्चे माल का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है और यह भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है।

क्या कभी रुपये की कीमत बढ़ी है?
ऐसा भी हुआ है जब रुपये डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ था। उदाहरण के लिए, 2003 से 2005 के बीच रुपये की स्थिति मजबूत हुई थी और करीब 2.5 रुपये तक की बढ़त देखी गई थी। 2007 में भी रुपये ने करीब 3 रुपये की मजबूती दिखाई थी। लेकिन, इन मजबूत समयों के बावजूद, भारत का व्यापार घाटा और डॉलर की बढ़ती मांग रुपये की मजबूती को लंबे समय तक बनाए नहीं रख सकी।

भविष्य में क्या हो सकता है?
आने वाले समय में रुपये के कमजोर होने या मजबूत होने के कई कारण हो सकते हैं। इसके लिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार, आयात-निर्यात के आंकड़े, वैश्विक आर्थिक स्थिति और अमेरिका की ब्याज दरों में परिवर्तन जैसे तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना एक जटिल और परस्पर जुड़े हुए कारणों का परिणाम है। इससे सिर्फ मुद्रा बाजार पर असर नहीं पड़ता, बल्कि आम आदमी की आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव डालता है। भारत को अपनी मुद्रा की स्थिरता बनाए रखने के लिए व्यापार घाटे को नियंत्रित करना, विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करना और घरेलू उत्पादन को बढ़ाना जरूरी होगा। 

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