एक महीने तक यहां कौआ की रहती है No entry

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 May, 2018 11:27 AM

ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी राजगीर को बहुत सारे युगपुरुषों, संतों और महात्माओं ने अपनी तपस्थली और ज्ञानस्थली के रूप में चुना। यही कारण है की अधिकमास के दौरान यहां बड़ी तादात में संत समाज पधारता है।

ये नहीं देखा तो क्या देखा

PunjabKesariऐतिहासिक और धार्मिक नगरी राजगीर को बहुत सारे युगपुरुषों, संतों और महात्माओं ने अपनी तपस्थली और ज्ञानस्थली के रूप में चुना। यही कारण है की अधिकमास के दौरान यहां बड़ी तादात में संत समाज पधारता है। मेला आरंभ होने के पहले दिन राजगीर के गर्म कुंड में डुबकी लगाई जाती है। फिर भगवान विष्णु की उपासना होती है।

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तीन साल के बाद आने वाले अधिकमास के पावन महीने में लगने वाले विश्व प्रसिद्ध मेले का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था। मलमास मेले में 4 शाही स्नान होंगे। कैबिनेट की बैठक में इस मेले को राजकीय दर्जा दिया गया है। नालंदा के राजगीर में धार्मिक महत्व के 22 कुंड और 52 धाराएं हैं लेकिन ब्रह्मकुंड और सप्तधाराओं में स्नान का विशेष महत्व है। ज्यादातर श्रद्धालु यहां के सभी कुंडों में पूजा-पाठ करते हैं। 

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वहां के स्थानीय लोगों ने बताया एक महीने तक लगने वाले मेले में काले काग (कौआ) का प्रवेश नहीं होता। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है, जब प्राचीनकाल में जगतपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा बसु ने राजगीर के ब्रह्मकुंड में यज्ञ किया तो 33 करोड़ देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। वह सभी यज्ञ में भाग लेने आए लेकिन काला काग (कौआ) को निमंत्रण नहीं दिया गया इसलिए आज भी 1 महीने तक इस स्थान पर कौआ नहीं आता।

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13 जून तक मलमास चलेगा, जगतपिता ब्रह्मा की इस नगरी का नई नवेली दुल्हन की तरह श्रृंगार किया गया है। पर्यटन विभाग, जिला प्रशासन और स्थानीय लोग  श्रद्धालुओं को हर सुख-सुविधा देने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। तीन साल पर लगने वाले इस मेले का जितना इंतजार भक्तों और सैलानियों को होता है, उतना ही लोकल दुकानदारों को होता है।

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