कानून मंत्री के लिए बड़ा वकील होना जरूरी नहीं

Edited By ,Updated: 20 May, 2023 04:58 AM

it is not necessary for a law minister to be a big lawyer

केंद्र सरकार ने बड़ा बदलाव करते हुए किरण रिजिजू को हटाकर अर्जुन राम मेघवाल को नया कानून मंत्री बनाया है। इस बदलाव के पीछे सबसे बड़ा कयास यह है कि एक साल बाद आम चुनाव के दौर में केंद्र सरकार न्यायपालिका के साथ टकराव की बजाय सुलह के मूड में है। रिजिजू...

केंद्र सरकार ने बड़ा बदलाव करते हुए किरण रिजिजू को हटाकर अर्जुन राम मेघवाल को नया कानून मंत्री बनाया है। इस बदलाव के पीछे सबसे बड़ा कयास यह है कि एक साल बाद आम चुनाव के दौर में केंद्र सरकार न्यायपालिका के साथ टकराव की बजाय सुलह के मूड में है। रिजिजू को कैबिनेट मंत्री का दर्जा था लेकिन मेघवाल को स्वतंत्र राज्य मंत्री का दर्जा देकर बड़े फैसलों के लिए उन्हें प्रधानमंत्री के अधीन कर दिया गया है। 

मेघवाल के वकील नहीं होने पर कई लोग आपत्ति कर रहे हैं। मेघवाल वकील भले ही नहीं रहे हों, लेकिन बीकानेर से उन्होंने एल.एल.बी. और मास्टर की डिग्री हासिल की है। आजादी के बाद डा. बी.आर. अंबेडकर, अशोक कुमार सेन, शांति भूषण, हंसराज खन्ना, राम जेठमलानी, पी. चिदंबरम, अश्विनी कुमार, अरुण जेतली, सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल और रविशंकर प्रसाद जैसे बड़े वकील कानून मंत्री हुए हैं। लेकिन अनेक राजनेताओं ने बड़ा वकील हुए बगैर भी कानून मंत्री के तौर पर सफल पारी खेली है। उनमें बिंदेश्वरी प्रसाद, पी.वी. नरसिम्हा राव, डा. सुब्रमण्यम स्वामी, जे. कृष्णमूर्ति और डी.वी. सदानंद गौड़ा जैसे अनेक राजनेता शामिल हैं। 

पूर्व कानून मंत्री रिजिजू विधि स्नातक थे लेकिन उन्होंने वकालत नहीं की। इसलिए कानून मंत्री के तौर पर सफल होने के लिए वकील होने से ज्यादा संवैधानिक मूल्यों के प्रति वचनबद्धता ज्यादा जरूरी है। 50 साल पहले डाक और तार विभाग में टैलीफोन ऑपरेटर से अपने करियर की शुरूआत करने वाले मेघवाल बाद में आई.ए.एस. सेवा से रिटायर हुए। केंद्र सरकार में अनेक महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने के साथ वह पार्टी के चीफ व्हिप भी रह चुके हैं। बेहद सादा जीवन जीने वाले मेघवाल साइकिल से संसद जाने के लिए भी सराहे जाते हैं। पूर्व कानून मंत्री रिजिजू पूर्वोत्तर के आदिवासी समुदाय से जुड़े थे, तो मेघवाल भाजपा का दलित चेहरा हैं। आजादी की 75वीं वर्षगांठ में संविधान के जनक डा. बी.आर. अंबेडकर से मेघवाल को जोडऩे की सियासी कोशिश से राजस्थान विधानसभा के साथ संसद के आम चुनावों में भाजपा को फायदा हो सकता है। 

न्यायपालिका के साथ टकराव कम करने के लिए कानून बनें : सौम्यता और सरलता की वजह से मेघवाल को संसदीय मामलों का राज्य मंत्री भी बनाया गया है। उनकी इस खूबी से सरकार का न्यायपालिका के साथ टकराव कम होने की उम्मीद लगाई जा रही है। मंत्री पद का कार्यभार लेने के बाद मेघवाल ने कहा कि संविधान की मर्यादा में सभी काम करें तो टकराव की कोई गुंजाइश नहीं होगी। उन्होंने सबको जल्दी और सुलभ न्याय देने की बात दोहराई, जिसके बारे में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री मोदी और चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ कई बार चिंता जाहिर कर चुके हैं। जनता को जल्द न्याय मिले, इसके लिए संसद, सरकार और सुप्रीमकोर्ट को टकराव की बजाय संविधान के तहत अपनी भूमिका निभाने की जरूरत है। 

मेघवाल ने जल्द न्याय देने के लिए टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल और वर्चुअल कोर्ट से आमजन को जोडऩे की बात कही है। लेकिन टैक्नोलॉजी के सफल इस्तेमाल के लिए मेघवाल को कानून मंत्री के नाते डाटा सुरक्षा कानून, टैलीकॉम कानून और डिजिटल इंडिया जैसे कानूनों को संसद का कार्यकाल खत्म होने के पहले ही लागू कराना होगा। संविधान के अनुसार न्यायपालिका के काम में सरकारी हस्तक्षेप नहीं हो सकता, इसलिए तेज गति से न्याय देने के बारे में सरकार के हाथ बंधे दिखते हैं। कॉलेजियम से हो रही जजों की नियुक्ति के सिस्टम को बदलने के लिए भी नया कानून बनाना होगा। 

सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ ने सेम सैक्स मैरिज को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर लंबी सुनवाई पूरी की है। गर्मियों की छुट्टियां खत्म होने के बाद उस मामले पर कोई भी फैसला विस्फोटक होगा। आई.पी.सी. की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध माना गया था। उसको दिल्ली हाईकोर्ट ने सन 2009 में निरस्त कर दिया था। 

दिलचस्प बात यह है कि उस फैसले के खिलाफ विपक्षी सांसद मेघवाल ने सन 2012 में संसद में प्राइवेट बिल पेश किया था। सेम सैक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के खिलाफ विश्व हिंदू परिषद समेत संघ परिवार और अन्य धार्मिक संगठनों ने घोर आपत्ति जाहिर की है। कुछ महीने बाद इस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बहस और विग्रह बढ़ेगा। उस फैसले से जुड़े विरोधाभासों से निपटने में कानून मंत्री के नाते मेघवाल कैसी भूमिका निभाते हैं, उसके अनुसार ही उनकी सफलता का ग्राफ निर्धारित होगा।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)  
 

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