श्रीराम के भाई शत्रुघ्न ने बसाई थी मथुरा नगरी, कृष्ण जन्म उपरांत बढ़ी महिमा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Feb, 2018 01:58 PM

darshan of mathura

भगवान वाल्मीकि जी ने मथुरा की शोभा का बड़ा भव्य वर्णन किया है और यमुना के तट पर बसी इस सुंदर नगरी को ‘वेद निर्मिताम्’ देवताओं द्वारा बसाई गई नगरी कहा है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षक का वध करके इसकी...

भगवान वाल्मीकि जी ने मथुरा की शोभा का बड़ा भव्य वर्णन किया है और यमुना के तट पर बसी इस सुंदर नगरी को ‘वेद निर्मिताम्’ देवताओं द्वारा बसाई गई नगरी कहा है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षक का वध करके इसकी स्थापना की थी। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म लेने के कारण इस नगर की महिमा और अधिक बढ़ गई है।

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यहां के मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव स्थित राजा कंस के कारागार में लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात के ठीक 12 बजे कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। यह स्थान उनके जन्म लेने के कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है। मथुरा न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थली के रूप में जानी जाती है।

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मथुरापुरी भारत वर्ष के प्राचीनतम नगरों में से एक है। इसे भारत की सप्त महापुरियों में स्थान दिया गया है और मोक्षदायिनी बतलाया गया है। वैदिक, पौराणिक वासुदेव धर्म तथा बौद्ध और जैन धर्मों के साथ-साथ यह नगर वर्तमान वैष्णव धर्म का भी केंद्र रहा है और इसके वर्णनों से प्राचीन साहित्य भरा पड़ा है। राजनीति और इतिहास का भी मथुरा नगर पुराना केंद्र रहा है। भारत के प्राचीन गणतंत्रों में अग्रगण्य अंधक वृष्णि वंशी नरेशों के शूरसेन जनपद की राजधानी भी यह नगर रहा। भारतीय इतिहास के उत्थान-पतन का इतिहास मथुरा नगरी युगों से अपने आंचल में छिपाए आज भी स्थित है। मूर्तिकला के विकास में मथुरा का योगदान तो विश्व विख्यात ही है। यही नहीं भारतीय संस्कृति के मूलाधार नटनागर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण तो इस नगर की महिमा सदा-सदा के लिए अक्षुण्ण हो गई है और अपनी वर्तमान हीनावस्था में भी यह संपूर्ण देश के आकर्षण का केंद्र है। वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यहां एक भव्य आकर्षण मंदिर के रूप में स्थापित है। यहां कालक्रम में अनेकानेक गगनचुंबी भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ।

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कब-कब बना मंदिर 

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पहला मंदिर 
ईस्वी सन से पूर्ववर्ती 80-57 के महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर, तोरण द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है। 


दूसरा मंदिर 
विक्रमादित्य के काल में सन 800 ई. के लगभग बनवाया गया था। हिन्दू धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म भी उन्नति पर थे। श्री कृष्ण जन्मस्थान के समीप ही जैनियों और बौद्धों के विहार और मंदिर बने थे। यह मंदिर सन् 1017-18 में महमूद गजनवी के कोप का भाजन बना।


तीसरा मंदिर 
 संस्कृत के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि महाराजा विजयपाल देव जब मथुरा के शासक थे तब सन् 1950 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक नया मंदिर बनवाया था। यह विशाल एवं भव्य बताया जाता है। इसे भी 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर दिया गया था।


चौथा मंदिर 
मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर पुन: एक नया विशाल मंदिर बनाया गया। ओरछा के शासक राजा वीर सिंह जू देव बुंदेला ने इसकी ऊंचाई 250 फुट रखी थी। उस समय इस निर्माण की लागत 33 लाख रुपए आई थी। 

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