Edited By Prachi Sharma,Updated: 10 Oct, 2025 07:01 AM

Chanakya Niti: चाणक्य नीति, आचार्य चाणक्य के गहन जीवन अनुभवों और मानव स्वभाव के अध्ययन पर आधारित एक अमूल्य ग्रंथ है। उनके अनुसार, डर मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी क्षमता, साहस और निर्णय लेने की शक्ति को क्षीण कर देता है। चाणक्य ने स्पष्ट...
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Chanakya Niti: चाणक्य नीति, आचार्य चाणक्य के गहन जीवन अनुभवों और मानव स्वभाव के अध्ययन पर आधारित एक अमूल्य ग्रंथ है। उनके अनुसार, डर मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी क्षमता, साहस और निर्णय लेने की शक्ति को क्षीण कर देता है। चाणक्य ने स्पष्ट किया है कि डर की उत्पत्ति दो कारणों से होती है ये दोनों ही व्यक्ति को सफलता के मार्ग से भटका कर असफलता की ओर ले जाती हैं।
अज्ञानता
चाणक्य के अनुसार, डर का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण है अज्ञानता या किसी विषय, परिस्थिति अथवा चुनौती के बारे में अपर्याप्त ज्ञान। मनुष्य अपने भविष्य को लेकर सबसे अधिक डरा हुआ रहता है क्योंकि वह नहीं जानता कि आगे क्या होने वाला है। चाणक्य कहते हैं भविष्य के बारे में अनभिज्ञता ही व्यक्ति को कर्म करने से रोकती है। जब किसी व्यक्ति को अपने कार्य के परिणामों, प्रतिस्पर्धा की प्रकृति या समस्या के संभावित समाधानों की स्पष्ट जानकारी नहीं होती, तो उसका मन अनिश्चितता से भर जाता है। यह अनिश्चितता ही भय का रूप ले लेती है।

आसक्ति या अत्यधिक लगाव
डर का दूसरा सबसे बड़ा कारण आसक्ति यानी किसी वस्तु, व्यक्ति या परिणाम के प्रति अत्यधिक मोह या लगाव है। चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य डरता इसलिए है क्योंकि उसके पास खोने के लिए कुछ होता है। जब कोई व्यक्ति किसी चीज़ से बहुत अधिक जुड़ जाता है, चाहे वह धन हो, पद हो, सम्मान हो या कोई व्यक्ति तो उसे हमेशा यह डर सताता रहता है कि कहीं वह उस चीज़ को खो न दे। परिणाम आधारित डर: यह डर अक्सर परिणामों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने से पैदा होता है। एक व्यापारी जो केवल लाभ पर ध्यान देता है, उसे हमेशा घाटे का डर सताता रहेगा। एक राजा जो केवल अपनी सत्ता से चिपका रहता है, उसे हमेशा विद्रोह या पदच्युत होने का डर रहेगा। यह भय व्यक्ति को जोखिम लेने से रोकता है।
