Ratneshwar Mahadev Mandir: 400 वर्षों से 9 डिग्री के कोण पर झुका है वाराणसी का रत्नेश्वर महादेव मंदिर

Edited By Updated: 08 Jul, 2025 01:00 AM

ratneshwar mahadev mandir

पीसा की मीनार के बारे में तो कई लोगों ने सुना ही होगा, जो 4 डिग्री झुके होने के बावजूद ज्यों की त्यों खड़ी है लेकिन उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी वाराणसी में एक ऐसा मंदिर है जो 9 डिग्री झुके होने के बावजूद अपनी खूबसूरती से विश्व में प्रसिद्ध है। अनोखी...

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Ratneshwar Mahadev Mandir: पीसा की मीनार के बारे में तो कई लोगों ने सुना ही होगा, जो 4 डिग्री झुके होने के बावजूद ज्यों की त्यों खड़ी है लेकिन उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी वाराणसी में एक ऐसा मंदिर है जो 9 डिग्री झुके होने के बावजूद अपनी खूबसूरती से विश्व में प्रसिद्ध है। अनोखी बात है कि सावन के महीने में भी रत्नेश्वर महादेव मंदिर में न तो बोल बम के नारे गूंजते हैं और न ही घंटा घड़ियाल की आवाज सुनाई देती है।

महाश्मशान के पास बना करीब 400 वर्ष पुराना यह दुर्लभ मंदिर आज भी लोगों के लिए आश्चर्य ही है। साल में 8 महीने यह गंगाजल से आधा डूबा हुआ रहता है और 4 महीने पानी के बाहर। इस कारण इस मंदिर के गर्भगृह में कभी भगवान शिव का दर्शन नहीं हो पाता है। स्थापित शिवलिंग भी जमीन के 10 फुट नीचे है। यही वजह है कि सावन जैसे पवित्र महीने में भी यहां कोई शिवभक्त जलाभिषेक नहीं कर पाता। अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर गंगा नदी की तलहटी पर बना हुआ है। यह वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के ठीक बगल में स्थित है जो बनने के ठीक बाद ही नदी के दाहिनी ओर झुक गया था। इसमें भगवान शिव विराजमान हैं जिन्हें रत्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

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अहिल्याबाई की दासी ने बनवाया
लगभग 400 वर्ष पहले इसे महारानी अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई ने बनवाया था। बताया जाता है कि रानी अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई ने मंदिर बनाने की इच्छा जताई थी। रानी अहिल्याबाई ने गंगा किनारे की जमीन रत्नाबाई को दे दी थी, जिसके बाद रत्नाबाई ने इस मंदिर को बनवाना शुरू किया। मंदिर निर्माण के दौरान कुछ रुपयों की कमी आई तो रत्नाबाई ने रानी अहिल्याबाई से रुपए लेकर इस मंदिर का निर्माण पूर्ण कराया।

मंदिर से जुड़ी किंवदंती
कहते हैं कि मंदिर बनने के बाद जब रानी अहिल्याबाई ने मंदिर देखने की इच्छा जताई और मंदिर के पास पहुंचीं तो इसकी खूबसूरती देखकर उन्होंने दासी रत्नाबाई से इस मंदिर को नाम न देने की बात कही। इसके बाद रत्नाबाई ने इसे अपने नाम से जोड़ते हुए रत्नेश्वर महादेव का नाम दिया। इससे नाराज होकर अहिल्याबाई ने श्राप दिया और माना जाता है कि जैसे ही मंदिर का नाम पड़ा, यह दाहिनी ओर झुक गया।

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गुजरात शैली से बना मंदिर
मंदिर की कलाकृतियां व कारीगरी देखते ही बनती है। गुजरात शैली पर बने इस मंदिर में अलग-अलग कलाकृतियां बनाई गई हैं। पिलर से लेकर दीवारें तक सभी पत्थरों पर नक्काशी का नायाब नमूना पेश कर रहे हैं। 400 साल पहले बिना किसी मशीन के सहारे ऐसी नक्काशी किया जाना अपने आप में इस मंदिर के अनोखे होने की दास्तान बयां करती है।

ब भी झुक रहा है मंदिर
खास बात है कि मंदिर के झुकने का क्रम अब भी कायम है। मंदिर का छज्जा जमीन से 8 फुट ऊंचाई पर था लेकिन वर्तमान में यह ऊंचाई 7 फुट हो गई है। मंदिर के गर्भगृह में कभी भी स्थिर होकर खड़ा नहीं रहा जा सकता है।

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