दीपदान करने से मिल सकता है अकाल मृत्यु से छुटकारा, जानें इससे जुड़ी ये रोचक कथाएं

Edited By Jyoti,Updated: 07 Nov, 2020 01:09 PM

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धार्मिक मान्यताएं हैं कि दिवाली से पहले मनाए जाने वाला पर्व धनतेरस का पर्व मृत्यु के देवता यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन इनकी पूजा करने से तथा इनके नाम पर दीपदान करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।

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धार्मिक मान्यताएं हैं कि दिवाली से पहले मनाए जाने वाला पर्व धनतेरस का पर्व मृत्यु के देवता यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन इनकी पूजा करने से तथा इनके नाम पर दीपदान करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। अब ये बात हुई सुनी सुनाई मान्यताओं की। मगर क्या आप में से कोई ये जानता है कि आखिर धनतेरस का दिन कयों मृत्यु के देवता यम से जुड़ा हुआ है? आखिर क्यों एक तरफ इस दिन खरीददारी की जाती है ताकि जीवन में धन की कमी न हो, तो दूसरी ओर शाम को इनकी पूजा के साथ साथ इन्हें प्रसन्न करने के लिए दीए जलाए जाते हैं? अगर आप इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो आपकी कहीं ओर जाने की आवश्यकता नहीं है जी हां, क्योंकि हम आपको इन्हीं दो सवालों से जुड़ी ऐसी पौराणिक कथाएं बताने वाले हैं जिसे पढ़ने के बाद आप अच्छे से जान जाएंगे कि यमराज देव का धनतेरस के साथ क्या संबंध है।
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इस संदर्भ से जुड़ी पहली पौराणिक कथा-
प्राचीन समय में एक बार यमदूत किसी राजा को उठाकर नरक में ले आए। नरक पहुंच कर राजा ने कहा मैंने तो कोई पाप नहीं किया फिर मुझे यहां क्यों लाए। इस पर यमदूत की उसकी बात का उत्तर देते हुए कहा कि एक बार तुमने अपने द्वार से एक भूखे विप्र को भूखा ही लौटा दिया था, जिस कारण आज तुम नरके में हो। राजा ने यह सुनने के बाद यमदूतों को कहा कि यातनाएं देने से पहले 1 वर्ष का समय दे दो। यमदूतों ने यमराज से आज्ञा लेकर उसे 1 साल का समय दे दिया। जिसके बाद राजा पुनः जीवित हो गया और ऋषियों-मुनियों के पास गया और सारी बात बताई थी। ऋषियों ने उसे कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी का व्रत रखने को कहा। राजा ने ऐसा ही किया और ब्राह्मणों को भरेपट भोजन भी करवाया। वर्षभर बाद यमदूत राजा को फिर से लेने आए, इस बार वे उसे नरक ले जाने के बदले, उसे विष्णु लोक ले गए। ऐसा कहा जाता है इसके बाद से ही यमराज की पूजा की जानी शुरु हुई है, और उनके नाम का दीपक जलाया जाने लगा।
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धनतरेस के दिन से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथा-
प्राचीन समय में हिम नामक एक राजा के पुत्र हुआ, तो वह बहुत खुश हुआ, मगर ज्योतिषियों ने जब राजा को बताया कि यह बालक अपने विवाह के चौथे दिन मर जाएगा तो राजा चिंतित हो गए। धीरे धीरे समय बीतता गया गया और अब पुत्र विवाह लायक हो गया। अतः राजा ने अपने पुत्र का विवाह कर दिया। ज्योतिषियों के बताए अनुसार विवाह के ठीक चौथे दिन उस राजकुमार का मरना निश्चित था, जिस कारण सभी उसकी मृत्यु का भय सताने लगा, पंरतु उसकी पत्नी निश्‍चिंत होकर महालक्ष्मी की पूजा करने लगी, वह महालक्ष्मी की भक्त थी। इसके साथ ही पत्नी ने घर के अंदर और बाहर हर तरफ दीए है दीए जला दिए और महालक्ष्मी का भजन करने लगी। ऊधर यमराज ने सर्प का रूप धारण कर राजकुमार के घर में प्रवेश किया ताकि वे राजकुमार को डंस कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दें। परंतु चारों ओर फैली दीपों की रोशनी से सर्प की आंखें चौंधियां गई और उसे कुछ भी समझ नहीं आया कि किधर जाएं। घूमता-घूमता सर्व रूप में यमराज राजकुमार की पत्नी के पास पहुंच गए जहां राजकुमार की पत्नी महालक्ष्मी की आरती गा रही थी। उसका भजन सुन सर्प भी मधुर आवाज और घंटी की धुन में मग्न हो गया। जिसका अंजान ये हुआ कि अगले दिन प्रातः सर्प के भेष में आए यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा, क्योंकि मृत्यु का समय टल चुका था। और राजकुमार को अपनी पत्नी की वजह से दीर्घायु हो गया। ऐसा कहा जाता तब से ही यमराज के लिए दीप जलाने की परंपरा प्रचलन में आई थी।
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