Dharmik Katha: शबरी के विश्ववास ने मिलाया उसे पुरुषोत्तम श्री राम से

Edited By Updated: 17 Jun, 2022 01:31 PM

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एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बूढ़ी भीलनी के मुंह से बोल निकले, ‘‘कहो राम! शबरी की डीह ढूंढने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?’’

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एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बूढ़ी भीलनी के मुंह से बोल निकले, ‘‘कहो राम! शबरी की डीह ढूंढने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?’’

राम मुस्कुराए, ‘‘यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मूल्य...’’

‘‘जानते हो राम, तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूं, जब तुम जन्मे भी नहीं थे। यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो,  कैसे दिखते हो और क्यों आओगे मेरे पास! बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा...।’’

श्री राम ने उत्तर दिया, ‘‘तभी तो मेरे जन्म से पहले ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।’’

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शबरी ने कहा,‘‘एक बात बताऊं प्रभु! भक्ति के दो भाव होते हैं, पहला मर्कट भाव, और दूसरा मार्जार भाव। बंदर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी मां का पेट पकड़े रहता है ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा मां पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से थामे रहता है।’’

‘‘यही भक्ति का भी एक भाव है जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन-रात उसकी आराधना करता है। पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भांति थी जो अपनी मां को पकड़ता ही नहीं बल्कि निश्चिंत बैठा रहता है कि मां है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी और मां सचमुच उसे अपने मुंह में टांग कर घूमती है... मैं भी निश्चिंत थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना।’’

राम मुस्कुरा कर रह गए। शबरी ने पुन: कहा, ‘‘सोच रही हूं बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है... कहां सुदूर उत्तर के तुम, कहां घोर दक्षिण में मैं।’’

‘‘तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी... यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहां से आते!’’

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राम गंभीर होकर कहने लगे, ‘‘भ्रम में न पड़ो मां! राम क्या रावण का वध करने आया है! छि: अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैरों से बाण चलाकर कर सकता है। राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने।’’

‘‘राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाए तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे तभी वह रामराज्य है। राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षा अवश्य पूरी होती है। राम सिर्फ रावण को मारने के लिए नहीं आया मां...’’

शबरी एकटक राम को निहारती रहीं। प्रभु राम ने फिर कहा, ‘‘राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता। राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए।’’

‘‘राम ने अवतार लिया ताकि विश्व को बता सके कि अधर्म का अंत करना ही धर्म है। राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक शूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं।’’

शबरी की आंखों में नीर भर आया था। उन्होंने बात बदल कर कहा, ‘‘कंद खाओगे राम?’’

राम मुस्कुराए, ‘‘बिना खाए जाऊंगा भी नहीं मां...’’

शबरी अपनी कुटिया से कंद ले कर आई और राम के समक्ष रख दिए।

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो माता शबरी ने पूछा, ‘‘मीठे हैं न प्रभु?’’

‘‘यहां आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूं । बस इतना समझ रहा हूं कि यही अमृत है...।’’

शबरी मुस्कुराईं और बोलीं, ‘‘सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम।’’

—सत्य शर्मा

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