अजब-गजब: इस झील में भक्त फेंकते हैं सोना-चांदी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Mar, 2021 09:35 AM

himachal kamrunag lake mystery

हिमाचल प्रदेश देव भूमि है। यहां के देवस्थानों के दर्शनों की अभिलाषा रखने वाला हर व्यक्ति महाभारत कालीन स्थल के रूप में विख्यात कमरुनाग जरूर जाना चाहता है। मंडी घाटी की तीसरी प्रमुख झील कमरुनाग झील हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलों में से एक है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

History Of Mysterious Mandi Kamrunag Lake- हिमाचल प्रदेश देव भूमि है। यहां के देवस्थानों के दर्शनों की अभिलाषा रखने वाला हर व्यक्ति महाभारत कालीन स्थल के रूप में विख्यात कमरुनाग जरूर जाना चाहता है। मंडी घाटी की तीसरी प्रमुख झील कमरुनाग झील हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलों में से एक है।

पहाड़ी शैली में निर्मित प्राचीन मंदिर
यहां कमरुनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी है, जहां जून माह में विशाल मेला लगता है। हिमाचल प्रदेश के मंडी नगर से  51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में कमरुनाग झील समुद्र तल से लगभग 9000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। देवदार के घने जंगलों से घिरी यह झील प्रकृति प्रेमियों को अभिभूत कर देती है। झील तक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुरम्य है और यहां के लुभावने दृश्यों को देख कर पर्यटक अपनी सारी थकान भूल जाते हैं।

कमरुनाग झील के किनारे पहाड़ी शैली में निर्मित कमरुनाग देवता का प्राचीन मंदिर है जहां पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। करसोग से शिमला जाते हुए मार्ग में सल्फर युक्त गर्म जल के चश्मों के लिए प्रसिद्ध ‘तत्तापानी’ नामक खूबसूरत स्थल है। एक ओर सतलुज का बर्फ की तरह ठंडा जल अगर शरीर को सुन्न कर देता है तो वहीं इस नदी के आगोश से फूटता गर्म जल पर्यटकों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।

हर साल पहली आषाढ़ यानी 15 जून को कमरुनाग मंदिर में सरानाहुली मेले का आयोजन होता है। मेले के दौरान मंडी जिला के बड़े देव कमरुनाग के प्रति आस्था का महाकुंभ उमड़ता है। नि:संतान दम्पतियों को संतान की चाह हो या फिर अपनों के लिए सुख-शांति और सुख-सुविधा की मनौती, हर श्रद्धालु के मन में कोई न कोई कामना रहती है जो उसे मीलों पैदल चढ़ाई चढ़ा कर इस स्थल तक खींच लाती है।

झील को अर्पित होते हैं नोट और जेवर
दूर-दूर से आए लोग मनोकामना पूरी होने पर झील में करंसी नोट अर्पित करते हैं। महिलाएं अपने सोने-चांदी के जेवर झील को अर्पित कर देती हैं।

देव कमरुनाग के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि झील में सोना-चांदी और मुद्रा अर्पित करने की यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। यह झील आभूषणों से भरी है। झील में अपने आराध्य के नाम से भेंट चढ़ाने का भी एक शुभ समय है। जब देवता को कलेवा अर्थात भोग लगता है, तभी झील में भेंट डाली जाती है। झील में करंसी, सोना, चांदी व गहने फैंके जाने का रोचक रोमांचक व हैरतअंगेज नजारा यदि देखना हो तो पहली आषाढ़ को सुबह ही यहां पहुंच जाना होगा।

कमरुनाग करते हैं खजाने की रक्षा
स्थानीय लोग कहते हैं कि झील में अरबों के जेवर हैं परंतु इसके बावजूद सुरक्षा का कोई खास प्रबंध नहीं है। यहां सामान्य स्थितियों जितनी सुरक्षा भी प्रदत्त नहीं है। लोगों की आस्था है कि कमरुनाग इस खजाने की रक्षा करते हैं।

कहानी बर्बरीक के धड़ की
महाभारत के युद्ध की गाथा में एक कहानी आती है बर्बरीक अथवा बबरू भान की, जिसे रत्न यक्ष के नाम से भी जाना जाता है। वह अपने समय का अजेय योद्धा था। उसकी भी इच्छा थी कि वह महाभारत के युद्ध में हिस्सा ले। जब उसने अपनी माता से युद्धभूमि में जाने की आज्ञा लेनी चाही तो मां ने एक शर्त पर आज्ञा दी कि वह उस सेना की ओर से लड़ेगा जो हार रही होगी। जब इस बात का पता श्री कृष्ण को चला तो उन्होंने बर्बरीक की परीक्षा लेने की ठानी क्योंकि श्री कृष्ण को पता था हर हाल में हार तो कौरवों की ही होनी है।
श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से मिलने जा पहुंचे। उसके तरकश में सिर्फ तीन तीर देख कर श्री कृष्ण ने ठिठोली करते हुए कहा कि बस तीन ही बाणों से युद्ध करोगे? तब बर्बरीक ने बताया कि वह एक ही बाण का प्रयोग करेगा और वह भी प्रहार करने के बाद वापस उसी के पास आ जाएगा। यदि तीनों बाणों का उपयोग किया तो तीनों लोकों में तबाही मच जाएगी।

श्री कृष्ण ने उसे चुनौती दी कि वह सामने खड़े पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को भेद कर दिखाए। जैसे ही बर्बरीक ने बाण निकाला, कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लिया। कुछ ही क्षणों में उस बाण ने सभी पत्ते भेद कर जैसे ही श्री कृष्ण के पैर की तरफ रुख किया तो उन्होंने जल्दी से अपना पैर हटा दिया। अब श्री कृष्ण ने अपनी लीला रची और दान लेने की इच्छा जाहिर की। साथ ही वचन भी ले लिया कि वह जो भी मांगेंगे, बर्बरीक को देना पड़ेगा। वचन प्राप्त करते ही श्री कृष्ण ने अपना असली रूप धारण कर लिया तथा उस योद्धा का सिर मांग लिया। बर्बरीक ने एक इच्छा जाहिर की कि वह महाभारत का युद्ध देखना चाहता है तो श्री कृष्ण ने उसका कटा हुआ मस्तक, युद्ध भूमि में एक ऊंची जगह पर टांग दिया जहां से वह युद्ध देख सके।

कथा में वर्णन आता है कि बर्बरीक का सिर जिस तरफ भी घूम जाता वह सेना जीत हासिल करने लगती थी। यह देख कर श्री कृष्ण ने उसका सिर पांडवों के खेमे की ओर कर दिया। पांडवों की जीत सुनिश्चित हुई। युद्ध की समाप्ति के बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि तुम कलयुग में श्याम खाटू के रूप में पूजे जाओगे और तुम्हारा धड़ (कमर) कमरू के रूप में पूजनीय होगा।

आज खाटू श्याम जी राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है जबकि कमर (धड़) पहाड़ी पर देव कमरुनाग के रूप में स्थित है। बाद में जब पांडव यहां से अपनी अंतिम यात्रा के दौरान गुजरे तो वे कमरू से मिलने के लिए रुके। जब कमरू ने कहा कि उन्हें प्यास लगी है तब भीम ने अपनी हथेली का वार धरती पर किया और वहां एक झील उभर गई जो आज कमरुनाग झील के नाम से विख्यात है। पांडवों के पास जो भी गहने थे वे इस झील में फैंक कर फूलों की घाटी की ओर प्रस्थान कर गए।

कैसे पहुंचें : यह स्थान ट्रैकिंग और कैंपिंग के लिए आदर्श है। आपको बता दें कि कमरुनाग के लिए कोई सीधी सड़क नहीं है, इस स्थान पर केवल ट्रैकिंग द्वारा पहुंचा जा सकता है। कमरुनाग झील की यात्रा करना और यहां से सुहावने दृश्यों को देखना पर्यटकों को एक खास अनुभव प्रदान करता है।

फ्लाइट से पहुंचना : मंडी का निकटतम हवाई अड्डा भुंतर (60 कि.मी. दूर) स्थित है। भुंतर हवाई अड्डे से आप मंडी के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते हैं और अपने पर्यटन स्थल पर पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग से कमरुनाग पहुंचना : एच.आर.टी.सी. की बस सेवा दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी शहरों और राज्यों से आसानी से उपलब्ध है। अन्य नजदीकी राज्यों की बस सेवा भी यहां के लिए उपलब्ध है। दिल्ली शहर से मंडी लगभग 400 कि.मी. दूर है।

ट्रेन से कमरुनाग कैसे पहुंचें : मंडी के लिए शहर का निकटतम ब्रॉड गेज रेल हैड पठानकोट (लगभग 210 कि.मी. दूर) है जो जोगिंदर नगर रेल हैड से जुड़ा हुआ है और मंडी से 55 कि.मी. दूर है। बस या टैक्सी से आप रेलवे स्टेशन से अपने पर्यटन स्थल तक पहुंच सकते हैं।

ठंड के मौसम में पहुंचना कठिन : कमरूनाग मंदिर में ठंड के दिनों में जाना काफी मुश्किल होता है। इस वक्त पूरा इलाका बर्फ की मोटी चादर से ढंक जाता है। ऐसे में यहां केवल अनुभवी ट्रैकर ही पहुंचते हैं। मंदिर का आकार काफी छोटा है लेकिन फिर भी यहां हर साल आने वाले भक्तों की संख्या बढ़ती ही जाती है।

वर्षा के देवता के रूप में मान्यता: प्रभु कमरूनाग को बड़ा देव भी कहा जाता है तथा इनकी वर्षा के देवता के रूप में भी मान्यता है। सूखे की स्थिति में लोग कुल्लू, चच्योट, मंडी, बल्ह और करसोग आदि स्थानों से यहां आकर अच्छी वर्षा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। 

 

 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!