क्यों देवों के देव महादेव ने सांप को बनाया अपना अलंकार, जानें इसके पीछे की कथा

Edited By Updated: 28 Nov, 2025 01:41 PM

lord shiva snake story

भगवान शिव का दिव्य स्वरूप अनेक प्रतीकों से भरा हुआ है। माथे पर चंद्रमा, हाथ में त्रिशूल और डमरू और सबसे विशिष्ट उनके गले में लिपटा हुआ विषधर नाग। यह नाग केवल एक आभूषण या प्रतीक नहीं है, बल्कि एक गहरी पौराणिक कथा और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है।

Lord Shiva Snake Story: भगवान शिव का दिव्य स्वरूप अनेक प्रतीकों से भरा हुआ है। माथे पर चंद्रमा, हाथ में त्रिशूल और डमरू और सबसे विशिष्ट उनके गले में लिपटा हुआ विषधर नाग। यह नाग केवल एक आभूषण या प्रतीक नहीं है, बल्कि एक गहरी पौराणिक कथा और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है। क्या आप जानते हैं कि क्यों देवों के देव महादेव ने इतने भयंकर जीव को अपने कंठ का हार बनाया। तो आइए जानते हैं उस प्रसिद्ध कथा को, जिसके कारण नागराज को शिव शम्भू के गले में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ।

Lord Shiva Snake Story

भगवान शिव द्वारा नाग को गले में धारण करने की कथा

एक बार, सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने और देवताओं की खोई हुई शक्तियों को वापस लाने के लिए देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीर सागर का मंथन करने का निर्णय लिया। इस विशाल मंथन प्रक्रिया में, मंदराचल पर्वत को मथनी के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस पर्वत को घुमाने के लिए जिस रस्सी की आवश्यकता थी, उसके लिए नागों के राजा वासुकि ने अपनी सेवा प्रदान की। वासुकि ने मंथन की रस्सी बनना स्वीकार किया और देवता एक ओर से तथा असुर दूसरी ओर से उन्हें पकड़कर मंथन करने लगे। जब मंथन तीव्र हुआ, तो वासुकि नाग को भयंकर पीड़ा हुई। इस पीड़ा के कारण उनके मुख से हलाहल नामक अत्यंत भयानक और विनाशकारी विष बाहर निकला। यह विष इतना प्रचंड था कि इसकी एक बूंद से पूरी सृष्टि, ग्रह और नक्षत्र तत्काल नष्ट हो सकते थे।

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ब्रह्मांड को इस महाविनाश से बचाने के लिए सभी देवता भयभीत होकर भगवान शिव की शरण में पहुंचे। दया के सागर महादेव ने सृष्टि के कल्याण के लिए तत्काल उस सम्पूर्ण विष को अपनी हथेली में लिया और पी लिया। शिव जी ने इस विष को अपने कंठ  में रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। सृष्टि को बचाने की इस प्रक्रिया में वासुकि नाग की पीड़ा भी शांत हुई। अपनी सेवा और समर्पण के लिए भगवान शिव ने वासुकि को सर्वोच्च सम्मान प्रदान करते हुए उन्हें अपने गले का आभूषण बना लिया। यह घटना नागों के राजा वासुकि को सर्वोच्च सम्मान देने और उनकी सेवाओं को मान्यता देने का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि शिव जी ने न केवल सृष्टि को विष से बचाया, बल्कि उन्होंने अपनी शक्ति से उस भयानक विष को भी अपने नियंत्रण में रखा।

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