Edited By Jyoti,Updated: 10 May, 2022 12:16 PM
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से मिलने उनका एक मित्र पहुंचा। उसने देखा कि राष्ट्रपति लिंकन स्वयं अपने जूतों की पॉलिश कर रहे हैं। इतने बड़े देश के राष्ट्रपति को स्वयं अपने जूतों की पॉलिश करते देख उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
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अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से मिलने उनका एक मित्र पहुंचा। उसने देखा कि राष्ट्रपति लिंकन स्वयं अपने जूतों की पॉलिश कर रहे हैं। इतने बड़े देश के राष्ट्रपति को स्वयं अपने जूतों की पॉलिश करते देख उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
अपने मन में उठती जिज्ञासा को वह रोक न सका और उसने राष्ट्रपति लिंकन से पूछा, ‘‘मित्र! तुम अपने जूते क्या स्वयं पॉलिश करते हो? तुम तो दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति हो-यह काम करने वाले तो तुम्हें सैकड़ों मिल जाएंगे।’’
राष्ट्रपति लिंकन ने उत्तर दिया, ‘‘मित्र! अपने जूते दूसरों से पॉलिश करवाने के लिए मैं इस देश का राष्ट्रपति नहीं बना हूं। यदि मैं स्वयं अपने कार्यों को करने के लिए दूसरों पर आश्रित रहूंगा तो समाज को क्या दिशा और देशवासियों को क्या संदेश दे पाऊंगा?’’
लिंकन की बातें सुनकर उनके मित्र का हृदय गौरव से भर उठा कि उनके देश का राष्ट्रपति कितनी ऊंची सोच और कितने विशाल हृदय वाला है। सत्य यही है कि मनुष्य दूसरों पर अधिकार दिखाने से नहीं, वरन अपने गुणों को श्रेष्ठ बनाने से महान बनता है।