Edited By Varsha Yadav,Updated: 14 Feb, 2024 02:50 PM
यहां पढ़ें कैसी है आदिल खान की फिल्म 'दशमी'...
फिल्म- दशमी (Dashmi)
निर्देशक- शांतनु ताम्बे (Shantanu Anant Tambe)
एक्टर्स- आदिल खान (Aadil Khaan), वर्धन पुरी (Vardhan Puri), मोनिका चौधरी (Monica Chaudhary), गौरव सरीन (Gaurav Sareen), अंकित खेड़ा (Ankit Khera)
रेटिंग- 3*/5
Dashmi: राम और रावण पर वैसे तो कई कहानियां पर्दे पर आ चुकी हैं लेकिन इस शुक्रवार को चुनिंदा सिनेमाघरों में एक ऐसी फिल्म रिलीज हो रही है, जिसमें राम और रावण के जरिए आज के समाज और माहौल पर सौ फीसदी सार्थक सच्चाई बताई गई है। नई स्टार कास्ट और किसी स्टूडियो में लगाए गए कृत्रिम सेट के बजाय निर्देशक शांतुन ताम्बें ने इसकी 90 फीसदी शूटिंग आउटडोर लोकेशन में पूरी की है, जो फिल्म की कहानी को और दमदार बनाते हैं। इसकी टैगलाइन है, 'आओ कलयुग की दशमी में कलयुगी रावण को मिलकर जलाते हैं।'
कहानी
बलात्कार जैसे संवेदनशील विषय पर बनी दशमी की कहानी एसीपी के के (आदिल खान ) से शुरू होती है जिसे पुलिस कमिश्नर ने शहर के नामी विख्यात धार्मिक गुरु को अस्पताल से किडनैप किए जाने वाले केस की जांच का जिम्मा सौंपा गया है। केके अपनी विश्वासपात्र टीम के साथ गुरु जी के किडनैपर की तलाश में जुट जाता है लेकिन तभी लगातार किडनैपिंग का सिलसिला शुरू होता है। शहर की नामचीन हस्तियों जिनमे दूसरे धार्मिक गुरुओं के साथ ऐसे राजनीति , मेडिकल , समाज सेवा , से नामचीन हस्तियां शामिल है जो कोर्ट से जमानत पर रिहा है इन सब पर इल्जाम हैं कि इन्होंने चार साल से लेकर बीस साल तक की मासूम लड़कियों के साथ रेप किया लेकिन कोर्ट से जमानत मिल चुकी है, इन सभी का किडनैप होता है और सभी सोशल मीडिया पर यह कबूल करते नजर आते कि उन्होंने रेप किया है। आखिर इनका रेप कौन कर रहा है और क्या चाहता है, यह जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाकर 'दशमी' देखनी होगी।
कैसी है फिल्म
यह फिल्म सामाजिक रीति-रिवाजों और दकियानूसी सामाजिक परंपराओं पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। निर्देशक की फिल्म पर अच्छी पकड़ है फिल्म में अमरीश पुरी के पोते वर्धन पुरी भी है और इन्होंने भी सपोर्टिंग कास्ट के साथ बेहतरीन एक्टिंग की है। दलजीत कौर, गौरव सरीन, मोनिका चौधरी, खुशी हजारे, स्वाति सेमवाल सभी अपने किरदार में फिट हैं। आदिल खान ने अपनी बेहतरी एक्टिंग से अपने किरदार को जीवंत किया है। फिल्म के क्लाइमेक्स की जितनी भी तारीफ की जाए कम है क्योंकि आखिरी 25 मिनट की फिल्म का जवाब नहीं।
अगर आप अच्छे संदेश प्रदान करने वाली फिल्मे पसंद करते है तो फैमिली के साथ इस फिल्म को देखने जा सकते हैं। बेहद सीमित बजट में बनी इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि आप फिल्म की शुरुआत से अंत तक आपको सीट से बांधकर रखती है। तारीफ करनी होगी डायरेक्टर शांतुनु की जिन्होंने अपनी इस फिल्म के जरिए आज के समाज में बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाने और अंधेरे को मिटाकर एक नई रोशनी फैलाने की अच्छी पहल की है।