Edited By Prachi Sharma,Updated: 23 Dec, 2025 12:38 PM

Putrada Ekadashi 2025 : 30 दिसंबर 2025 को वृंदावन और पूरे ब्रज क्षेत्र में आस्था और भक्ति का अभूतपूर्व नजारा देखने को मिलेगा। इस दिन वर्ष की अत्यंत पुण्यदायी पौष पुत्रदा एकादशी मनाई जा रही है, जिसके कारण ब्रज धाम में श्रद्धालुओं का विशाल जनसैलाब...
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Putrada Ekadashi 2025 : 30 दिसंबर 2025 को वृंदावन और पूरे ब्रज क्षेत्र में आस्था और भक्ति का अभूतपूर्व नजारा देखने को मिलेगा। इस दिन वर्ष की अत्यंत पुण्यदायी पौष पुत्रदा एकादशी मनाई जा रही है, जिसके कारण ब्रज धाम में श्रद्धालुओं का विशाल जनसैलाब उमड़ने की संभावना है। वैसे भी वृंदावन में एकादशी का विशेष महत्व होता है लेकिन साल के अंतिम दिनों में पड़ने के कारण इस बार भक्त देशभर से वर्ष की विदाई और नववर्ष का स्वागत ठाकुर बांके बिहारी के चरणों में करने के लिए पहुंच रहे हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पावन तिथि पर यमुना स्नान और भगवान के दर्शन से संतान सुख की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। यही कारण है कि गृहस्थ जीवन से जुड़े श्रद्धालुओं के साथ-साथ साधु-संत भी बड़ी संख्या में ब्रज धाम की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिससे पूरा क्षेत्र आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो गया है।
हालांकि इस बार वृंदावन पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की वजह सिर्फ पौष पुत्रदा एकादशी ही नहीं है। इसके पीछे एक और अत्यंत दुर्लभ आध्यात्मिक अवसर जुड़ा है- ऐसा द्वार जो वर्ष में केवल एक बार खोला जाता है और जिसे पार करना स्वयं को सौभाग्यशाली मानने जैसा माना जाता है। यही कारण है कि अपनी मनोकामनाओं को लेकर गृहस्थ और आत्मिक उन्नति की तलाश में साधु-संत बड़ी संख्या में वृंदावन पहुंच रहे हैं।
30 दिसंबर 2025 को क्या विशेष होने जा रहा है?
30 दिसंबर 2025 को वृंदावन के प्रसिद्ध श्री रंगनाथ जी मंदिर में वैकुंठ द्वार खोला जाएगा। दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार इस दिन को वैकुंठ एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह अवसर न केवल ब्रज क्षेत्र बल्कि पूरे देश के श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत दुर्लभ और पवित्र माना जाता है।
मान्यता है कि वैकुंठ एकादशी के दिन स्वर्गलोक के द्वार खुले रहते हैं। वृंदावन स्थित रंगजी मंदिर में बना वैकुंठ द्वार साल में केवल इसी एक दिन खोला जाता है। श्रद्धालु इस द्वार से होकर भगवान के दर्शन करते हैं, जिसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
ऐसा विश्वास है कि जो भक्त श्रद्धा और भक्ति भाव से इस द्वार से होकर गुजरते हैं, वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के परमधाम वैकुंठ को प्राप्त करते हैं। इसी कारण वैकुंठ द्वार को आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
वैकुंठ एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
इस दिन के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में मुर नामक एक शक्तिशाली असुर ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। इसके बाद भगवान विष्णु और असुर मुर के बीच घोर युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान जब भगवान विष्णु विश्राम के लिए एक गुफा में गए, तब असुर मुर ने उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया। उसी समय भगवान के तेज से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, जिसने असुर का अंत कर दिया। भगवान विष्णु ने उस दिव्य शक्ति को ‘एकादशी’ नाम दिया।
क्योंकि यह घटना पौष मास के शुक्ल पक्ष में हुई थी इसलिए भगवान ने वरदान दिया कि जो भक्त इस दिन विधिपूर्वक पूजन करेगा और वैकुंठ द्वार से होकर दर्शन करेगा, उसके लिए मोक्ष का मार्ग सदा के लिए खुल जाएगा।