यहां करवाया था भोलेनाथ ने अरूणा नदी व सरस्वती का संगम

Edited By Jyoti,Updated: 02 May, 2019 10:54 AM

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हिंदू धर्म के पंचांग के अनुसार आज त्रयोदशी तिथि को यानि आज 02 अप्रैल, 2019 को प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है, इसलिए आज के दिन मंदिरों आदि में अधिक भीड़ देखने को मिलती है।

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हिंदू धर्म के पंचांग के अनुसार आज त्रयोदशी तिथि को यानि आज 02 अप्रैल, 2019 को प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है, इसलिए आज के दिन मंदिरों आदि में अधिक भीड़ देखने को मिलती है। लोग भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए उनका विभिन्न चीज़ों से अभिषेक करते हैं ताकि देवों के देव महादेव उन पर शीघ्र प्रसन्न हो जाएं। तो चलिए शिव जी इस खास पर्व के दिन आपको महादेव के एक ऐसे मंदिर के दर्शन करवाते हैं जो काफी प्राचीन व प्रसिद्ध है।
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हम बात कर रहे हैं कि संगमेश्वर महादेव मंदिर की जो पिहोवा से 4 कि.मी दूर गांव अरुणाय में स्थित है। भोलेनाथ के इस प्राचीन मंदिर में महाशिवरात्रि पर तो लाखों श्रद्धालु आते ही हैं, बल्कि यहां हर महीने में आने वाले मासिक शिवरात्रि पर भी भक्तों का तांता लगता है। इसके अलावा सावन माह के दौरान दिनभर श्रद्धालु मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

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मंदिर का इतिहास
कहा जाता कि पुरातन काल में अरुणा संगम तीर्थ (संगमेश्वर महादेव मंदिर) की महिमा महाभारत वामन-पुरान, गरूड़ पुराण, संकद पुराण, पदम पुराण आदि ग्रंथों में वर्णित है। प्रचलित लोक कथा के अनुसार ऋषि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र में जब अपनी श्रेष्ठता साबित करने की जंग हुई, तब ऋषि विश्वामित्र ने मां सरस्वती की सहायता से ऋषि वशिष्ठ को मारने के लिए शस्त्र उठाया, तभी मां सरस्वती ऋषि विशिष्ट को वापस बहा कर ले गई। तब ऋषि विश्वामित्र ने देवी सरस्वती को रक्त व पींप सहित बहने का श्राप दिया। विश्वामित्र के इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए मां सरस्वती ने भगवान शंकर की तपस्या की। भगवान शंकर के आशीर्वाद से प्रेरित 88 हजार ऋषियों ने यज्ञ द्वारा अरूणा नदी व सरस्वती का संगम कराया। इसके बाद देवी सरस्वती को श्राप से मुक्ति मिली थी। माना जाता है नदियों के संगम से भगवान शंकर संगमेश्वर महादेव के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुए।
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मंदिरों में पूजा का महत्व
मंदिर के पुजारियों द्वारा बताया गया है कि संगमेश्वर महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जोकि ऋषि मुनियों की कठोर तपस्या के फल स्वरूप धरती से प्रकट हैं। मान्यता है कि सावन माह में भगवान शिव का धरती पर वास होता है, इसलिए इस महीने में यहां भक्तों का जमावड़ा देखने को मिलता है। इसके अलावा रोज़ाना मंदिर में करीब सवा लाख बेल पत्र शिवलिंग पर चढ़ाया जातां हैं।

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श्रद्धापूर्ण पूजा से बनते काम
श्रद्धालुओं का कहना है सावन माह में स्वयंभू शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तो अगर आप की अधूरी इच्छाएं हैं, जो पूरी नहीं हुई तो यहां पूजा-अर्चना करने ज़रूर जाएं है, जल्द ही आपके सभी काम बन जाएंगे।
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