Edited By Prachi Sharma,Updated: 16 Nov, 2025 11:33 AM

Inspirational Story: एक बार भारत सरकार ने विश्व-विख्यात इंजीनियर डॉ. विश्वेश्वरैया को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने की घोषणा की। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उनकी उपलब्धियों से पहले से ही परिचित थे। वह उनका बड़ा सम्मान करते थे।
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Inspirational Story: एक बार भारत सरकार ने विश्व-विख्यात इंजीनियर डॉ. विश्वेश्वरैया को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने की घोषणा की। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उनकी उपलब्धियों से पहले से ही परिचित थे। वह उनका बड़ा सम्मान करते थे।
डॉ. विश्वेश्वरैया राष्ट्रपति भवन में आयोजित अलंकरण समारोह में शामिल होने दिल्ली आए। उनकी राष्ट्रपति भवन में ठहरने की व्यवस्था की गई। तीसरे दिन उन्हें भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया। अगले दिन सुबह-सुबह डॉ. विश्वेश्वरैया ने बोरिया-बिस्तर बांध लिया।
राजेंद्र बाबू चाहते थे कि डॉ. विश्वेश्वरैया कुछ दिन और ठहरें ताकि उन्हें उनसे बौद्धिक चर्चा करने का सौभाग्य प्राप्त हो। उन्होंने कहा, “आप कुछ दिन और ठहर जाते तो अच्छा लगता।” लेकिन डॉ. विश्वेश्वरैया फैसला कर चुके थे। उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि नियम कहता है कोई भी सरकारी मेहमान तीन दिन से ज्यादा राष्ट्रपति भवन में नहीं रुक सकता। मैं उस नियम का उल्लंघन कदापि नहीं कर सकता।”
राजेंद्र बाबू ने आग्रह किया, “यह नियम पुराना है। इस पर ध्यान न दें। यह आपके ऊपर लागू नहीं होता।” लेकिन अपने सिद्धांतों के पक्के डॉ. विश्वेश्वरैया नियम तोड़ने को तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा, “आप जब आदेश करें और जितना वक्त निकालें मैं सेवा में हाजिर रहूंगा, लेकिन राष्ट्रपति भवन का अतिथि बने रहना मेरे लिए अब उचित नहीं होगा।”
आखिर राजेंद्र बाबू ने उन्हें इजाजत दी और वह दिल्ली में ही कहीं और ठहरने चले गए। आश्चर्य नहीं कि डॉ. विश्वेश्वरैया ने आधुनिक भारत के नवनिर्माण में ऐसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि उनके योगदान को याद करके आज भी हरेक देशवासी गर्व से भर उठता है।