Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Sep, 2025 07:04 AM

Sant Namdev ji ki kahani: संत नामदेव की भक्ति कथाएं दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं। वैष्णव मत को मानने वाले संत नामदेव के मन में बचपन से ही उनके परिवार के माध्यम से भगवान विट्ठल की भक्ति की लौ जग गई थी। उनकी एक भक्ति कथा खूब कही जाती है। पंढरपुर नामक नगर...
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Sant Namdev ji ki kahani: संत नामदेव की भक्ति कथाएं दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं। वैष्णव मत को मानने वाले संत नामदेव के मन में बचपन से ही उनके परिवार के माध्यम से भगवान विट्ठल की भक्ति की लौ जग गई थी। उनकी एक भक्ति कथा खूब कही जाती है। पंढरपुर नामक नगर में एक बड़ा धनी सेठ रहता था। उसने अपने यहां तुलादान का आयोजन करवाया। इस उत्सव में वह खुद के वजन का सोना तौलकर लोगों को दान में देता। उसके यहां दूर-दूर से लोग सोना लेने आए और उसने किसी को भी निराश नहीं किया। अंत में उसने अपने लोगों से पूछा कि नगर में कोई रह तो नहीं गया, तो कुछ लोगों ने बताया कि संत नामदेव जी आयोजन में नहीं आए। वह ईश्वर के परम भक्त हैं। इस पर सेठ ने कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई उसके हाथ से सोना दान न लेना चाहे। उसने अपने लोगों को कहा कि संत नामदेव जी को सम्मानपूर्वक यहां ले आएं।

सेठ के लोग जब संत नामदेव के पास पहुंचे, तो वे सारी बात सुनकर बोले-स्वर्ण दान उनको दो, जो इसकी इच्छा करें। हमें कुछ भी नहीं चाहिए। लोग वापस लौट गए, किंतु सेठ नहीं माना और उसने उन्हें फिर भेजा। संत नामदेव ने दो बार उनका आग्रह ठुकराया, किंतु जब वे तीसरी बार उनके पास पहुंचे तो संत समझ गए कि सेठ की दान भावना नहीं, अहंकार बोल रहा है। अत: वे साथ चल दिए।

वहां पहुंचकर सेठ से बोले- तुम्हें निश्चित रूप से ईश्वर से सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हो। बताओ, मुझसे क्या चाहते हो ?सेठ ने कहा- मेरे हाथ से सोना दान लेकर मेरा कल्याण कीजिए।संत बोले- कल्याण तुम्हारा हो गया। अब जो भी मुझे देने की तुम्हारी प्रबल इच्छा है, मैं बताता हूं, उस बराबर तौल दो।

सेठ हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। नामदेव जी को श्रीविष्णु की प्रिय तुलसी अतिप्रिय थी। उन्होंने तुलसी के पत्ते पर राम का सिर्फ ‘रा’ लिखकर सेठ को वह तुलसी पत्र पकड़ा दिया और कहा कि मुझे इसके बराबर सोना दे देना। सेठ ने सहर्ष तुलसी पत्र को तराजू में रख सोना तौलने का प्रयास किया, लेकिन तराजू तुलसी पत्र के वजन के अनुसार छोटा पड़ गया। अब सेठ ने सात-आठ मन सोना तोलने वाला तराजू मंगवाया किंतु वह भी निष्फल रहा। अंत में सेठ के पास जमा सारा सोना तराजू के एक पलड़े में आ गया लेकिन तुलसी पत्र के बराबर न हो सका।

सेठ बहुत लज्जित था। उसे नामदेव का संदेश समझ आ गया था। वह हाथ जोड़कर बोला- प्रभु मुझे क्षमा कीजिए और इतना ही सोना ले लीजिए।इस पर संत नामदेव ने उसे समझाया- मेरे पास तो रामनाम का धन है। मैं सोना लेकर क्या करूंगा। यह धन राम नाम के धन की बराबरी नहीं कर सकता। यही सबसे कल्याणकारी धन है।

तुमने तुलसी और राम नाम की महिमा आज अपनी आंखों से देख ली है। इसलिए आज से तुम इस धन को गले में हमेशा पहनना और हमेशा राम नाम जपते रहना। यह कहकर नामदेव जी ने सबके हृदय में भक्ति भाव भर दिया। सबकी बुद्धि प्रेमरस में भीग गई।
