वाराणसी: किन्नरों की मुक्ति के लिए किया गया त्रिपिंडी श्राद्ध, जानें क्या है इसका महत्व

Edited By Jyoti,Updated: 17 Sep, 2020 12:57 PM

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पितृ पक्ष में अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए लगभग प्रत्येक व्यक्ति श्राद्ध, पिंडदान एंव पितर तर्पण करता है। किन्नर भी इस कार्य में पीछे नहीं रहते।

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पितृ पक्ष में अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए लगभग प्रत्येक व्यक्ति श्राद्ध, पिंडदान एंव पितर तर्पण करता है। किन्नर भी इस कार्य में पीछे नहीं रहते। ये भी साधारण लोगों की ही तरह विधि वत मृत्यु को प्राप्त हो चुके किन्नरों का श्राद्ध करते हैं, ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके। बता दें पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में किन्नरों का पिंडदान, महाभारत काल में सिखंडी द्वारा संपन्न किया गया था, जिसके बाद किन्नरों द्वारा भी श्राद्ध आदि किए जाना आरंभ हुआ। खबरों की मानें तो कहा जा रहा है इस बार ऐसा चौथा मौका है, जब देशभर के विभिन्न प्रांतों से जुटे किन्नरों ने किन्न अखाड़े की महामंडलेश्वर की मौज़ूदगी में न केवल किन्नरों बल्कि कोरोना काल में मृतकों के लिए भी त्रिपिंडी श्राद्ध किया बल्कि कोरोना से मरने वाले लोगों की आत्मा को शांति के लिए भी श्राद्ध किया। मगर ये त्रिपिंडी श्राद्ध क्या है, इसके बारे में शायद हो कोई जानता होगा। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि त्रिपिंडी श्राद्ध से जुड़ी खास बातें-
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इससे जुड़ी मान्यताओं के अनुसार मानव को अपने जीवन में 16 संस्कार व कर्मों से गुज़रना पड़ता है, मगर किन्नरों की बात करें तो समाज पिंडदान से वंचित रह जाता है। मगर इस साल ऐसा नहीं हुआ, जी हां बताया जा रहा वाराणासी में इस बार सार्वजनिक रूप से 16 सितंबर को किन्नरों का पिंडदान किया गया। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में सनातनी धर्म से संबंध रखने वाले लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान की परंपरा निभाते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। मगर शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कभी ये सोचा होगा कि किन्नर जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद उनके ही समाज में अस्वीकार कर दिया हो, उन्हें कैसे मुक्ति दिलवाई जा सकती है।  

अगर आपने इस बारे में कभी विचार किया है और इसका उत्तर जानना भी चाहते हैं तो चलिए आपको बताते हैं दरअसल इसका जवाब धर्म की नगरी काशी के तीर्थ पिशाचमोचन पर हर दूसरे साल तब मिलता है जब किन्नर अखाड़े की अगुवाई में किन्नरों का त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। बताया जाता है इसमें शामिल होने के लिए देश भर से किन्नर समाज के लोग जुटते हैं। पितृ पक्ष में एक बार फिर वाराणसी के पिशाचमोचन तीर्थ पर ऐसा ही देखने को मिला है। इस बारे मिली जानकारी के अनुसार इस दौरान न केवल किन्नरों के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कर रही हैं बल्कि कोरोना काल में मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों के लिए, आत्मा की शांति के लिए भी त्रिपिंडी श्राद्ध किया गया।
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अखाड़े के लोगों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 2015 में जब से किन्नर अखाड़े की स्थापना हुई है तभी से काशी के पिशाचमोचन तीर्थ पर हर दूसरे साल आकर पिंडदान करते हैं। शास्त्रों की तो मानें पिशाचकुंड और बद्रीकुंड पूरे देश में दो कुंड स्थित हैं, जहां सामूहिक पिंडदान किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि हर आत्मा को हक है कि उसको परमधाम पहुंचाया जाए, इसलिए उनकी गद्दी पर बैठने के बाद से ही सामूहिक रूप से किन्नर समाज के मृत लोगों के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध हर दूसरे साल कराया जाने लगा। 

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कहा जाता है अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की आत्मा को त्रिपिंडी श्राद्ध के माध्यम से ही शांत किया जाता है। त्रिपिंडी का अर्थ होता है तीन तरह के देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा तीन तरह के प्रेत भी होते हैं। जिस तरह का प्रेत होता है, उसे उसी लोक में त्रिपिंडी श्राद्ध के माध्यम से भेजा जाता है। 
 

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