Edited By Jyoti,Updated: 03 Nov, 2020 01:32 PM
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति सूत्र में न केवल इंसान को सफल होने जैसी बातें बताई हैं, बल्कि उन्होंने इसमें मानव जीवन के दैनिक जीवन से भी जुड़ी कई बातें बताई हैं
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आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति सूत्र में न केवल इंसान को सफल होने जैसी बातें बताई हैं, बल्कि उन्होंने इसमें मानव जीवन के दैनिक जीवन से भी जुड़ी कई बातें बताई हैं। इन बातों से न केवल व्यक्ति के बारे में पता चलता है बल्कि अन्य कई तरह की जानकारी मिलती है। आज हम आपको बताने वाले हैं चाणक्य द्वारा नीति सूत्र में बताए गए 2 ऐसे श्लोकों के बारे में जिसमें उन्होंने बताया है कि अगर कोई व्यक्ति का इंद्रियों का दुरुपयोग करता है तो ऐसे व्यक्ति को किस हद तक हानि हो सकती है। इसके अलावा चाणक्य ने ये भी बताया है कि भूखा व्यक्ति क्या कर सकता है।
भूखा व्यक्ति कुछ भी खा जाता है-
चाणक्य नीति श्लोक-
नास्त्यभक्ष्यं क्षुधितस्य।
अर्थात- पेट भरने के लिए तथा अपनी भूख को शांत करने के प्रत्येक व्यक्ति जीवन में मेहनत करता है। कहते हैं भूख ऐसी आवश्यकता है कि जो जब भी किसी व्यक्ति या किसी अन्य जीवन को भी तो वह कुछ भी खाने के लिए तैयार हो जाता है। कथाओं के अनुसार महाराणा प्रताप जैसे वीर को भी कष्ट के समय वन में घास की रोटी खानी पड़ी थी। बल्कि कहा जाता है भूख लगने पर व्यक्ति मनुष्य और मरे हुए जानवरों तक को खाने के लिए मज़बूर हो जाता है।
इंद्रियों का दुरुपयोग हानिकारक-
चाणक्य नीति श्लोक-
इन्द्रियाणि जरावशं कुर्वन्ति।
अर्थात- इस श्लोक में चाणक्य बताते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों का दुरुपयोग करता है और उनके प्रयोग में अति करने लगता है उस व्यक्ति को बुढ़ापा अतिशीघ्र अपने वश में कर लेता है। उसका शरीर क्षीण और जर्जर हो जाता है। अत: राजा को कभी भोग-विलासी नहीं होना चाहिए।