Edited By Lata,Updated: 28 Aug, 2019 11:25 AM
संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उन्हें सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा रहा।
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संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उन्हें सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा रहा। कारण पूछा तो उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘मैं गृहस्थ हूं। घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है।’’
कबीर थोड़ी देर चुप रहे। फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘दीपक जलाकर लाओ।’’ कबीर की पत्नी दीपक जलाकर ले आई। वह आदमी हैरानी से देखता रहा। थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘‘कुछ मीठा दे जाना।’’
इस बार उनकी पत्नी मीठे की बजाय नमकीन ले आई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठे के बदले नमकीन, दिन में दीपक, यह सब क्या है? वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं
चलता हूं।’’
कबीर ने पूछा, ‘‘आपको अपनी समस्या का समाधान मिल गया या अभी कुछ संशय बाकी है?’’
वह व्यक्ति बोला, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया।’’
कबीर ने कहा, ‘‘मैंने दीपक मंगवाया तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो? इतनी दोपहर में दीपक की क्या जरूरत है? लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूरी किसी काम के लिए मंगवाया होगा। इसके बाद मीठा मंगवाया तो वह नमकीन दे गई। मैं चुप रहा, यह सोचकर कि हो सकता है कि घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यही तुम्हारे सवाल का जवाब है। आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थितियां अपने आप दूर हो जाती हैं।’’
इतनी देर में वह व्यक्ति समझ चुका था कि गृह क्लेश का रोना रोने से कुछ नहीं होता। गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। पति से गलती हो तो पत्नी संभाल ले और पत्नी से कोई त्रुटि हो तो पति उसे नजरअंदाज कर दे, यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।