Ramayana: कभी न घबराओ कठिनाइयों से श्राप भी बनता है वरदान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Jun, 2021 09:01 AM

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महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी, तब वह बड़े दुखी रहते थे। ऐसे समय में उनको एक बात से बड़ा हौसला मिलता था जो कभी उन्हें निराश नहीं होने देता था। वह था श्रवण के पिता का श्राप...

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Ramayana: महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी, तब वह बड़े दुखी रहते थे। ऐसे समय में उनको एक बात से बड़ा हौसला मिलता था जो कभी उन्हें निराश नहीं होने देता था। वह था श्रवण के पिता का श्राप...

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दशरथ जब दुखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता... (कालिदास ने रघुवंशम में इसका उल्लेख किया है।)
श्रवण के पिता ने यह श्राप दिया था कि ‘‘जैसे मैं पुत्र के वियोग में तड़प-तड़प कर मर रहा हूं, वैसे तू भी औलाद के वियोग में तड़प-तड़प कर मरेगा।’’

महाराज दशरथ को पता था कि यह श्राप फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में पुत्र जरूर प्राप्त होगा। (तभी तो उसके शोक में तड़प कर मरूंगा) यानी यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का संयोग लेकर आया।

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ऐसी ही घटना सुग्रीव के साथ हुई। वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानरवीरों को पृथ्वी की अलग-अलग दिशाओं में भेज रहे थे...तो उसके साथ ही उन्हें यह भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें कौन-सा स्थान या देश मिलेगा और उन्हें किस दिशा में जाना या नहीं जाना चाहिए।

प्रभु श्री राम सुग्रीव का यह भौगोलिक ज्ञान देखकर हत्प्रभ थे। उन्होंने सुग्रीव से पूछा, ‘‘सुग्रीव तुम्हें यह सब कैसे पता है?’’

सुग्रीव ने विनम्रतापूर्वक श्री राम से कहा, ‘‘मैं बाली के भय से जब मारा-मारा फिर रहा था, तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली...। बस इसी चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया।’’

अब अगर सुग्रीव पर यह संकट न आया होता तो माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता। अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियां वरदान हैं और जो उनके अनुसार व्यवहार करें वहीं पुरुषार्थी हैं।’’

अर्थात : अगर आज मिले सुख से आप खुश हैं और कभी अगर कोई दुख विपदा, अड़चन आ जाए तो घबराएं नहीं। क्या पता, वह अगले किसी सुख की तैयारी हो।

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एक दिन आप पढ़ेंगे कि आज कोरोना के कारण कोई नहीं मरा। एक दिन हम देखेंगे कि हमारे बच्चे फिर से स्कूल जा रहे हैं। एक दिन हम फिर देखेंगे भी और सबके गले मिलेंगे तथा शादियों और समारोहों में एक साथ नाचेंगे भी। हम सबको उसी दिन का इंतजार है। हमें बस अपने आप को प्रेरित करना है कि दूसरों की मदद किस प्रकार करें। या कम से कम हम कुछ भी न करें तो गलत अफवाह या बुरी खबरों को न फैलाएं।

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किसी शायर ने कहा है : 
दिल न उम्मीद नहीं, नाकाम ही तो है।
लम्बी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।

 

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