Dharmik Katha: गुरु के लिए शिष्य का ‘समर्पण’

Edited By Jyoti,Updated: 28 Apr, 2022 05:06 PM

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हमारे इतिहास में गुरु-शिष्य परम्परा के कई अनोखे उदाहरण देखने को मिलते हैं। एक समय की बात है, जब भारतीय संगीत में गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व अपने चरम पर था। हर शिष्य अपने गुरु से बढ़कर किसी

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हमारे इतिहास में गुरु-शिष्य परम्परा के कई अनोखे उदाहरण देखने को मिलते हैं। एक समय की बात है, जब भारतीय संगीत में गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व अपने चरम पर था। हर शिष्य अपने गुरु से बढ़कर किसी को नहीं मानता था। इन्हीं दिनों ग्वालियर के प्रसिद्ध गायक हस्सू खां के यहां संगीत सीखने के लिए दक्षिण भारत से तीन हिंदू शिष्य आए। उस्ताद हस्सू खां ने बड़ी मेहनत से उन्हें अलाप, बोल और गायकी के अंगों के सभी प्रकारों से भी परिचित कराना शुरू कर दिया। 
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संगीत के क्षेत्र में शुद्ध-अशुद्ध और अच्छा या बुरा क्या है, यह समझने की क्षमता आमतौर पर नए शिष्यों में नजर नहीं आती लेकिन दक्षिण भारतीय शिष्यों में से एक बाबा दीक्षित ने बहुत जल्द महारत हासिल कर ली। देखते-देखते ही उनकी ख्याति चारों ओर फैलने लगी। सभी लोग उन्हें जानने लगे लेकिन हस्सू खां के परिवार के लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने सोचा कि इस तरह शिष्य का यश बढऩे से उनके खानदान के सदस्यों का नाम आगे नहीं बढ़ सकता।

उन्होंने हस्सू खां को बाबा दीक्षित से एक कठोर गुरु दक्षिणा लेने पर मजबूर कर दिया। हस्सू खां ने जब बाबा दीक्षित को बुलाकर एक विचित्र गुरु दक्षिणा का प्रस्ताव उनके सामने रखा तो बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया। जानते हैं, वह विचित्र गुरु दक्षिणा क्या थी?

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उन्हें हाथ पर जल छोड़ते हुए, यह प्रण लेना पड़ा कि वह मंदिर और अपने घर को छोड़कर, जिंदगी भर किसी भी महफिल में कभी नहीं गाएंगे। गुरु दक्षिणा के रूप में उन्होंने यह प्रण खुशी-खुशी ले लिया। गुरु के खानदान के लिए बाबा दीक्षित ने जो त्याग किया, ऐसे गुरु-शिष्य परम्परा की अनोखी दास्तान लोग आज भी नहीं भूल सके। पहले के समय शिष्य अपने गुरु के एक शब्द पर जीवन तक समर्पित करने के लिए तैयार रहते थे।
 

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