रेलवे स्टेशन के बोर्ड पर 'समुद्र तल से ऊंचाई' क्यों लिखा जाता है? मजेदार है इसके पीछे की वजह

Edited By Updated: 27 Nov, 2025 08:30 PM

why railway stations show altitude

भारतीय रेलवे यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखते हुए स्टेशन बोर्ड पर “समुद्र तल से ऊंचाई” लिखता है। पीले रंग के बोर्ड दूर से स्पष्ट दिखते हैं और लोको पायलट को सतर्क करते हैं। ऊंचाई का उपयोग पटरियों की ढलान, गति और शक्ति नियंत्रित करने...

नेशनल डेस्क: भारतीय रेलवे यात्रियों के सफर को अधिक सुविधाजनक और सुरक्षित बनाने के लिए लगातार नई पहल कर रहा है। यही कारण है कि आज भारत का रेल नेटवर्क पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन चुका है। रोजाना करोड़ों यात्रियों को समय पर उनके गंतव्य तक पहुँचाने के साथ रेलवे उनके अनुभव को बेहतर बनाने के लिए भी निरंतर प्रयासरत है। अक्सर ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों के मन में कई सवाल उठते हैं। जैसे रेलवे स्टेशन के बोर्ड पीले रंग के क्यों होते हैं और उन पर “समुद्र तल से ऊंचाई” क्यों लिखी जाती है? बोर्ड देखते ही यह सवाल लगभग हर यात्री के मन में आता है। आइए जानते हैं कि इन संकेतों का आखिर क्या महत्व है।

पीले रंग के क्यों होते हैं बोर्ड
भारतीय रेलवे में स्टेशनों के नाम दर्शाने वाले बोर्ड हमेशा पीले रंग के बैकग्राउंड पर काले अक्षरों में लिखे होते हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि पीला रंग दूर से सबसे स्पष्ट दिखाई देता है और कोहरे, धुंध, बारिश या कम रोशनी की स्थिति में भी आसानी से पहचाना जा सकता है। यह रंग लोको पायलट को दूर से ही सतर्क कर देता है कि आगे स्टेशन आने वाला है, जिससे वह गति नियंत्रित कर सके। पीला रंग पार्श्व दृष्टि में भी जल्दी दिखाई देता है, इसलिए यह सुरक्षा के लिहाज से सबसे उपयुक्त माना जाता है। ट्रैफिक सिग्नल की तरह पीला रंग सावधानी का भी संकेत देता है। यही कारण है कि पीले बैकग्राउंड पर काले अक्षर रेलवे में मानक के रूप में अपनाए जाते हैं।

समुद्र तल से ऊंचाई क्यों लिखी जाती है
अब बात उस जानकारी की, जिसे जानने के लिए यात्री हर बार बोर्ड को ध्यान से पढ़ते हैं “समुद्र तल से ऊंचाई” यानी स्टेशन की ऊंचाई समुद्र के औसत स्तर से कितनी है। ixigo की जानकारी के अनुसार, सबसे पहले रेलवे निर्माण के समय इस ऊंचाई का उल्लेख बेहद महत्वपूर्ण था। इससे पटरियों की ढलान तय करने में आसानी होती थी और स्टेशनों का निर्माण ऐसे स्थानों पर किया जाता था, जहाँ बाढ़ और समुद्र के ऊँचे ज्वार का खतरा न हो। यह जानकारी लोको पायलट के लिए भी अहम रहती थी। उदाहरण के लिए, अगर एक स्टेशन 100 मीटर और दूसरा 200 मीटर की ऊंचाई पर है, तो इंजन को चढ़ाई पर अतिरिक्त शक्ति की जरूरत होगी। इसी प्रकार उतराई में गति नियंत्रण की आवश्यकता रहती थी। ऊंचाई के आधार पर लोको पायलट स्टेशन के बीच शक्ति और गति के संतुलन का निर्णय लेते थे।

यह भी जानें 
स्टेशन बोर्ड पर लिखी ऊंचाई का उपयोग भवन निर्माण और क्षेत्रीय विकास योजनाओं में भी किया जाता था। कई सरकारी दस्तावेजों में भी स्टेशन की ऊंचाई का उल्लेख तकनीकी कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। हालांकि, आधुनिक तकनीक और स्वचालित सिस्टम आने के बाद अब ट्रेनों की गति, ढलान, मौसम और ट्रैक की स्थिति की निगरानी डिजिटल तरीके से की जाती है। इसी कारण नए बनाए गए कई रेल स्टेशनों पर “समुद्र तल से ऊंचाई” का उल्लेख अब नहीं मिलता। फिर भी पुराने स्टेशनों पर यह जानकारी आज भी देखी जा सकती है, जो रेल इतिहास और तकनीकी आवश्यकताओं की एक महत्वपूर्ण निशानी है।

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