Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Oct, 2021 11:07 AM

यह नकल युग है। आजकल लोग नकल तो करते हैं लेकिन शक्ल की, अक्ल की नहीं। कोई फिल्म हिट हो जाए तो उस हीरो के कपड़ों की नकल चल पड़ती है, उसके ‘हेयर स्टाइल’ की नकल चल पड़ती है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Muni Shri Tarun Sagar: यह नकल युग है। आजकल लोग नकल तो करते हैं लेकिन शक्ल की, अक्ल की नहीं। कोई फिल्म हिट हो जाए तो उस हीरो के कपड़ों की नकल चल पड़ती है, उसके ‘हेयर स्टाइल’ की नकल चल पड़ती है। क्यों? क्योंकि सबसे अलग दिखना है। अरे भाई! सबसे अलग ही दिखना है तो तरुण सागर बन के दिखाओ। सबसे अलग है। नकल करो लेकिन नायक की। खलनायक की नहीं।

31 दिसम्बर की रात हो। घर में चोर घुस आए और पुराने साल का कैलेंडर चुराकर ले जाए तो हमें दुख नहीं होता क्योंकि वह तो वैसे भी हटाना ही था। बचपन गुजर जाए, यौवन गुजर जाए तो दुख किस बात का? सोचना वह तो गुजरना ही था। सिर्फ इतना ध्यान रखना कि उम्र से बड़े हो गए तो अब भावनाओं से भी बड़े होना है। सत्य बोलना, सत्य सुनना और सत्य सोचना शुरू करना है।

लड़की को देखने के लिए लड़के के मां-बाप आए। बाप ने लड़की से पूछा, ‘‘तुमको कौन-कौन से शास्त्र पढ़ने आते हैं?’’ लड़की ने कहा, ‘‘रामायण तो अभी सुन लीजिए, महाभारत घर आकर सुनाऊंगी।’’

कभी-कभी सामने वाले को समझना बड़ा मुश्किल होता है। खुद समझ लोगे तो समझाना मुश्किल होता है पर जीवन में खुद को समझना जरूरी है। खुद को समझ न सको तो जीवन एक मजाक बनकर रह जाता है और यह समझ बाजार का कोई टॉनिक पीने से नहीं आती, यह तो साधना से आती है।
- मुनि श्री तरुण सागर जी