संत दादू की आज्ञानुसार अकबर ने गोवध पर लगाया प्रतिबंध, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Mar, 2022 11:36 AM

sant dadu dayal

16वीं सदी में जब आक्रांताओं का प्रताप बढऩे लगा, हिन्दू-मुसलमान के पारिस्परिक मतभेदों के कारण उपद्रव बढ़ गए, उस समय मुनियों को समर्थ जानकर परमात्मा ने सनक जी को धरती पर भेजने का निश्चय किया। परमात्मा ने सनक जी को

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Sant Dadu Dayal: 16वीं सदी में जब आक्रांताओं का प्रताप बढऩे लगा, हिन्दू-मुसलमान के पारिस्परिक मतभेदों के कारण उपद्रव बढ़ गए, उस समय मुनियों को समर्थ जानकर परमात्मा ने सनक जी को धरती पर भेजने का निश्चय किया। परमात्मा ने सनक जी को अपनी योग शक्ति से बालक रूप बनाकर लोक कल्याण के लिए अहमदाबाद निवासी लोधी राम नागर ब्राह्मण के पोष्य पुत्र के रूप में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी विक्रमी सम्वत् 1601 को भेजा।

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लोधी राम ने पुत्र का नाम दादू रखा। बाल लीला के 3 वर्ष व्यतीत होने के बाद दादू को शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय में भेजा गया। 11 वर्ष की आयु में संत दादू ने वृद्ध मुनि के रूप में भगवान के दर्शन किए। संत दादू ने 16 वर्ष कठोर तपस्या की और इस संसार को प्रेम एवं भाई-चारा कायम करने का संदेश दिया। संत दादू ने कठोर तपस्या के पश्चात राजस्थान में अपने उपदेश देना प्रारंभ कर दिया और उनकी कीर्ति पूरे देश में बढ़ गई। यह खबर सम्राट अकबर के दरबार में भी पंहुची। इस वजह से सम्राट अकबर की जिज्ञासा इनसे मिलने की हुई। फिर अकबर ने संत दादू को बुलाने के लिए कई पत्र भेजे परंतु इन्होंने उत्तर नहीं दिया।

सम्राट अकबर के मन में संत दादू के दर्शन करने की प्रबल इच्छा थी। अत: उसने आमेर के राजा भगवतदास को बुला कर कहा, ‘‘तुम्हारे नगर में संत दादू रहते हैं, मैं उनके दर्शन करना चाहता हूं, इसलिए तुम उनको यहां बुलाओ और यदि वह यहां नहीं आएं तो हम वहां चलेंगे।’’  

संत दादू अपने शिष्यों सहित 7 दिनों में सीकरी जा पहुंचे। अकबर ने उनके दर्शन करके कहा, ‘‘आज मैं धन्य हो गया हूं, जो आपका साक्षात् दर्शन कर रहा हूं।’’

संत दादू के विचारों को सुन कर अकबर अति प्रभावित होते हुए बोला, ‘‘आपके सत्संग से मुझे अति हर्ष हुआ है।’’

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 51 दिन आध्यात्मिक चर्चा के बाद संत दादू ने अकबर से कहा, ‘‘आपको मेरे उपदेशों से कुछ तो धारण करना चाहिए। केवल सिर झुकाने से क्या लाभ है!’’

अकबर बोला,‘‘भगवन! आप आज्ञा दें, वही करूंगा।’’

संत दादू ने कहा, ‘‘आप अपने राज में गोवध बंद कर दें तभी हमारा उपदेश सार्थक समझा जाएगा।’’

इसके अगले ही दिन अकबर ने राजसभा में घोषणा कर दी कि मेरे राज में आज से गोवध सर्वथा बंद है, जो गाय को मारेगा उसे दंड दिया जाएगा। 

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