मानो या न मानो: आधुनिक युग में बदलते Lifestyle के साथ बदल रहा है शुभ मुहूर्त का रूप

Edited By Updated: 27 Nov, 2025 03:17 PM

shubh muhurat auspicious time

Shubh Muhurat Auspicious time: मेरी प्रिय सखी अपनी बेटी की शादी का कार्ड लेकर आई। उसके चेहरे पर खुशी थी, पर वही खुशी थोड़ी थकान से भी ढकी हुई थी। उसने बताया कि ‘तेज लगन’ होने के कारण मैरिज हॉल से लेकर मेहंदी वाली तक सभी ने दोगुने-तिगुने दाम मांगे।...

Shubh Muhurat Auspicious time: मेरी प्रिय सखी अपनी बेटी की शादी का कार्ड लेकर आई। उसके चेहरे पर खुशी थी, पर वही खुशी थोड़ी थकान से भी ढकी हुई थी। उसने बताया कि ‘तेज लगन’ होने के कारण मैरिज हॉल से लेकर मेहंदी वाली तक सभी ने दोगुने-तिगुने दाम मांगे। सारे इंतजाम उत्सव नहीं, बल्कि शुभ मुहूर्त पकड़ने की एक तनाव भरी दौड़ बन गए थे। उसके जाने के बाद मन में एक सवाल बार-बार उठता रहा कि आखिर शुभ मुहूर्त की इतनी जरूरत क्यों? जब हर दिन ईश्वर का ही बनाया हुआ है, तो फिर कौन-सा दिन अधिक शुभ और कौन-सा कम ?

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जन्म, मृत्यु, बीमारी, फूल का खिलना, ऋतु का बदलना, इनमें से कोई भी घटना कभी मुहूर्त देखकर नहीं होती। न डॉक्टर ऑपरेशन मुहूर्त देखकर करते हैं, न कोई ट्रेन या फ्लाइट ग्रह-नक्षत्र देखकर चलती है। प्रकृति का हर काम अपने समय पर होता है तो फिर हमारा जीवन शुभ-अशुभ की इतनी कठोर सीमाओं में क्यों बंधा हुआ है?

अक्सर कहा जाता है कि मुहूर्त देखकर विवाह करने से विवाह सफल होता है, किंतु इसका कोई प्रामाणिक प्रमाण किसी के पास नहीं। जो शादियां सफल हुईं - उनमें मुहूर्त कारण नहीं था और जो असफल हुईं, उनकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। भाग्य, परिस्थितियां, स्वभाव, समझ, यही विवाह के वास्तविक आधार हैं।

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गुरु वशिष्ठ ने स्पष्ट कहा था- ‘हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।’ यानी जीवन की निर्णायक घटनाओं पर विधि का नियंत्रण है, न कि किसी शुभ घड़ी का।

भारत कभी कृषि प्रधान देश था। पूरा जीवन-चक्र खेतों के मौसम पर आधारित था- बुवाई, कटाई, वर्षा और विश्राम का स्पष्ट क्रम था। इसी आधार पर विवाह और मांगलिक कार्यों के ‘शुभ मुहूर्त’ निर्धारित किए गए। जब खेतों में काम कम होता था, लोग खाली होते थे, तब विवाह का समय शुभ माना जाता था। अर्थात शुभ मुहूर्त वास्तव में एक सामाजिक सुविधा थी, कोई दिव्य आदेश नहीं लेकिन आज का भारत बदल चुका है।

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यहां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नौकरियां हैं, स्टार्टअप हैं, निजी क्षेत्र के लंबे कार्य-घंटे हैं, अलग-अलग शिफ्ट्स हैं। लोगों की प्राथमिकता, समय-सारिणी और जीवनशैली कृषि से बिल्कुल अलग है। तो जहां हमारा जीविकोपार्जन ही बदल गया, वहां हमारे ‘उपयुक्त समय’ का पैमाना भी बदलेगा ही। आज के युवाओं के लिए वह तारीख शुभ है, जब उन्हें अवकाश मिले, तनाव न हो, परिवार सहज हो और व्यवस्था सरल हो।

तनाव बनाम शुभता : अक्सर होता यह है कि शुभ मुहूर्त के दबाव में परिवार क्लेश का सामना करता है- ‘जल्दी करो, मुहूर्त निकल रहा है!’ इस तनाव से पूजा-पाठ का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है। शुभ का अर्थ शांति है, भय नहीं। अगर शुभ मुहूर्त सुख से ज्यादा तनाव दे रहा है, तो उसका उद्देश्य ही खो जाता है।

विवाह किया जाता है ताकि दो लोग और उनके परिवार शांति, सहजता और आनंद के साथ जीवन की नई शुरुआत करें। अगर वही शुरुआत तनाव, भागदौड़ और भारी खर्च से भरी हो, तो वह शुभ कैसे हो सकती है?

मैं यह नहीं कहती कि जान-बूझ कर कोई अशुभ माना जाने वाला समय चुना जाए, पर एक ही तारीख को ‘सबसे शुभ’ मान लेने की जड़ता से हमें निकलना होगा।  

आज के समय में शुभ वही है, जब परिवार तनावमुक्त हो, जब वर-वधू को छुट्टी आसानी से मिल सके, खर्च अनावश्यक रूप से न बढ़े, रिश्तेदार बिना संघर्ष के आ सकें और जब मन शांत हो क्योंकि विवाह परंपरा भी है, लेकिन जीवन उससे कहीं बड़ा है।

  —प्रज्ञा पांडेय मनु

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