Maa Mundeshwari Temple :  600 ईसा पूर्व से अखंड आस्था का प्रतीक! बिहार का मां मुंडेश्वरी धाम क्यों है सबसे अनोखा मंदिर ?

Edited By Updated: 25 Dec, 2025 12:19 PM

maa mundeshwari temple

Maa Mundeshwari Temple : सबसे पुराने मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी धाम बिहार का मां मुंडेश्वरी धाम ऐसा अद्भुत तीर्थ स्थल है, जिसने सदियों के उतार-चढ़ाव, प्राकृतिक आपदाओं और बदलते युगों को देखा है, फिर भी अपनी दिव्यता और गरिमा बनाए रखी है।

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Maa Mundeshwari Temple : सबसे पुराने मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी धाम बिहार का मां मुंडेश्वरी धाम ऐसा अद्भुत तीर्थ स्थल है, जिसने सदियों के उतार-चढ़ाव, प्राकृतिक आपदाओं और बदलते युगों को देखा है, फिर भी अपनी दिव्यता और गरिमा बनाए रखी है। इतिहासकारों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार कैमूर जिले की पवरा पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह मंदिर लगभग 600 ईसा पूर्व से अस्तित्व में है। इससे पहले के कालखंड की जानकारी आज भी रहस्य है। यही कारण है कि यह मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिरों में एक माना जाता है, जहां आज भी नियमित पूजा-अर्चना होती है। मंदिर में देवी मुंडेश्वरी की आराधना शक्ति के रूप में की जाती है। 

Maa Mundeshwari Temple

भक्तों का विश्वास है कि मां अपने दरबार में आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना सुनती हैं और सच्चे भाव से की गई प्रार्थना को अवश्य पूर्ण करती हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 526 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यह मार्ग भले ही शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो, लेकिन भक्त इसे अपनी आस्था की परीक्षा मानते हैं। हर सीढ़ी के साथ मानो श्रद्धा और विश्वास और गहरा होता जाता है। हालांकि, सड़क मार्ग से भी वाहन द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है, फिर भी अधिकतर भक्त पैदल सीढ़ियां से ही मां के दर्शन करने जाना पसंद करते हैं। अष्टकोणीय स्थापत्य कला मां मुंडेश्वरी का मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए भी विशेष रूप से जाना जाता है। इसका अष्टकोणीय स्वरूप इसे अन्य मंदिरों से अलग पहचान देता है।

Maa Mundeshwari Temple

 मंदिर में प्रवेश और निकास के लिए दो अलग-अलग द्वार बनाए गए हैं, जिससे भक्तों की सुविधा बनी रहती है। पत्थरों से निर्मित यह संरचना आज भी अपनी मजबूती और कलात्मकता का प्रमाण देती है। रक्तहीन बलि की अनोखी परंपरा मां मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे विलक्षण और चर्चित परंपरा यहां दी जाने वाली रक्तहीन पशु बलि है। इस परंपरा में बकरे को देवी के चरणों में लिटाया जाता है और पुजारी द्वारा अक्षत (चावल) से प्रतीकात्मक प्रहार किया जाता है। इससे बकरा कुछ समय के लिए मूर्छित हो जाता है और पुन: होश में आने पर उसे जीवित ही श्रद्धालु को सौंप दिया जाता है। यह परंपरा करुणा और आस्था के संतुलन का प्रतीक मानी जाती है।

 त्योहारों पर आस्था का सागर वैसे तो मां मुंडेश्वरी के दरबार में वर्ष भर भक्तों की आवाजाही बनी रहती है लेकिन शारदीय नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। बिहार ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से लोग मां के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में इन दिनों भक्ति, श्रद्धा और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। कैसे पहुंचें मां मुंडेश्वरी धाम मां मुंडेश्वरी धाम तक पहुंचने के लिए रेल मार्ग से भभुआ रोड स्टेशन सबसे नजदीकी पड़ाव है, जहां से ऑटो या टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से आने वाले श्रद्धालु वाराणसी या पटना एयरपोर्ट तक पहुंचकर आगे सड़क मार्ग से मंदिर जा सकते हैं।

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