Edited By Jyoti,Updated: 29 Apr, 2022 01:57 PM

एक दारोगा संत दादू की ईश्वर भक्ति से बहुत प्रभावित था। उन्हें गुरु मानने की इच्छा से वह उनकी खोज में निकल पड़ा। लगभग आधा जंगल पार करने के बाद दारोगा को केवल धोती पहने एक साधारण
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एक दारोगा संत दादू की ईश्वर भक्ति से बहुत प्रभावित था। उन्हें गुरु मानने की इच्छा से वह उनकी खोज में निकल पड़ा। लगभग आधा जंगल पार करने के बाद दारोगा को केवल धोती पहने एक साधारण-सा व्यक्ति दिखाई दिया। वह उसके पास जाकर बोला, ‘‘तुम्हें मालूम है कि संत दादू का आश्रम कहां है?’’
वह व्यक्ति दारोगा की बात अनसुनी करके अपना काम करता रहा। भला दरोगा को यह सब कैसे सहन होता? उसने आव देखा न ताव, लगा व्यक्ति की धुनाई करने। इस पर भी जब वह व्यक्ति मौन धारण किए अपना काम करता ही रहा तो दारोगा उसे ठोकर मार आगे बढ़ गया। थोड़ा आगे जाने पर दरोगा को एक और आदमी मिला। दारोगा ने उसे भी रोक कर पूछा, ‘‘क्या तुम्हें मालूम है संत दादू कहां रहते हैं?’’
‘‘उन्हें भला कौन नहीं जानता, वे तो उधर ही रहते हैं जिधर से आप आ रहे हैं। यहां से थोड़ी ही दूर पर उनका आश्रम है। मैं भी उनके दर्शन के लिए ही जा रहा था। आप मेरे साथ ही चलिए।’’
वह व्यक्ति बोला। दारोगा मन ही मन प्रसन्न होते हुए साथ चल दिया। राहगीर जिस व्यक्ति के पास दारोगा को ले गया उसे देख कर वह लज्जित हो उठा, क्योंकि संत दादू वही व्यक्ति थे, जिसको दारोगा ने मामूली आदमी समझ कर अपमानित किया था। वह दादू के चरणों में गिर कर क्षमा मांगने लगा। बोला, ‘‘महात्मन् मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझसे अनजाने में अपराध हो गया।’’

दारोगा की बात सुनकर संत दादू हंसते हुए बोले, ‘‘भाई, इसमें बुरा मानने की क्या बात?
कोई मिट्टी का एक घड़ा भी खरीदता है तो ठोक बजा कर देख लेता है। फिर तुम तो मुझे गुरु बनाने आए थे।’’
संत दादू की सहनशीलता के आगे दारोगा नतमस्तक हो गया।
