Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Mar, 2023 09:53 AM

मोहम्मद सैयद एक बहुत बड़े सूफी संत थे। वह बिल्कुल विरक्त और अपरिग्रही थे तथा दिगम्बरों की तरह रहते थे।
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Inspirational Context: मोहम्मद सैयद एक बहुत बड़े सूफी संत थे। वह बिल्कुल विरक्त और अपरिग्रही थे तथा दिगम्बरों की तरह रहते थे। शाहजहां उन्हें बहुत मानता था। दाराशिकोह तो उनका मुरीद ही था।

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सैयद साहब अक्सर एक गीत गाया करते थे- ‘‘मैं सच्चे संत भक्त फुरकन का शिष्य हूं। मैं यहूदी भी हूं, हिंदू भी, मुसलमान भी। मस्जिद और मंदिर में लोग एक ही परमात्मा की उपासना करते हैं। जो काबे में संगे-असवद है, वही दैर में बुत है।’’

औरंगजेब की दारा से नहीं बनती थी और इस नाराजगी ने शत्रुता का रूप ले लिया था। चूंकि औरंगजेब को दारा से बैर था, इसलिए उसे सैयद साहब भी नापसंद थे। जब वह तख्त पर बैठा, तो अपनी चिढ़ निकालने के लिए उसने सैयद साहब को पकड़ मंगाया। धर्मांध मुल्लाओं ने उन्हें धर्मद्रोही घोषित कर सूली की सजा सुना दी। पर सैयद साहब को इससे बड़ी खुशी हुई। वह सूली की बात सुनकर आनंद से उछल पड़े।

सूली पर चढ़ते हुए बोले, ‘‘आह! आज का दिन मेरे लिए सौभाग्य का है। जो शरीर प्रियतम से मिलने में बाधक था वह इस सूली की बदौलत छूट जाएगा। मेरे दोस्त ! आज तू सूली के रूप में आया। तू किसी भी रूप में क्यों न आए, मैं तुझे पहचानता हूं।’’
सूफी लोग मृत्यु को अपने प्रियतम (ईश्वर) से मिलन का अवसर मानते हैं, इसलिए इस अवसर पर खुशियां मनाते हैं।
