Most powerful Ganesh Temples in India: भगवान गणेश के अनोखे मंदिर, जो चमत्कारों से भरे हुए हैं

Edited By Updated: 05 Sep, 2025 06:36 AM

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Top Ganesh temples in India: भगवान गणेश जी विघ्नहर्ता, गणपति बप्पा, सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान के रूप में जाने जाते हैं। देश भर में आपको गणेश जी के कई मंदिर देखने को मिल जाएंगे और जब बात गणेश उत्सव की आती है, तो गणेश जी के हर मंदिर में खूब भीड़...

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Top Ganesh temples in India: भगवान गणेश जी विघ्नहर्ता, गणपति बप्पा, सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान के रूप में जाने जाते हैं। देश भर में आपको गणेश जी के कई मंदिर देखने को मिल जाएंगे और जब बात गणेश उत्सव की आती है, तो गणेश जी के हर मंदिर में खूब भीड़ देखने को मिल जाती है। इन दिनों में पूजा-पाठ करने के लिए हर कोई मंदिर में पहुंच जाता है। कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आपको गणेश जी के कई मंदिर दिख जाएंगे जो चमत्कारों से भरे हुए हैं। इनका इतिहास इतना रोचक है कि आपको जानकर शायद हैरानी हो। गणेश चतुर्थी उत्सव तल रहा है, चलिए आपको इस अवसर पर भारत के कुछ ऐसे ही अनोखे गणेश मंदिरों के बारे में बताते हैं।

Top Ganesh temples
गढ़ गणेश मंदिर, जयपुर
आज तक आपने दुनिया भर के मंदिरों में गणेश जी की सूंड वाली प्रतिमा देखी होगी। हर जगह उनके इसी रूप की पूजा होती है लेकिन राजस्थान के जयपुर में अरावली की ऊंची पहाड़ियों पर मौजूद बप्पा का एक अनोखा मंदिर है। यहां भगवान गणेश की मूर्ति को बाल रूप (बिना सूंड वाले गणेश) में स्थापित किया गया है। भक्त मानते हैं कि यहां गणपति बप्पा ‘पुरुषकृति’ स्वरूप में विराजमान हैं। यह अद्वितीय स्वरूप भक्तों के लिए आकर्षण और श्रद्धा का विशेष कारण है। इस खूबसूरत मंदिर का नाम गढ़ गणेश मंदिर है। यह राजस्थान के प्राचीन मंदिरों में शुमार है। माना जाता है कि गढ़ गणेश मंदिर की स्थापना जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी। उन्होंने भगवान गणेश की मूर्ति इस प्रकार स्थापित की कि सिटी पैलेस के चंद्र महल से दूरबीन की मदद से भी इसे देखा जा सके।
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मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर
बप्पा का यह मंदिर राजस्थान की पिंक सिटी यानी जयपुर में डूंगरी किले की तलहटी में स्थित है और अपनी भव्य वास्तुकला, ऐतिहासिक महत्व एवं धार्मिक आस्था के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में स्थापित गणेश जी का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है। गणेश जी की यह प्रतिमा 1761 में जयपुर राजा माधोसिंह की रानी के पैतृक गांव मावली, जो कि गुजरात में स्थित है, से लाई गई थी। प्रतिमा का रंग सिंदूरी है और इसकी सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई है। श्रद्धालु यहां लड्डुओं का प्रसाद चढ़ाते हैं। मंदिर परिसर में हर बुधवार को एक मेला आयोजित होता है। मोती डूंगरी किले के परिसर में एक शिवलिंग भी है, जो केवल महाशिवरात्रि के दिन दर्शन हेतु खुलता है।

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त्रिनेत्र गणेश जी
देश में चार स्वयंभू गणेश मंदिर हैं, जिनमें से रणथम्भौर में मौजूद त्रिनेत्र गणेश जी पहले नंबर पर आते हैं। रणथम्भौर त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर प्रसिद्ध रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के पास स्थित है, इसे रणथम्भौर मंदिर भी कहते हैं। मंदिर 1579 फुट ऊंचा है, जिसके आसपास विंध्यांचल की पहाड़िया स्थित हैं। यहां तक जाने के लिए आपको सीढ़िया लेनी पड़ेंगी। इस मंदिर की दिलचस्प बात यह है, कि लोग अपना कोई भी शुभ काम करने से पहले इस मंदिर में डाक द्वारा गणेश जी को चिठियां भेजते हैं। कार्ड पर पता लिखा जाता है- ‘श्री गणेश जी, रणथम्भौर का किला, जिला- सवाई माधोपुर (राजस्थान)।’ डाकिए द्वारा भी इन चिठियों को पूरी श्रद्धा के साथ मंदिर में पहुंचाया जाता है।

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चिंतामण मंदिर
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर के बारे में लगभग हर कोई जानता होगा, लेकिन यहीं स्थित चिंतामण मंदिर के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। यह एक रहस्यमयी मंदिर माना जाता है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह ऐसा मंदिर है जिसके निर्माण के लिए स्वयं भगवान गणेश पृथ्वी पर पधारे थे। इस मंदिर को लेकर एक अन्य मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने इसकी स्थापना की थी। मान्यता के अनुसार यहां जो भी सच्चे मन से पहुंचता है, उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं।

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कनिपकम गणेश मंदिर, आंध्र प्रदेश
कनिपकम गणेश मंदिर, आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में मौजूद है। इस धार्मिक और खूबसूरत जगह पर बप्पा की प्रतिमा पानी के बीच होने की वजह से इन्हें पानी के देवता के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी में चोल राजा कुलोठुन्गा चोल प्रथम द्वारा बनवाया गया था लेकिन इसका पुननिर्माण 1336 ईस्वी में विजयनगर के राजा ने किया था। माना जाता है कि इस मंदिर में गणेश जी की मूर्ति का आकार कई वर्षों से हर साल बढ़ रहा है।


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गणपतिपुले मंदिर
श्री गणेश का विशाल मंदिर मुंबई से 375 किलोमीटर दूर, रत्नागिरि जिले में बना है। जिस जगह यह मंदिर स्थापित है उस जगह का नाम गणपतिपुले है, इसलिए इस मंदिर को भी गणपतिपुले मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस प्रसिद्ध मंदिर में भक्तों का तांता सालभर लगा रहता है व गणेशोत्सव के दौरान यहां की रौनक आकर्षण का केंद्र होती है। यहां स्थित गणेश मंदिर पश्चिम द्वार देवता के रूप में भी प्रसिद्ध है। गणेश जी के इस प्राचीन मंदिर में लोग भगवान का आशीर्वाद लेने दूर-दूर से आते हैं और प्रसन्न होकर जाते हैं। यह स्थान धर्म और प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। मान्यता है कि गणपतिपुले मंदिर का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। गणेश मंदिर में पूजी जाने वाली मूर्ति स्वयंभू है, अर्थात जो स्वयं प्रकट हुई थी। लोगों की मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्त्य ने किया था। पौराणिक कथा के अनुसार, मंदिर में भगवान गणेश प्रकट हुए थे। उसके बाद यहां ऋषि अगस्त्य पूजा-पाठ करने लगे। मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश जी की मूर्ति सफेद रेत से बनी है। गणेश चतुर्थी पर यह मंदिर खास तरीके से सजाया जाता है।

अश्वमेघ गणेश, नाहरगढ़ (राजस्थान)
यह जयपुर में एक पहाड़ी पर स्थित है, जहां गणेश जी की बाल रूप वाली प्रतिमा की स्थापना की गई थी। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि मंदिर में पत्थर के दो मूषक (चूहों) के कानों में भक्त अपने सुख-दुख कहते हैं।

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सिद्ध गजानंद, जोधपुर
जोधपुर के रातानाडा में स्थित यह मंदिर 150 साल पुराना बताया जाता है। पहाड़ी पर बने इस मंदिर की ऊंचाई जमीन से करीब 108 फुट है। मंदिर श्रद्धालुओं के साथ-साथ कला और शिल्प प्रेमियों को भी पसंद आता है। शहर के लोगों का मानना है कि शादी के दौरान यहां निमंत्रण देने से शुभ कार्य में कोई बाधा नहीं आती इसलिए जोधपुर के हर घर में शादी से पहले यहां निमंत्रण दिया जाता है और गणेश जी की प्रतीकात्मक मूर्ति को ले जाकर पूरे विधि-विधान के साथ विवाह स्थल पर स्थापित किया जाता है। विवाह के बाद मूर्ति को फिर से मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। लोग मंदिर में पवित्र धागा बांधते हैं और भगवान को अपनी मनोकामना बताते हैं। कहा जाता है कि यहां जो भी मांगा जाता है, वह मिलता है। एक और मान्यता है- चूंकि मंदिर ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए यहां मौजूद पत्थरों से एक छोटा सा घर बनाया गया है। कहा जाता है कि ऐसा करने से लोग का अपने घर का सपना पूरा होता है।

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इश्किया गजानन, जोधपुर
जोधपुर शहर के किले के भीतर आड़ा बाजार जूनी मंडी में प्रथम पूज्य गणेश जी का एक अनूठा मंदिर है, जहां न केवल गणेश चतुर्थी बल्कि हर बुधवार शाम को मेले जैसा माहौल रहता है। दर्शन करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की होती है, जो इस अनोखे विनायक को अपना ‘हीरो’ मानते हैं। मूल रूप से गुरु गणपति मंदिर की प्रसिद्धि पूरे शहर में ‘इश्किया गजानन’ जी मंदिर के नाम से प्रचलित है। संकरी गली के अंत में स्थित सौ साल से भी ज्यादा पुराने गुरु गणपति मंदिर में युवा जोड़े प्रेम में सफलता पाने के लिए आते हैं। कहा जाता है कि महाराजा मानसिंह के समय गुरु का तालाब की खुदाई के दौरान गुरु गणपति की मूर्ति मिली थी। बाद में मूर्ति को गुरु का तालाब से घोड़ागाड़ी में लाकर जूनी मंडी स्थित निवास के सामने चबूतरे पर स्थापित किया गया।

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