जनगणना करवाने के प्रश्न पर सरकार खामोश

Edited By Updated: 28 Sep, 2023 05:45 AM

government silent on the question of conducting census

साल के अंत में 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों को लोग अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पूर्व सैमीफाइनल मान रहे हैं। कई मायनों में सभी राजनीतिक दलों के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी होगी। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में मतदाता...

साल के अंत में 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों को लोग अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पूर्व सैमीफाइनल मान रहे हैं। कई मायनों में सभी राजनीतिक दलों के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी होगी। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में मतदाता अपना फैसला सुनाएंगे। इन राज्यों में पिछले विधानसभा चुनावों में जोकि आम चुनावों से कुछ महीने पहले हुए थे, के नतीजों को देखें तो यह जरूरी नहीं है कि इन नतीजों का असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों पर पड़े। 

2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं जबकि भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। प्रतिशत के हिसाब से भाजपा को कांग्रेस से अधिक वोट मिले हैं। हालांकि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 1 को छोड़ कर बाकी सभी सीटें जीत लीं। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने और 22 विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी और शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता की बागडोर संभाली थी। राजस्थान में 2018 में बहुमत से एक सीट कम रहने के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। बाद में उसने बहुजन समाज पार्टी के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन 2019 में भाजपा ने राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 24 पर जीत हासिल की थी। 

कांग्रेस ने 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भाजपा की 15 सीटों के मुकाबले 68 सीटें जीत कर शानदार जीत हासिल की थी। फिर भी अगले साल लोकसभा चुनावों में भाजपा को 9 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस ने शेष 2 सीटें जीतीं।  तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) ने भारी बहुमत हासिल किया और कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही जबकि भाजपा सिर्फ एक ही सीट जीत सकी। हालांकि भाजपा ने 17 लोकसभा सीटों में से 4 पर जीत हासिल की जबकि टी.आर.एस. ने 9 और कांग्रेस ने 3 सीटें जीतीं। अंतिम राज्य मिजोरम-मिजो नैशनल फ्रंट द्वारा शासित है और इसमें केवल एक लोकसभा सीट है जो वर्तमान में एम.एन.एफ. के पास है। 

हालांकि इन पांच राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों को उनके दावों, प्रतिदावों और नेतृत्व स्तर पर प्रदर्शन के आधार पर परखा जाएगा। लेकिन दिलचस्पी का एक प्रमुख मुद्दा महिला आरक्षण होगा। भले ही लोकसभा ने महिला आरक्षण विधेयक को केवल 2 सांसदों के विरोध के साथ भारी बहुमत से पारित कर दिया था और राज्यसभा ने इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया था, यह सर्वविदित है कि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण 2029 के चुनावों से पहले लागू नहीं होगा। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि दरअसल आरक्षण में और भी देरी हो सकती है। 

लोकसभा और विधानसभा सीटों के प्रस्तावित परिसीमन के साथ महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण को जोडऩे से आरक्षण के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा हो गई है। यह सर्वविदित है कि जनगणना के बाद ही परिसीमन संभव है और सरकार जनगणना करवाने को लेकर चुप्पी साधे बैठी है। 

आरक्षण विधेयक पर जबरदस्त प्रतिक्रिया राजनीतिक दलों की ओर से आई है। जिन्होंने पहले इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। जाहिर तौर पर ये पाॢटयां इस डर से विधेयक का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकीं कि देश की अधिकांश मतदाता आबादी नाराज हो जाएगी और वे अपने वोट खोने का जोखिम नहीं उठा सकते। महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में वोट देने का कारण जो भी हो, अब सभी राजनीतिक दलों के लिए महिलाओं के प्रति अपनी वास्तविक ङ्क्षचता दिखाने का समय आ गया है। भाजपा और कांग्रेस सहित इन पार्टियों को महिलाओं को 33 प्रतिशत सीटें आबंटित करने से पहले निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन का इंतजार क्यों करना चाहिए? 5 राज्यों के आगामी चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में महिलाओं को इतने सारे टिकट क्यों नहीं आबंटित किए जाएं। 

इस तथ्य के बावजूद कि देश की 49 प्रतिशत से अधिक आबादी महिला विंग की है, देश में चुनावी प्रक्रिया में उन्हें दिया गया प्रतिनिधित्व बेहद खराब बना हुआ है। मौजूदा लोकसभा में महिलाओं का प्रतिशत महज 14.4 फीसदी है। किसी भी राज्य की विधानसभा में 15 प्रतिशत से अधिक महिलाएं नहीं हैं। अनिवार्य कानून लागू किए बिना महिलाओं के लिए टिकट आरक्षण का विस्तार करना, यह साबित करेगा कि यह राजनीतिक दल केवल लाभ कमाने की कोशिश नहीं कर रहे थे बल्कि महिलाओं को सशक्त बनाने में ईमानदारी से रुचि रखते थे। इनमें से प्रत्येक राजनीतिक दल आगामी चुनावों में महिलाओं के लिए कम से कम 33 प्रतिशत टिकट आबंटित करें। ऐसा करने के लिए इन दलों को निर्वाचन क्षेत्रों के नए सिरे से परिसीमन की जरूरत नहीं है।-विपिन पब्बी 
 

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