Edited By ,Updated: 19 Jun, 2015 08:52 AM
एक ही परमात्म-तत्व की निर्गुण, सगुण, निराकार, साकार, देव, देवी, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति आदि अनेक रूप से साधक लोग साधना करते हैं। रहस्य को जानकर शास्त्र और गुरुजनों के बतलाए हुए मार्ग के अनुसार साधना करने वाले सभी साधकों को उनकी प्राप्ति हो सकती...
एक ही परमात्म-तत्व की निर्गुण, सगुण, निराकार, साकार, देव, देवी, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति आदि अनेक रूप से साधक लोग साधना करते हैं। रहस्य को जानकर शास्त्र और गुरुजनों के बतलाए हुए मार्ग के अनुसार साधना करने वाले सभी साधकों को उनकी प्राप्ति हो सकती है। उस दया सागर प्रकृति की जितनी भी शक्तियां हैं वे सब ईश्वरीय शक्ति की ही अनुचर हैं। इसी से उस मूलशक्ति को सर्व-सामर्थ्य युक्त कहा गया है।
काली मंत्र: क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-जीवन के चारों ध्येयों की आपूर्ति करने में समर्थ है आठ अक्षरों का यह मंत्र। इस मंत्र का जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। विश्व में जहां कहीं शक्ति का स्फुरण दिखता है वहां सनातन प्रकृति अथवा काली की ही सत्ता है। काली समस्त क्रिया की मूल हैं। वहीं क्रियाशील ‘शक्ति’ हैं। सृष्टिकर्ता अपनी शक्ति से हीन होने पर सृष्टिकर्ता नहीं कर जाता आदि शक्ति मां काली स्वयं कहती हैं :
‘‘मैं ब्रह्मांड अधीश्वरी हूं। मैं ही सारे कर्मों का फल देने वाली और ऐश्वर्य देने वाली हूं। मैं चेतन एवं सर्वेश्वरी हूं। मैं एक होते हुए भी अपनी शक्ति से अनेक रूपों में रहती हूं। मैं धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करती हूं और शत्रु का संहार कर पृथ्वी पर शांति की स्थापना करती हूं। मैं ही भू-लोक और स्वर्ग लोक का विस्तार करती हूं। मैं जननी हूं जैसे वायु स्वयं चलती है वैसे ही मैं भी अपनी इच्छा से समस्त विश्व की रचना करती हूं। मैं सर्वथा स्वतंत्र हूं। मुझ पर किसी का आधिपत्य नहीं है। मैं आकाश और पृथ्वी से परे हूं। अखिल विश्व मेरी विभूति है। मैं अपनी शक्ति से यह सब कुछ हूं।’’
—पं. राशि मोहन बहल