Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Nov, 2022 08:21 AM
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर 19 नवम्बर से लगे सरस और क्राफ्ट मेले में विभिन्न राज्यों से आए शिल्प कलाकारों की हाथों से बनी दिल को छू लेने वाली अनोखी शिल्पकला ने पर्यटकों के मन को मोह लिया है।
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कुरुक्षेत्र (धमीजा): अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर 19 नवम्बर से लगे सरस और क्राफ्ट मेले में विभिन्न राज्यों से आए शिल्प कलाकारों की हाथों से बनी दिल को छू लेने वाली अनोखी शिल्पकला ने पर्यटकों के मन को मोह लिया है। इस अनोखी शिल्पकला का जादू ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर देखने को मिल रहा है।
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गीता महोत्सव के दूसरे दिन सरस और क्राफ्ट मेले में आए पर्यटकों को ऐसी अनोखी शिल्पकला को देखने का अवसर प्राप्त हो रहा है तथा पर्यटकों के इतने उत्साह और जोश को देखने के बाद इस शिल्पकला ने ब्रह्मसरोवर के पावन तट की फिजा का रंग बदलने का काम किया है। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में पानीपत से आए संदीप कुमार ने बताया कि वे हर बार इस महोत्सव में आते हैं तथा अपने साथ हाथों से बने चिकनी मिट्टी के उर्ली, तुलसी पोर्ट, मिट्टी से बने हुए सुंदर-सुंदर गुड्डे, झुम्मर, हैंगिंग दिया व भगवान की प्रतिमाएं लेकर आए हैं। ये सभी सज्जा सजावट का सामान वे हाथ से बनाते हैं। इस हस्त शिल्प कला में कम से कम 4 से 8 दिन लगते है तथा इनकी कीमत 50 रुपए से 500 रुपए तक की है।
उन्होंने कहा कि वे इस ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर हर वर्ष लगने वाले सरस और क्राफ्ट मेले में हर वर्ष आते हैं। पहले उनके दादा यह शिल्पकला का प्रदर्शन करते थे। उसके बाद उनके पिता तथा अब वे इस शिल्पकला की प्रदर्शनी लगा रहे हैं। ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर 19 नवंबर से 6 दिसंबर तक लगने वाले इस सरस और क्राफ्ट मेले में दूर दराज से आए शिल्पकारों ने इस फिजा को बदलने का काम किया है तथा पर्यटक जमकर खरीदारी कर रहे हैं।
शिल्पकारों की शिल्प कला महोत्सव में चार चांद लगाने का कर रही है काम : अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के दूसरे दिन ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर हाथों की जादुई शिल्पकला और विभिन्न प्रकार की सुंदर-सुंदर शिल्पकला ने इस महोत्सव को भव्य और सुंदर बनाने का काम किया है। ऐसी अनोखे रंग की शिल्पकला को देखकर इस महोत्सव में आने वाले पर्यटकों में भारी उत्साह और जोश देखने को मिल रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में पंचकूला से आए दीपक ने बताया कि वे हर वर्ष इस महोत्सव में आते हैं। वे अपने साथ जूट से बने पक्षियों के लिए घौंसले, शोपीस, पक्षियों के लिए झोंपड़ीनुमा घौंसले, दाना-पानी के साथ जूट से बनी वस्तुएं लेकर आए हैं। उन्होंने कहा कि वे यह सभी चीजें स्वयं अपने हाथों से तैयार करते हैं । इनकी कीमत 50 से 250 रुपए रखी गई है। महोत्सव में पर्यटकों की इस भीड़ को देखकर कहा जा सकता है कि इस महोत्सव की भव्यता का सही मायने में अर्थ सार्थक साबित हो रहा है।