Nirai Mata Mandir: यह मंदिर साल में केवल 5 घंटे खोलता है अपने द्वार, महिलाओं की एंट्री पर हैं अनोखे नियम

Edited By Updated: 10 Oct, 2025 08:09 AM

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Nirai Mata Mandir: क्या आपने कभी सुना है कि मां के दरबार में महिलाएं नहीं जा सकती। निरई माता के इस मंदिर में महिलाओं का जाना और पूजा-पाठ करना वर्जित है।  सिर्फ ये ही नहीं बल्कि महिलाओं को यहां के प्रसाद को खाने की इजाजत तक भी नहीं है। ये ही नहीं,...

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Nirai Mata Mandir: क्या आपने कभी सुना है कि मां के दरबार में महिलाएं नहीं जा सकती। निरई माता के इस मंदिर में महिलाओं का जाना और पूजा-पाठ करना वर्जित है।  सिर्फ ये ही नहीं बल्कि महिलाओं को यहां के प्रसाद को खाने की इजाजत तक भी नहीं है। ये ही नहीं, जहां एक तरफ माता रानी के नाम से ही सपष्ट है। माता का हार-श्रृंगार आदि,  वहीं इस मंदिर में मां को सुहाग का सामान नहीं चढ़ाया जाता बल्कि यहां माता रानी को प्रसन्न करने के लिए सुहाग की जगह जानवरों की भेंट की जाती है।  ये सारी बातें हर किसी को सोचने में मजबूर कर देती है कि ऐसा क्यों ?

माता के इस द्वार को निरई व निराई माता के नाम से भी जाना जाता है।  ये मंदिर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। ये श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है, निरई माता को लगभग 200 सालों से पूजा जा रहा है। माता रानी के इस एक दरबार में बहुत सारी अनोखी बातें छिपी हैं। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात ये है कि इस परिसर के कपाट सुबह 4 से 9 बजे तक सिर्फ 5 घंटे के लिए ही खोले जाते हैं। इस दौरान यहां भक्तों की भीड़ लग जाती है। लोग कतारों में लगकर मां के दर्शन करतें है। 

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अब बात करते हैं पूजा की परंपराओं की। 

इस मंदिर की अनोखी परंपरा के मुताबिक मंदिर में महिलाओं का जाना और पूजा-पाठ करना वर्जित है। सिर्फ ये ही नहीं बल्कि महिलाओं को यहां के प्रसाद को खाने की इजाजत तक भी नहीं है। माना जाता है कि प्रसाद खाने से कुछ अनहोनी होने का डर रहता है इसलिए केवल पुरुष ही यहां की पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं। 

 मां निरई के इस पावन दरवार में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल और धुप नहीं चढ़ाया जाता है बल्कि नारियल, अगरबत्ती, से माता को मनाया जाता है। इसके साथ ही यहां बकरों की बलि दी जाती है। लोक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। कई सालो से चली आ रही प्रथा के अनुसार मनोकामना पूरी होने के बाद मां को बकरे की बलि उपहार के रूप दी जाती है। 

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इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य है इसकी स्वयं प्रज्वलित ज्योत। इस मंदिर में चैत्र माह के नवरात्रि में 9 दिन ज्योत स्वयं जलती है और माता रानी की ये पवित्र जोत बिना तेल और घी के स्वयं जलती है। ये नज़ारा देखने लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और हैरान रह जाते हैं। यहां तक कि बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता आज तक नहीं लगा पाएं। यह चमत्कार कैसे होता है, यह आज तक पहेली ही बना हुआ है। स्थानीय लोग इसे निरई माता का चमत्कार मानते हैं। 

मां निरई के इस रहस्यमयी मंदिर की परंपराएं हमें यह एहसास कराती हैं कि भारत की संस्कृति कितनी अद्भुत, रहस्यमयी और अलौकिक है। यहां हर रीति-रिवाज़, हर चमत्कार भक्तों के विश्वास को और गहरा कर देता है। सच तो ये है कि निरई मां का दरबार केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो असंभव को संभव बना देती है।

 
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