Maharana Pratap: महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर भी हुए थे दुखी, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Aug, 2022 12:21 PM

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‘‘जब तक चित्तौड़ को जीत कर वहां भगवा ध्वज न फहरा दूंगा तब तक महलों में नहीं रहूंगा, बिस्तर पर नहीं सोऊंगा तथा सोने व चांदी के पात्रों में भोजन नहीं करूंगा।’’

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Maharana Pratap: ‘‘जब तक चित्तौड़ को जीत कर वहां भगवा ध्वज न फहरा दूंगा तब तक महलों में नहीं रहूंगा, बिस्तर पर नहीं सोऊंगा तथा सोने व चांदी के पात्रों में भोजन नहीं करूंगा।’’

उपरोक्त शब्द तत्कालीन मेवाड़ की राजधानी उदयपुर के अधिपति महाराणा प्रताप ने 32 वर्ष की आयु में महाराणा उदय सिंह के देहांत के पश्चात राज सिंहासन ग्रहण करते समय कहे थे, जिसका पालन उन्होंने अंत समय तक किया। मुगलकाल में मेवाड़ के शासक महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) के पौत्र एवं महाराणा उदय सिंह के पुत्र प्रताप सिंह का जन्म ज्येष्ठ सुदी 3 विक्रमी सम्वत् 1597 को हुआ था। महाराणा प्रताप बड़े होकर स्वाधीनता के पुजारी, देश भक्ति का अवतार और तपस्वी कहलाएं। महाराणा प्रताप ने अन्याय के सामने झुकना नहीं सीखा। तत्कालीन मुगल सम्राट अकबर ने अपनी अनंत शक्ति को दिखलाने के लिए राजा मान सिंह को विशाल सेना के साथ मेवाड़ की ओर भेजा तथा मान सिंह ने एकांत में अपने पथ का अनुगामी बनाने के लिए महाराणा प्रताप से कहा, ‘‘महाराणा ! आप स्वाधीनता के पुजारी हैं। मैं आपका आदर करता हूं परंतु शाही सेना की शक्ति अनंत है। आज कौन है जो अकबर के सामने झुक नहीं गया ? सम्पूर्ण भारत में उसी की तूती बोल रही है। आप इस मिथ्या हठ को छोड़ दें। लक्ष्मी आपके चरणों में होगी। आप आजीवन सुख की नींद सोएंगे।’’

महाराणा प्रताप उत्तेजित हो गए। बीच में बोल उठे, ‘‘मान सिंह, मुझे अकबर के वैभव और शक्ति का पूरा पता है और उसके मूल्य को भी मैं खूब समझता हूं। दासता का ऐश्वर्य स्वतंत्रता के आनंद के सम्मुख तुच्छ है। अपनी बहू-बेटियों को अकबर के विलास का साधन बना कर ऐश्वर्य भोगना कहां की बुद्धिमता है ? शाही दरबार में नतमस्तक खड़े रहने को आप वैभव समझते हैं।’’

विश्व प्रसिद्ध हल्दी घाटी युद्ध महाराणा प्रताप और मुगल सेना, जिसका नेतृत्व मान सिंह ने किया, के बीच हुआ था। शाही सेना, प्राण पण से लड़ने वाले स्वतंत्रता के पुजारी राजपूतों की भीषण मार न सह सकी। इसी समय महाराणा प्रताप की नजर हाथी पर सवार मान सिंह पर पड़ी।

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उन्होंने चेतक को उस ओर दौड़ाया तथा पल भर में चेतक ने हाथी के मस्तक पर अपने अगले पांव रख दिए। महाराणा प्रताप ने गरज कर कहा, ‘‘मान सिंह, सावधान, तुम्हारे स्वागत के लिए प्रताप आ गया है।’’

यह कह कर पूरे वेग से अपना भाला मान सिंह पर फैंका। मान सिंह तुरंत अम्बारी में छिप गया। महाराणा प्रताप ने मान सिंह को मरा हुआ जानकर चेतक को पीछे हटा लिया। मान सिंह को लेकर हाथी भाग गया।

अकबर ने कई बार मेवाड़ पर हमले किए परंतु सफल न हो सका। आखिर बहुत निराश होकर सेनाओं को भेजना बंद कर दिया। महाराणा प्रताप ने शनै: शनै: सारे मेवाड़ को अपने अधिकार में कर लिया।

महाराणा प्रताप ने करीब 56 वर्ष के जीवनकाल के अमूल्य 24 वर्ष बड़ी कठिनाई से गुजारे परंतु किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की। तत्कालीन दिल्ली सम्राट अकबर से आजीवन लोहा लिया।

दिल्ली सम्राट अकबर ने 4-5 बार अपनी विशाल सेना भेजी परंतु प्रत्येक बार मुंह की खानी पड़ी। आज से करीब 408 वर्ष पूर्व उदयपुर से 30 मील दक्षिण की तरफ एक पहाड़ी गांव चावड़े में आत्मसम्मान, बलिदान, वीरता और साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप का देहांत हो गया। सम्राट अकबर इस घटना से बहुत दुखी हुआ।

अपने शत्रु की मृत्यु पर सम्राट दुखी क्यों ? दरबारी न जान पाए। दुस्सा आढ़ नामक कवि ने एक कविता पढ़ी जिसका अर्थ था ‘प्रताप तू धन्य है, तेरी मृत्यु पर सम्राट भी दुखी है। तूने किसी के सामने सिर नहीं झुकाया, तूने कर नहीं दिया। शाही अधीनता स्वीकार नहीं की। वास्तव में विजय तेरी हुई।’  

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