BSF के ऊंटों की टुकड़ी आपको अपनी ड्रेसों, चाल, जवानों की मूछों के ताव आदि...से मंत्र मुग्ध कर देगी

Edited By Ashish panwar,Updated: 26 Jan, 2020 06:40 PM

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रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट राजपथ पर अपनी मस्त धुनों पर चलने के अलावा भारतीय सेना की बीएसएफ बटालियन में अपनी अलग ही पहचान रखते है। ऊंटों की ये टोली सीमा की सुरक्षा में तैनात रहने के अलावा राजपथ पर होने वाली परेड में भी हिस्सा लेकर अपनी...

नई दिल्लीः रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट राजपथ पर अपनी मस्त धुनों पर चलने के अलावा भारतीय सेना की बीएसएफ बटालियन में अपनी अलग ही पहचान रखते है। ऊंटों की ये टोली सीमा की सुरक्षा में तैनात रहने के अलावा राजपथ पर होने वाली परेड में भी हिस्सा लेकर अपनी महत्ता दिखाती है। बीएसएफ की ऊंटों की इन टुकड़ी को कई बार विदेशी मेहमानों का स्वागत और उनका सम्मान करने के लिए भी बुलाया जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के स्वागत और सम्मान के लिए भी इन ऊंटों की टुकड़ी को बुलाया गया था। 

 

 बीटिंग द रिट्रीट में लेते हैं हिस्सा 

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राजपथ पर अपनी मस्त धुनों पर चलने के अलावा ये ऊंट 29 जनवरी को होने वाली बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी का भी हिस्सा बनते हैं। इस दौरान ऊंटों का दल रायसीना हिल पर उत्तर और दक्षिण ब्लॉक की प्राचीर पर खड़े दिखाई देता हैं। दुनिया का यह इकलौता ऊंट दस्ता है जो न केवल बैंड के साथ राजपथ पर प्रदर्शन करता है बल्कि सरहद पर रखवाली भी करता है। 

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पहली बार 1976 में 90 ऊंटों की टुकड़ी गणतंत्र दिवस का हिस्सा बनी थी, जिसमें 54 ऊंट सैनिकों के साथ और शेष बैंड के जवानों के साथ थे। ऊंटों का दल बीएसएफ देश का अकेला ऐसा फोर्स है, जिसके पास अभियानों और समारोह दोनों के लिए सुसज्जित ऊंटों का दल है। इससे पहले सन 1950 से इसकी जगह सेना का ऐसा ही एक दस्ता गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा था। 

 

बैंड और हथियारबंद सैनिकों का होता है दस्ता 

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ऊंट दस्ते में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीएसएफ ऊंट दस्ता हर साल 26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली परेड का एक अभिन्न हिस्सा था। इसमें दो दस्ते होते थे, एक 54 सदस्यीय सैनिकों का दस्ता तो दूसरा 36 सदस्यीय बैंड का दस्ता। पहला दस्ता ऊंट पर सवार हथियारबंद बीएसएफ सीमा सैनिकों का होता था, दूसरा दस्ता ऊंट पर सवार रंग-बिरंगी पोशाकों में सजे बैंड‍ का होता था।

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BSF ऊंट की टुकड़ी बीकानेर रॉयल कैमल फोर्स की विरासत का उत्तराधिकारी है, जिसे 'गंगा रिसाला' के रूप में जाना जाता है। यह राजस्थान के सीमावर्ती शहर जैसलमेर में हर साल यह 1 दिसंबर को बीएसएफ के स्थापना दिवस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए दिल्ली आता है। उसके बाद गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेते हैं फिर वापस चले जाते हैं। बीएसएफ देश की सबसे बड़ी सीमा सुरक्षा बल है जो 1965 में बनाया गया था और इसे मुख्य रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारतीय सीमाओं को सुरक्षित करने का काम सौंपा गया है। 

 

ऊंटों की टुकड़ी का पुराना इतिहास

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ऊंटों का दस्ता बीकानेर के तात्कालीन शासक राव बीकाजी ने 1465 में शुरू किया था। महाराजा गंगासिंह ने 500 ऊंटों के दस्ते को युद्ध के साथ मनोरंजन में भी शामिल किया था। उन्हीं की ओर से फौज को ऊंटों का ये दस्ता भेजा गया था।

1948 में भारतीय सेना में ऊंट दस्ते को शामिल कर लिया गया।

1975 में भारतीय सेना ने इसे बीएसएफ को सुपुर्द कर दिया।

1976 में बीएसएफ के अधिकारी के एस राठौड़ ने इस ऊंट दस्ते को मनोरंजन से जोडऩे की सोची।

1986 में उन्होंने असिस्टेंट कमांडेंट तखतसिंह व मोतीसिंह को घोड़ों की तरह ऊंटों को भी करतब का प्रशिक्षण प्रारंभ किया।

1990 में ऊंट दस्ता और मांउटेंड बैंड राजपथ पर प्रदर्शन को शामिल किया गया, तब से लगातार यह दस्ता राजपथ परेड का हिस्सा बन रहा है।

 

दुल्हन की तरह किया जाता है श्रृंगार 

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परेड में शामिल किए जाने वाले इन ऊंटों का श्रृंगार दुल्हन की तरह किया जाता है। पांव से लेकर गर्दन और पीठ पर इनको सजाने के लिए विभिन्न सामग्रियां रखी जाती है। उसके बाद इनके ऊपर बीएसएफ के जवान भी मूंछों पर ताव देते हुए और शाही वेश में बैठते हैं।

 

ऊंटों के मन मोह लेने वाले करतब 

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दो ऊंटों पर एक जवान की सवारी, ऊंट पर सवार का नजर नहीं आना, पणिहारी का ऊंट पर कलश के साथ, ऊंट पर ही बैठकर खाना और नाश्ता करना और दूल्हा दुल्हन की ऊंट पर सवारी ऐसे करतब है जो इनको और भी खास बनाते है।

 

जवानों का गाना बजाना  

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बीएसएफ के जवान अकसर सीमा पर रहते है और संसाधनों की कमी भी रहती है। ऐसे में यहां मौजूद डिब्बे, तगारी, मटकी, सांकल, गेंती, खुरपी, बाल्टी, चम्मच को ही साज की तरह बजाते हैं।

 

गजब का प्रशिक्षण 

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इन ऊंटों को दिए गए प्रशिक्षण का ही यह नतीजा होता है जो ये इतने बेहतर तरीके से इनका प्रदर्शन कर पाते हैं। ऊंटों के साथ बीएसएफ का दोस्ताना व्यवहार रहता है और उसके बाद इनके साथ रहकर इनको अपने जैसे ढालने का प्रशिक्षण दिया गया।

 

ऊंटों पर बैठने वाले जवान 

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इन ऊंटों पर बैठने वाले जवान भी खास होते हैं। इनकी ऊंचाई 6 फुट या उससे अधिक होती है। सीएसएफ ऐसे जवानों का चयन इस तरह के मौकों के लिेए करती है। ये जवान ऐसी परेड के मौकों पर दिख जाते हैं।

 

जवानों की मूंछें भी होती खास 

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इस ऊंट बटालियन की एक खास बात और है। इन ऊंटों पर बीएसएफ के जो जवान बिठाए जाते हैं उनकी मूंछें भी सामान्य नहीं होती है। सभी की मूंछें ऊपर की ओर उठी हुई होती है जिससे इनको पहचाना जाता है। इनके गालों पर बढ़ी मूंछों को गलमुच्छा भी कहा जाता है।

 

रंग-बिरंगे दस्ते 

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ऊंटों के रंग-बिरंगे दस्ते का कोई जवाब नहीं है। करीब 40 सालों से यह ऊंट दस्ता परेड में शामिल होकर गणतंत्र दिवस की रौनक बढ़ा रहा है।  

 

 

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