Edited By Prachi Sharma,Updated: 29 Oct, 2025 07:00 AM

Inspirational Context: भारत में शिक्षा का केंद्र गुरुकुल होते थे, जहां बच्चे प्रकृति के समीप रहकर गुरुजनों से ज्ञान प्राप्त करते थे। इसी परंपरा के तहत वरदराज नामक एक बालक को भी उसके माता-पिता ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल भेजा। वहां वह अन्य...
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Inspirational Context: भारत में शिक्षा का केंद्र गुरुकुल होते थे, जहां बच्चे प्रकृति के समीप रहकर गुरुजनों से ज्ञान प्राप्त करते थे। इसी परंपरा के तहत वरदराज नामक एक बालक को भी उसके माता-पिता ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल भेजा। वहां वह अन्य बच्चों के साथ रहने लगा लेकिन एक समस्या थी कि वह पढ़ाई में बहुत कमजोर था। गुरु जी की बातें उसे समझ नहीं आतीं। धीरे-धीरे वह अपने साथियों के बीच मज़ाक का पात्र बन गया।
समय बीता, सभी साथी आगे की कक्षा में चले गए, लेकिन वरदराज वहीं रह गया। गुरु जी ने भी प्रयास करके देख लिया, लेकिन कोई सुधार न देखकर उन्होंने हार मान ली और वरदराज से कहा, “बेटा, अब तुम यहां समय बर्बाद मत करो। घर जाओ और परिवार के कामों में हाथ बंटाओ।”
भारी मन से वरदराज घर के लिए चल पड़ा। रास्ते में प्यास लगने पर वह एक कुएं के पास रुका जहां कुछ महिलाएं पानी भर रही थीं। उसने देखा कि रस्सी के बार-बार खींचने से पत्थर पर गहरे निशान पड़ गए थे। वह मन ही मन सोचने लगा कि जब बार-बार पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर भी रस्सी का निशान पड़ सकता है तो लगातार अभ्यास करने से मुझे भी विद्या आ सकती है।

उसने यह बात मन में बैठा ली और गुरुकुल वापस लौटकर फिर से पढ़ाई शुरू कर दी।
कुछ दिन तक उसके साथी पहले ही की तरह उसका मजाक उड़ाते रहे, पर धीरे-धीरे उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने उसे सहयोग करना शुरू कर दिया। कुछ सालों बाद यही विद्यार्थी प्रकांड विद्वान के रूप में विख्यात हुआ, जिसने संस्कृत में कई ग्रंथों की रचना की।
