Edited By Lata,Updated: 22 Sep, 2019 09:24 AM
सुंदर नगर में सुकृति नामक एक राजा राज करता था। वह बड़ा दयालु और धर्मपरायण था।
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सुंदर नगर में सुकृति नामक एक राजा राज करता था। वह बड़ा दयालु और धर्मपरायण था। उसका सेनापति भीमसेन बहादुर, निडर और वफादार था लेकिन कुछ मित्रों के बहकावे में भीमसेन ने स्वयं राजा बनने का निर्णय ले लिया। अपने वफादार सैनिकों के सहारे उसने राजा सुकृति को सिंहासन से हटाकर अपना राज्याभिषेक करवा लिया। वह राजा को बंदी बनाना चाहता था लेकिन सुकृति पहले ही भेस बदलकर वहां से निकल गया।
राजा बने भीमसेन ने सुकृति को पकड़ने के लिए एक हजार स्वर्ण मुद्राओं के ईनाम की घोषणा कर दी। अब हर कोई ईनाम की आकांक्षा से सुकृति को खोजने लगा। ईनाम की बात भेस बदले सुकृति के कानों तक भी पहुंच गई। सो वह नगर से दूर जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल के रास्ते राज्य से बाहर निकलने वाला था लेकिन सीमा से कुछ ही पहले उसे एक व्यक्ति आता दिखाई दिया। नजदीक आकर वह बोला, ‘‘भाई, तुम नगर के निवासी जान पड़ते हो। क्या तुम मुझे राजा सुकृति के महल का रास्ता बता सकते हो?’’
सुकृति ने पूछा, ‘‘राजा सुकृति से तुम्हें क्या काम है?’’
अजनबी बोला, ‘‘मेरी पत्नी बहुत बीमार है। उसके इलाज के लिए मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है। मैंने सुना है राजा सुकृति बड़े दयालु हैं। वह जरूर मेरी मदद करेंगे।’’
सुकृति बोला, ‘‘चलो, मैं तुम्हें राजमहल के पास पहुंचा देता हूं।’’
सुकृति उस अजनबी को लेकर सीधे राज दरबार में जा पहुंचा। वहां सिंहासन पर बैठे राजा भीमसेन से सुकृति ने कहा, ‘‘तुमने मुझे पकड़ने के लिए एक हजार स्वर्ण मुद्राओं का जो ईनाम रखा है, वह इस व्यक्ति को दे दो। यही मुझे पकड़ कर लाया है। मेरे साथ तुम जैसा चाहो कर सकते हो।’’
भीमसेन को सारी बात समझते देर न लगी। राजा सुकृति की प्रजा के प्रति दयालुता देख वह अपने कृत्य पर लज्जित हो उठा। वह सिंहासन से उठा और महाराज के चरणों में गिर पड़ा।