World Water Day 2025- कुदरत की अनमोल देन है ‘जल’

Edited By Updated: 22 Mar, 2025 02:00 PM

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World Water Day 2025- जल मानव की मूलभूत आवश्यकता है। व्यक्ति भोजन के बिना तो कुछ दिन तक जीवित रह सकता है मगर जल के बिना उसका एक दिन भी जीवित रहना कठिन है। हमारे शरीर का भी दो-तिहाई भाग जल ही है। जल केवल मानव के लिए ही नहीं, बल्कि सृष्टि के सभी...

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World Water Day 2025- जल मानव की मूलभूत आवश्यकता है। व्यक्ति भोजन के बिना तो कुछ दिन तक जीवित रह सकता है मगर जल के बिना उसका एक दिन भी जीवित रहना कठिन है। हमारे शरीर का भी दो-तिहाई भाग जल ही है। जल केवल मानव के लिए ही नहीं, बल्कि सृष्टि के सभी जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों के लिए आवश्यक है। जल के बिना किसी का भी अस्तित्व संभव नहीं है। जल के इसी महत्व को दृष्टिगत रखते हुए शायद मानव जीवन का प्रारंभ नदियों के किनारे के मैदानी क्षेत्रों में हुआ होगा। बाद में पूरी दुनिया में मानव सभ्यताएं भी नदियों के किनारे ही विकसित हुईं। 

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केवल 1 प्रतिशत जल ही पीने योग्य 
भूमंडल के 70 प्रतिशत भाग पर जल और 30 प्रतिशत भाग भूूमि है। भूमंडल का 97 प्रतिशत जल हमें समुद्र के रूप में मिलता है जो खारा है और पीने योग्य नहीं। केवल 2 प्रतिशत जल हमें ग्लेशियरों और धु्रवों पर बर्फ के रूप में मिलता है, जिसका प्रयोग हम पीने के लिए नहीं कर सकते। 

इस प्रकार भूमंडल का केवल 1 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। यह जल हमें भूमिगत और नदियों, झीलों, तालाबों और पोखरों के जल के रूप में मिलता है। एक व्यक्ति को पीने के लिए प्रतिदिन 5 लीटर जल तथा अन्य कार्यों के लिए लगभग 90 लीटर जल की आवश्यकता होती है।

नदियों के जल का दुरुपयोग 
देश की नदियां शुद्ध पेयजल का विशाल स्रोत थीं, मगर आधुनिकीकरण की दौड़ में इन नदियों पर बांध बनाकर इनके जल को रोक कर जल विद्युत बनाई जाती है और इनका जल फसलों की सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाता है। नदियों के जल की बहुत बड़ी मात्रा का उपयोग विभिन्न प्रकार के कल-कारखानों में भी किया जाता है। इस सबके परिणामस्वरूप इन नदियों में पेयजल की मात्रा बहुत कम हो गई है। 

पर्यावरण प्रदूषण का असर
रही-सही कसर पर्यावरण प्रदूषण ने पूरी कर दी है। इन नदियों के किनारे बसे महानगरों, नगरों और उपनगरों की सीवर लाइनों का मल-मूत्र, गंदा पानी तथा कल-कारखानों का अपशिष्ट इन्हीं नदियों में बहाया जाता है, जिससे इन नदियों का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है। 

गंगा नदी, जिसके जल को पुराणों में अमृत की संज्ञा दी गई है, वह बढ़ते प्रदूषण के कारण जहरीला होता जा रहा है। इससे शुद्ध पेयजल का संकट दिनों-दिन गहरा रहा है।

कुएं-बावड़िया, तालाब-पोखर, झील-जलाशय सब सूख गए हैं, या यूं कहें कि देश की बढ़ती आबादी उन्हें निगल गई है। इस कारण गर्मी आते ही जलस्तर नीचे चला जाता है और पठारी क्षेत्रों के हैंडपंप पानी देना बंद कर देते हैं।

एक अधिकारिक आकलन के अनुसार, भारत में केवल 35 प्रतिशत लोगों के घरों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध है। देश की 42.2 प्रतिशत आबादी को पानी लेने के लिए लगभग आधा किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। देश के लगभग 22 प्रतिशत लोग पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर से तीन किलोमीटर दूर तक जाने को मजबूर हैं। देश के बारह करोड़ लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। हमारे देश में विश्व के कुल शुद्ध जल का 4 प्रतिशत ही मौजूद है, जबकि हमारे देश में विश्व की 7 प्रतिशत जनसंख्या रहती है।

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बीमारियों की जड़ है अशुद्ध जल
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 21 प्रतिशत बीमारियां केवल अशुद्ध जल पीने से होती हैं। इनमें कई प्राणघातक बीमारियां भी शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि विश्व में हर मिनट  8 बच्चों की मौत अशुद्ध पानी से होने वाली बीमारी से हो जाती है।

रोकनी होगी पानी की बर्बादी
प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी रेलवे यार्डों में ट्रेनों तथा रोडवेज वर्कशापों में बसों की धुलाई पर खर्च होता है। यही हाल कार रिपेयर सैंटर और आटो रिपेयर सैंटरों का भी है। इन सबकी धुलाई पर खर्च होने वाले पानी की रिसाइक्लिंग की व्यवस्था कर प्रतिदिन लाखों लीटर पानी की बचत की जा सकती है।    
                    
जल स्तर को नीचे जाने से रोकने में वर्षा जल का संचयन बहुत कारगर भूमिका निभा सकता है, जो सबसे शुद्ध माना जाता है। वर्षा के जल को संचित करने के लिए हम अपने घरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाएं। 

जल कुदरत की सबसे अनमोल नियामत है, जो प्रकृति ने हमें नि:शुल्क उपहार में दी है। इसका मोल पहचानें और इसे व्यर्थ में बर्बाद न करें। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे भावी पीढ़ी के लिए सहेज कर रखें। जल स्रोतों को स्वच्छ रखकर हम शुद्ध पेयजल की उपलब्धता को बनाए रख सकते हैं।   

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