पाकिस्तान को लोकतंत्र कभी रास ही नहीं आया

Edited By Updated: 21 Sep, 2023 05:42 AM

pakistan never liked democracy

भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान आज भयंकर और डरावने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और संवैधानिक संकट से गुजर रहा है। देश के बड़े हिस्से में मध्यकालीन जागीरदारी और सामंतवादी सिस्टम सरकारी संस्थाओं पर भारी पडऩे के कारण सामाजिक और राजनीतिक जुल्म और...

भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान आज भयंकर और डरावने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और संवैधानिक संकट से गुजर रहा है। देश के बड़े हिस्से में मध्यकालीन जागीरदारी और सामंतवादी सिस्टम सरकारी संस्थाओं पर भारी पडऩे के कारण सामाजिक और राजनीतिक जुल्म और गुलामी वाली व्यवस्था स्थापित हो चुकी है। 

पाकिस्तान को लोकतंत्र कभी रास ही नहीं आया। सैन्य, जागीरदारी, मौलानावाद और स्थापित निजाम ने कभी भी इसके पांव लगने नहीं दिए। वर्ष 1958 में जब जनरल आयूब खान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री सिकंदर मिर्जा का तख्ता पलट कर सैन्य शासन स्थापित कर लिया था तो इसने इस देश में से लोकतांत्रिक के सदैव खात्मे की घोषणा करते हुए जो शब्द कहे वे आज भी पाकिस्तान की हकीकत की गवाही दे रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र सर्द देशों का राज करने का तरीका नहीं है। गर्म देशों का भी नहीं।’’ बेशक भारत जैसे गर्म आबो-हवा वाले देश ने इसे गलत करार दिया मगर पाकिस्तान की यही बदकिस्मत हकीकत है।

वर्तमान राजनीतिक संकट : पाकिस्तान की नैशनल असैंबली 9 अगस्त 2023 को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सिफारिश पर राष्ट्रपति डा. आरिफ अल्वी ने भंग कर दी। संविधान की धारा-48 (5) वर्ष 1973 के अनुसार राष्ट्रपति असैंबली भंग होने के 90 दिनों में चुनाव की तारीख की घोषणा करता है तथा चुनाव आयोग चुनाव करवाता है। इस दौरान राष्ट्रपति कार्यवाहक सरकार का गठन करता है। यह सरकार कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवर उल हक काकड़ के नेतृत्व में गठित कर दी गई। राष्ट्रपति चुनावों की तारीख तय करने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त सिकंदर रजा को पत्र लिखते हैं। वह किनारा करते हुए यह संकेत देते हैं कि संशोधित चुनाव एक्ट 2014 के द्वारा धारा-57 अनुसार अब चुनाव की तारीख और चुनाव कराने का अधिकार चुनाव आयोग के पास है। 

राष्ट्रपति तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी से संबंधित हैं। उन्होंने उस पर जोर देकर कहा कि चुनाव की तारीख की घोषणा करें। उन्होंने 12 सितंबर को 6 नवम्बर 2023 की तारीख की घोषणा कर दी लेकिन मुस्लिम लीग (नवाज) कार्यवाहक सरकार तथा अन्य पार्टियों को यह स्वीकार्य नहीं। पेंच यह है कि यह घोषणा गैर-संवैधानिक है। डा. अल्वी 4  सितम्बर 2018 को राष्ट्रपति नियुक्त हुए थे और उन्होंने 9 सितम्बर को शपथ ग्रहण की थी। इस तरह 8 सितम्बर 2023 को उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। सूचना मंत्रालय सचिव मरियम औरंगजेब के अनुसार वह अपना बिस्तर बांध कर तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के कार्यालय चले जाएं। 

कार्यवाहक प्रधानमंत्री काकड़ का कहना है कि राष्ट्रपति ने चुनाव की तारीख घोषित कर दी है मगर अब चुनाव आयोग देखेगा कि कौन-सा दिन या तारीख घोषित करनी है। क्षेत्र हदबंदी कार्य चल रहा है। संविधान के अनुसार इसके पूरा होने पर 54 दिन चुनावी मुहिम के लिए राजनीतिक पार्टियों को देने होते हैं। इस तरह चुनाव आयोग जनवरी 2024 के मध्य या अंत में चुनाव की घोषणा कर सकेगा मगर फिर संविधान के अनुसार असैंबली भंग होने के 90 दिनों में चुनाव करवाने का क्या बनेगा? संशोधित चुनाव एक्ट 2017 के क्या मायने हैं? इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का इंतजार है। 

नवाज शरीफ की वापसी : उधर नवाज शरीफ लंदन के सर्द मौसम की दस्तक में जबरदस्त गर्मी महसूस करते हुए वतन वापसी कर रहे हैं। नवाज नवम्बर 19, 2019 को लंदन में बीमारी के बहाने चले गए थे। उन्हें अल-अजीजा मिल्ज और एवनफील्ड मामलों में दोषी पाया गया था। उन्हें वर्ष 2020 में अदालत ने भगौड़ा करार दिया था मगर पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के अनुसार उनका बड़ा भाई 21 अक्तूबर को स्वदेश लौट रहा है। यदि मुस्लिम लीग (नवाज) चुनाव जीतती है तो वह चौथी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनेंगे। देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालेंगे तथा पाकिस्तान में नई शुरूआत का माहौल बनाएंगे। 

वास्तव में पाकिस्तान में कहीं भी लोकतंत्र, कानून का राज या जनतक आजादी नहीं है। यह शरीफ बंधु, भुट्टो परिवार, इमरान खान तथा अन्य क्षेत्रीय नेता पाकिस्तानी सेना, बदनाम आई.एस.आई., मौलानावाद और जागीरदारी सिस्टम के शासन के भाड़े के टट्टू हैं। झूठ, लूट, जमीररहित राजनीति के सौदागर हैं। जनरल जिया-उल-हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्ता ही नहीं पलटा बल्कि उन्हें फांसी पर भी चढ़ाया। पाकिस्तान कट्टरवाद, धार्मिक मौलानावाद के सुपुर्द कर दिया गया है। क्या भुट्टो परिवार, शरीफ बंधु या इमरान खान ने कोई सबक सीखा? सत्ता के लिए सेना और बदनाम खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. के पालतू बने रहे। राजनीतिक अस्तित्व के लिए पाकिस्तान भारत के खिलाफ जम्मू-कश्मीर, पंजाब तथा अनेक स्थानों पर आतंकवाद को शह देता रहा है। 

पाकिस्तान के सिर पर इतना कर्ज है जो यह वापस नहीं कर सकता। आई.एम.एफ. इसको कहता है कि सैन्य खर्च में कटौती की जाए। सबसिडियां कम की जाएं, बिजली, तेल तथा अन्य वस्तुओं पर टैक्स लगाओ फिर वह पाकिस्तान को राहत देगा। चारों ओर हाहाकार मची हुई है। पैट्रोल 320 रुपए प्रति लीटर, आटा 160 से 200 रुपए प्रति किलो और एक अमरीकी डालर पाकिस्तान के 300 रुपए के बराबर हैं।-दरबारा सिंह काहलों
 

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