Diwali 2023: पटाखों से नहीं बल्कि इस तरह बनाएं अपनी दिवाली को खास

Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Nov, 2023 08:36 AM

diwali 2023

दीवाली अथवा दीपावली भारत वर्ष का सर्वाधिक प्रसिद्ध त्यौहार है जो भारत में ही नहीं, अपितु विश्व भर में भारतीयों द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व की

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Diwali 2023: दीवाली अथवा दीपावली भारत वर्ष का सर्वाधिक प्रसिद्ध त्यौहार है जो भारत में ही नहीं, अपितु विश्व भर में भारतीयों द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व की अपनी अलग विशेषता है, जो सब पर अपनी अनोखी छटा बिखेरता है तथा इसका इंतजार सबको हर वर्ष बहुत पहले से रहता है। लाखों वर्ष से भारतीय संस्कृति, सभ्यता तथा आदर्शों से जुड़ा दीवाली पर्व अपने आप में महत्वपूर्ण है तथा दीयों की जगमग इसे आलौकिक रूप प्रदान करती है।

घरों-नगरों की विशेष तौर पर होती सफाई इत्यादि से वातावरण में प्रदूषण तो बढ़ता है परंतु पिछले काफी वर्षों से पटाखों की बढ़ती मांग तथा इनके अत्यधिक उत्पादन ने पर्यावरणविदों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। इस त्यौहार पर भारी संख्या में पटाखे जलाने तथा इससे होने वाले प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण ने हमारे साफ तथा निर्मल पर्यावरण, हमारी स्वच्छ हवा तथा शुद्ध जल को हानि पहुंचाई है। नि:संदेह इसके भयावह परिणाम भी हमारे सामने आए हैं फिर भी इसके इस्तेमाल को पूर्ण रूप से रोका नहीं जा सकता।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लगातार इसके दुष्परिणामों बारे चेताया तथा भारी मात्रा में इनके इस्तेमाल पर गहरी चिंता व्यक्त की है। पर्यावरण से जुड़े तथा वातावरण प्रेमियों ने प्रदूषण रहित पर्यावरण अनुकूल पटाखों के इस्तेमाल की वकालत की है तथा पटाखा निर्माण से जुड़े उद्योगों द्वारा इसका अधिक से अधिक निर्माण करने की सलाह दी है। हालांकि, अभी महंगे तथा आम आदमी की पहुंच से दूर इन पटाखा उत्पादों का अधिक इस्तेमाल नहीं हो रहा।
इसका अधिक प्रचार-प्रसार तथा प्रदूषण युक्त पटाखों के विरुद्ध अभियान छेड़ना तथा प्रतिबंध ही इसका एकमात्र समाधान दिखाई देता है।

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दीपक की लौ तथा इसका ज्वलनशील पदार्थ, जोकि सरसों के तेल तथा कपास की रूई का होता है, पूर्णत: प्रकृति के अनुरूप तथा वातावरण के अनुकूल होता है। दीया हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर तथा मानवीय सभ्यता को युगों-युगों से प्रकाशित करता आया है। मशीनी युग तथा सूचना तकनीक के अत्यधिक प्रसार ने हमारा ध्यान भटका दिया है तथा हम रंग-बिरंगी रोशनियों तथा अत्यधिक चकाचौंध के चक्कर में इन विरासती दीपकों के प्रकाश से दूर हो रहे हैं।

अधिक से अधिक दीए जलाकर हम एक आलौकिक प्रकाश की सुखद अनुभूति पा सकते हैं तथा वातावरण और पर्यावरण को स्वच्छ तथा समृद्ध कर सकते हैं और सुरक्षित और अनुकूल दीवाली मना सकते हैं। अब वह समय आ गया है, जब हमें पटाखों तथा दीयों के अंतर को समझना होगा तथा औरों को भी इससे अवगत कराना होगा। 

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