इस प्राचीन मंदिर में देवी-देवताओं के अलावा होती है कुत्ते की पूजा-अर्चना

Edited By Jyoti,Updated: 04 Dec, 2019 02:39 PM

kukurdev temple chhattisgarh

भारत देश में ऐसे बहुत से मंदिर हैं, जिनके नाम के साथ-साथ उनसे जुड़ी मान्यताओं व धार्मिक कथाएं अद्भुत हैं।

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भारत देश में ऐसे बहुत से मंदिर हैं, जिनके नाम के साथ-साथ उनसे जुड़ी मान्यताओं व धार्मिक कथाएं अद्भुत हैं। आज हम आपको ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में “कुकुरदेव” नाम से प्रसिद्ध है। जी हां, आपको सुनकर थोड़ी हैरानी ज़रूर हुई होगी कि आखिर कुकुरदेव नाम पड़ने के पीछे का असल कारण क्या है। लेकिन बता दें आपको इससे भी बड़ी हैरानी तब होगी जब आपको इस मंदिर की सबसे खास व अद्भुत बात पता चलेगी। तो आइए आपकी उत्सुकता पर पूर्ण विराम लगाते हुए बताएं कि इस प्राचीन कुकुरदेव नामक मंदिर से जुड़ी वो कौन सी बात है जो आपके लिए आश्चर्य का विषय बन सकता है।
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दरअसल इस मंदिर में केवल देवी-देवताओं की ही नहीं बल्कि एक कुत्ते की प्रतिमा भी है। जी हां आप शायद ये जानकर विश्वास नहीं करेंगे परंतु ये सच है। बताया जाता है “कुकुरदेव मंदिर” कुत्ते को समर्पित हैं। हालांकि मंदिर में शिवलिंग के साथ-साथ अन्य कई प्रतिमाएं स्थापित हैं। यहां की लोक मान्यता के अनुसार इस मंदिर में कुत्ते की प्रतिमा के दर्शन मात्र से खांसी के रोग से मुक्ति मिलती है साथ ही साथ कुत्ते के काटने का भय भी खत्म हो जाता है।

यहां के निवासियों द्वारा कुकुरदेव नामक मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14वीं-15वीं शताब्दी में करवाया गया था। बता दें मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है। इसी प्रतिमा के समीप शिवलिंग स्थापित है।

बताया जाता है कुकुरदेव मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगी हुई हैं। यहां आने वाले लोग शिव जी के साथ-साथ कुत्ते जिन्हें कुकुरदेव की पूजा ठीक वैसे ही करते हैं जैसे आम शिव मंदिरों में नंदी की पूजा की जाती है।
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मंदिर में गुंबद के चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं। तो वहीं परिसर की चारों तरफ़ उसी समय के शिलालेख भी रखे हैं जो स्पष्ट नहीं हैं। देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे इन पर बंजारों की बस्ती, चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है। साथ ही यहां श्री राम, लक्ष्मण जी तथा शत्रुघ्न की भी प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसके अलावा एक ही पत्थर से बनी 2 फीट की गणेश प्रतिमा भी मंदिर में स्थापित है।

कुकुरदेव मंदिर से जुड़ी पौराणिक किंवदंति-
कथाओं के अनुसार, एक समय में यहां एक बंजारों की बस्ती हुआ करती थी। इन्हीं बंजारों की बस्ती में मालीघोरी नामक 1 बंजारे के पास एक पालतू कुत्ता था। बस्ती में अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने प्रिय कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। इसी बीच, साहूकार के घर चोरी हो गई। कुत्ते ने चोरों को साहूकार के घर से चोरी का माल समीप के तालाब में छुपाते देख लिया था। सुबह कुत्ता साहूकार को चोरी का सामान छुपाए स्थान पर ले गया और साहूकार को चोरी का सामान भी मिल गया।

कुत्ते की इस वफादारी से अवगत होते ही साहूकार ने सारा विवरण एक कागज़ में लिखकर उसके गले में बांध दिया और उसे असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर दिया। अपने कुत्ते को साहूकार के से लौटा आया देखकर बंजारे ने डंडे से पीट-पीटकर अपने कुत्ते को मार डाला।
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उसके मरने के बाद उसके गले में बंधे पत्र को देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। जिसके बाद बंजारे ने अपने प्रिय भक्त कुत्ते की याद में मंदिर प्रांगण में ही कुकुर समाधि बनवा दी। कुछ समय बाद उसने यहां कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित कर दी। कहा जाता इसी घटना के बाद आज भी यह स्थान कुकुरदेव मंदिर नाम से विख्यात है।

बताया जाता है मंदिर के सामने की सड़क के पार मालीधोरी गांव शुरू होता है जिसका नामकरण मालीधोरी बंजारा के नाम पर किया गाया है। यूं तो मंदिर में बहुत से ऐसे लोग आते हैं, जिन्हें कुत्ते ने काट लिया हो। हालांकि यहां किसी का इलाज तो नहीं होता, लेकिन ऐसा मानना है कि यहां आने से वह व्यक्ति ठीक हो जाता है।
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