बुंदेलखंड के इस सत्यनारायण मंदिर में लगता है 5 कुंटल लड्डुओं का भोग

Edited By Updated: 23 Oct, 2021 12:04 PM

satyanarayan temple in bundelkhand

देशभर के गिने-चुने सत्यनारायण भगवान के मंदिरों में छतरपुर स्थित सत्यनारायण भगवान का यह मंदिर शामिल है। जिसमें ढाई-सौ (250) साल पुरानी अष्टधातु की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर में स्थापित दिव्य मूर्ति का तेज देखेते ही बनता है

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
●ढाई-सौ साल पुरानी अष्ठधातु की दिव्य प्रतिमा

●पांच हजार महिलाएं आतीं हैं दर्शन करने

●शरद पूर्णिमा के दिन दार्शनों का रहता है उच्च महत्व

●सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक लगा रहता है तांता

●एक दिन में लग जाता है पाँच कुंटल लड्डुओं का भोग

●सवा-सौ ग्राम वजन का रहता है एक लड्डू

●महिलाएं बच्चों, परिवार की सुख, स्वस्थ, संपन्नता की कामना के लिए रखतीं हैं व्रत 

देशभर के गिने-चुने सत्यनारायण भगवान के मंदिरों में छतरपुर स्थित सत्यनारायण भगवान का यह मंदिर शामिल है। जिसमें ढाई-सौ (250) साल पुरानी अष्टधातु की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर में स्थापित दिव्य मूर्ति का तेज देखेते ही बनता है यहां सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में सत्यनारायण भगवान का इकलौता मंदिर है जो आसपास के जिलों सहित दूरदराज के इलाकों में कहीं भी नहीं है। सत्यनारायण भगवान के मंदिर पूरे देश और विश्व भर में गिने चुने हैं। जिनमें से एक मंदिर छतरपुर में स्थापित है। जहां दूर-दराज देश दुनिया से लोग दर्शन करने और मनोकामना मांगने आते हैं। तो आइए जानें क्या है छतरपुर के सत्यनारायण भगवान मंदिर की कहानी-

●देश भर में गिने-चुने मंदिरों में एकलौता मंदिर
समूचे बुंदेलखंड ईलाके में सत्यनानारायण भगवान का इकलौता मंदिर छतरपुर जिले में मौजूद है। इस मंदिर में 250 साल पुरानी अष्टधातु की सत्यनारायण भगवान की मूर्ति विराजमान है। पहले यह मंदिर हतवारा इलाके में स्थित था पर 1979 में मंदिर के मुख्य पुजारी जागेश्वर प्रसाद भार्गव इस प्रतिमा को प्रकाशचंद्र भार्गव (बता दें कि जागेश्वर प्रसाद भार्गव के कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने प्रकाशचंद्र भार्गव को गोद लिया था और बेटा मां लिया था) के यहां ले आये थे और यहां मकान की दूसरी मंजिल में यह प्रतिमा स्थापित कर दी थी और तकरीबन 43 सालों से यह प्रतिमा यहीं विराजमान है। और दूसरी मंजिल में ही मंदिर का निर्माण किया गया।

●250 साल पुरानी इकलौती सत्यनारायण की प्रतिमा
मंदिर के मुख्य पुजारी राममिलन शर्मा शास्त्री जी की मानें तो यह सत्यनारायण भगवान की अष्टधातु की प्रतिमा ढाई सौ साल पुरानी है जिसे राजा महाराजों के काल में बनॉया गया था। यह मंदिर बुंदेलखंड का इकलौता मंदिर है ऐसा मंदिर यहां आस-पास तो क्या 200-500 कोष तक नहीं है।

●हर जगह नहीं होते मंदिर न ही बनाये जा सकते हैं
पुजारी जी की मॉनें तो सत्यनारायण के मंदिर की अन्य मंदिर न होने की वजह बताते हैं कि सत्यनारायण की पूजा बड़ी कठिन पूजा होती है इनका नाम ही सत्यनारायण है इसलिए यह सत्य पर स्थापित होते हैं और सत्य की शक्ति अब आज के दौर में किसी में बची नहीं है। आज के दौर में सत्य की पूजा और उपासना करना बहुत मुश्किल और नामुमकिन सा है। इसलिए हर कोई इनकी पूजा नहीं कर पाता और ना ही स्थापना कर पाता है। जिसके चलते यह मंदिर देश में वविरले और प्राचीन ही स्थापित है।

●तड़के सुबह से देर रात 11-12 बजे तक रहता भक्तों का तांता
पुजारी जी बताते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण पूजा का खासा महत्व रहता है यहां दूर-दूर और आस-पास के जिलों से महिलाएं सत्यनारायण भगवान को भोग लगाने आतीं हैं। और यह सिलसिला सुबह 7 बजे से लेकर रात्रि 11-12 बजे तकबबना राहता है। शरद पूर्णिमा का यह प्रसाद चढाने का सिलसिला  आगामी 15 दिनों तक चलता रहता है। दूर-दराज से लोग आते रहते हैं। जो नहीं आती वह डाक/पार्शल या किसी भक्त के द्वारा अपना प्रसाद लड्डू भिजवा देते हैं।

●शरद पूर्णिमा के दर्शन और प्रसाद का रहता ख़ासा महत्व
आज यानि शरद पूर्णिमा के दिन महिलाएं अपने बाच्चों और परिवार की सुख, स्वास्थ्य, संपन्नता, धन, धान्य, समृद्धि, खुशहाली और दीर्घायु के लिए  व्रत रखतीं हैं। जिसमें सवा पाव खोवा और सवा पाव शक्कर मिलाकर छह लड्डू बनाए जाते हैं जिनमें से एक लड्डू सत्यनारायण भगवान को, दूसरा लड्डू सहेली से बदला जाता है, तीसरा लड्डू गर्भवती महिला को दिया जाता है, चौथा लड्डू बाल-गोपाल और गायों को दिया जाता है, पांचवा लड्डू पति को दिया जाता है और छठवां लड्डू महिला का खुद का रहता है। नियम यह है कि जो लड्डू जिनके लिए दिए जाते हैं सिर्फ वही खा सकते हैं इन्हें किसी और को वह बांट नहीं सकता उसे ही पूरा खाना होता है।

●आज की रात होती है अमृत वर्षा
देर रात घर में खीर बनाई जाती है और इस खीर को अपने घर की छत, आंगन, में खुले आसमान में खुला रख दिया जाता है। मान्यता है कि इस रात आसमान से अमृत वर्षा होती है जो अमृत खीर में चला जाता है और सुबह इस खीर का भोग लगाकर परिवार के सभी लोग अर्पण करते हैं।

●तड़के सुबह से देर रात तक लगा रहता है तांता
पुजारी जी बताते हैं कि सुबह 6:00 बजे से लेकर रात 11:00 बजे देर रात तक महिलाएं सत्यनारायण भगवान के दर्शन करने और लड्डू चढ़ाने आतीं हैं। आज के दिन सत्यनारायण भगवान से सच्चे मन हृदय से जो भी मनोकामना की जाती है वह पूर्ण करते हैं।

●5000 लड्डू 5 कुंटल से अधिक का लगता है भोग
शरद पूर्णिमा के दिन लगभग 5000  महिलाएं पूजन-दर्शन करने आतीं हैं हर महिला 1 लड्डू चढ़ाती है जिससे ययहां तकरीबन 5000 (पांच हजार लड्डू जो पांचवे कुंटल सी ज्यादा वाजिन के हो जाते हैं) इन लड्डुओं को हम भोग प्रसाद के रूप में आने-जाने वाले दर्शनार्थियों और श्रद्धालुओंके को प्रसाद के रूप में वितरित करते रहते हैं।

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