Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Oct, 2022 09:50 AM
सदाचार की दुराचार पर विजय का प्रतीक विजय दशमी पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, हमारे धर्मग्रंथों में यह दिन सर्वकार्य सिद्धिदायक है। इससे नौ दिन पूर्व शारदीय नवरात्रों में मां भगवती जगदम्बा का पूजन व
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Ravan dahan 2022: सदाचार की दुराचार पर विजय का प्रतीक विजय दशमी पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, हमारे धर्मग्रंथों में यह दिन सर्वकार्य सिद्धिदायक है। इससे नौ दिन पूर्व शारदीय नवरात्रों में मां भगवती जगदम्बा का पूजन व आह्वान किया जाता है। इन नौ दिनों में भगवान श्री राम ने समुद्र तट पर मां आदि शक्ति की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया तथा दसवें दिन लंकापति रावण का वध किया। तब से ही असत्य पर सत्य की तथा अधर्म पर धर्म की विजय का यह पर्व विजयदशमी पर्व के रूप में मनाया जाता है।
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दम्भ मान और मद से युक्त ऐसे मनुष्य जो किसी प्रकार भी पूर्ण न होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर, अज्ञान से मिथ्या सिद्धांतों को ग्रहण करके तथा भ्रष्ट आचरण को धारण करके संसार में विचरते हैं, वे अपने मनमाने आचरण से मानवीय समाज के लिए घोर संकट बन जाते हैं। ऐसी तमोगुणी शक्तियों के नाश के लिए सत्वगुणी शक्तियों का अभ्युदय परमावश्यक है। रावण ने कठिन तप करके ब्रह्मा जी से वरदान स्वरूप यह मांगा कि वह गरुड़, नाग, यक्ष, दैत्य, दानव तथा देवताओं के लिए अवध्य हो जाए। रावण ने मनुष्य इसलिए नहीं कहा क्योंकि वह मनुष्य को स्वभाव से ही बलरहित तथा कमजोर समझता था। इसीलिए समस्त सृष्टियों के स्वामी श्रीमन् नारायण मनुष्य रूप में इस धरा पर अवतरित हुए।
मनुष्य रूप में उनकी दिव्य लीला तथा सद्आचरण, सदाचारी पुरुषों के लिए अनुकरणीय हैं। प्रभु श्री राम के रूप में न केवल उन्होंने रावण सहित असंख्य आसुरी शक्तियों का नाश किया अपितु संपूर्ण मानव समाज को भयमुक्त कर विश्व में शांति एवं अभय का वातावरण स्थापित किया। इसलिए तमोगुण पर दैवीय गुणों की विजय का पर्व भी है विजयदशमी। सत्वगुणी पुरुषों के लिए तमोगुणों पर विजय प्राप्त करने हेतु प्रस्थान करने का उत्सव है यह पर्व।
भारतीय संस्कृति शौर्य एवं वीरता की उपासक है। हमारे देवी-देवताओं की आराधना में उनके हाथों में आयुधों का विवरण हमें प्राप्त होता है, जैसे भगवान शिव के हाथ में त्रिशूल, मां भगवती के हाथों में शंख, चक्र, गदा, धनुष इत्यादि भगवान विष्णु जी के हाथ में सुदर्शन चक्र इत्यादि। मानवता की रक्षा हेतु इन सबके द्वारा आयुध धारण किए जाते हैं। जब राक्षस वर्ग अपनी कठोर तपस्याओं के अंतर्गत दुर्लभ वर प्राप्त कर अजेय हो जाते हैं। तब समस्त जगत के दुखों को हरने के लिए भगवान मानवीय लीला में श्री राम के रूप में साधु पुरुषों का उद्धार करते हैं। आदिकाल से ही इस लोक में मनुष्य समुदाय दो प्रकार का है- एक दैवीय प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रवृत्ति वाला। आसुरी प्रवृत्ति वाले मनुष्यों में न तो बाहर भीतर की शुद्धि होती है, न श्रेष्ठ आचरण और न ही सत्य भाषण। किसी भी राष्ट्र की प्रतिष्ठा वहां के लोगों के आचरण से होती है। हमारे ग्रंथों में श्रेष्ठ राष्ट्र की कल्पना आर्य विधान से की गई है।
आर्य का अर्थ है- श्रेष्ठ पुरुषों का आचरण। समानता, सामाजिक न्याय सद्भावना आदि लक्षणों से युक्त मानव समाज ही आर्य विधान की विशेषता है। भगवान श्री राम ने लंका विजय के उपरांत विभीषण को राज देकर, बाली वध के उपरांत सुग्रीव को किष्किंधा का राज देकर वहां आर्य विधान स्थापित किया। आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो हमें अपने भीतर दुर्गुणों को समाप्त करने के लिए अपनी दस इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। श्री गीता जी के अनुसार
‘‘इंद्रियाणी दशैकं च’’
इस प्रकार हम अपने भीतर तमोगुण को समाप्त कर सकते हैं। इस प्रकार विजय दशमी पर्व है अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करने का ताकि विकारों का क्षय हो सके। राष्ट्र की सुख-समृद्धि के लिए आवश्यक है कि हम सबमें विवेक जागृत हो। हम अपने भीतर पनप रही बुराई का अंत स्वयं करें, ताकि भविष्य में रावण पैदा ही न हो परंतु ऐसा संभव नहीं है। युगों-युगों से अच्छाई एवं बुराई के मध्य युद्ध होता आ रहा है परंतु विजय सदैव दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की, असुरत्व पर देवत्व की, असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय तथा दुराचार पर सदाचार की ही हुई है।